स्टैंडअप कॉमेडी की दुनिया में जाकिर खान का बड़ा नाम हैं। विरासत तो उन्हें शास्त्रीय संगीत की ही मिली थी संभालने को, लेकिन सुरों की बजाय वह दर्शकों के दिल सिफत से छूते हैं। ओटीटी के वह महारथी हैं और टेलीविजन पर उतरे हैं कॉमेडी के रण में, अपना खुद का शो, ‘आपका अपना जाकिर’ लेकर। जाकिर खान से ये खास मुलाकात की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने। Trending Videos शुरुआत हम नाम से ही करते हैं, किस ख्याल पर घरवालों ने रखा होगा आपका ये नाम? जाकिर, मतलब जिक्र करने वाला। जो अच्छा वक्ता हो, लीडर हो! और, ये नाम रखा गया हिंदुस्तान के बहुत बड़े कलाकार जाकिर हुसैन के नाम पर जो तबला बजाते हैं। हम सांगीतिक परिवार से आते हैं। वालिद साब हमारे सितार बजाते थे और दादा जी सारंगी। दादाजी (उस्ताद मोइनुद्दीन खान) को पद्मश्री मिली है। जैसे शाहरुख खान के स्टारडम के दौर में बहुत सारे बच्चों का नाम राहुल पड़ा तो हमारे परिवार के राहुल बराबर स्टारडम अगर किसी का था तो वह रहा तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन साब का। उन्हीं के नाम पर हमारा नाम रखा गया। और, तब, जब हम सितार बजाते तो लोग हमसे बार-बार पूछते, क्यों जाकिर तबला नहीं बजाते? और, सितार शायद आपने बहुत छोटी उम्र में ही बजाना शुरू कर दिया था? जी हां, चार साल की उम्र थी और हमारे वालिद साब दिल्ली से एक सितार खरीद कर लाए थे छोटी, हमने वह बजाना शुरू की। बड़ा हमको उस साज से बड़ा प्रेम है इसीलिए। साज से आप आए आवाज की तरफ। बड़ा मुश्किल काम माना जाता है किसी के होठों पर मुस्कुराहट लाना और आपने ये काम सुरों से भी किए और अपने लफ्जों से भी... मेरे ख्याल से जब आपका काम चलता है, तो लगता है कि हम बड़े तुर्रम खां हैं। हमने बहुत कुछ किया है। लेकिन, उम्र के साथ समझ आता है कि आपका क्या ही किया हुआ है इसमें। ये कई सारी पीढ़ियों की दुआएं हैं। मेहनत है जो शायद एक साथ मेरे हाथ में आकर फली हैं। हां, आम खाने वाली पीढ़ी को पेड़ लगाने वाली पीढ़ी का शुक्रिया जरूर ही अदा करना चाहिए.. हमसे पहले की पीढ़ी यानी हमारे ताऊजी, चाचा आदि को उनके बुजुर्गों ने सिखाया। और, उनके बुजुर्गों ने उनको। हमने आपने दादा की शागिर्दगी में बहुत वक्त बिताया है। वह जिस लहजे में लोगों से बात करते थे, हम भी उसी को इस्तेमाल करते हैं, तो लोग बड़ा प्यार करते हैं। तो ये सब हमारे पहले की बातें हैं और यही संदर्भ है। दुनिया में एक ही बात सच है, वह है संदर्भ, बाकी सब झूठ है।

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स्टैंडअप कॉमेडी की दुनिया में जाकिर खान का बड़ा नाम हैं। विरासत तो उन्हें शास्त्रीय संगीत की ही मिली थी संभालने को, लेकिन सुरों की बजाय वह दर्शकों के दिल सिफत से छूते हैं। ओटीटी के वह महारथी हैं और टेलीविजन पर उतरे हैं कॉमेडी के रण में, अपना खुद का शो, ‘आपका अपना जाकिर’ लेकर। जाकिर खान से ये खास मुलाकात की ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक पंकज शुक्ल ने।

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शुरुआत हम नाम से ही करते हैं, किस ख्याल पर घरवालों ने रखा होगा आपका ये नाम? जाकिर, मतलब जिक्र करने वाला। जो अच्छा वक्ता हो, लीडर हो! और, ये नाम रखा गया हिंदुस्तान के बहुत बड़े कलाकार जाकिर हुसैन के नाम पर जो तबला बजाते हैं। हम सांगीतिक परिवार से आते हैं। वालिद साब हमारे सितार बजाते थे और दादा जी सारंगी। दादाजी (उस्ताद मोइनुद्दीन खान) को पद्मश्री मिली है। जैसे शाहरुख खान के स्टारडम के दौर में बहुत सारे बच्चों का नाम राहुल पड़ा तो हमारे परिवार के राहुल बराबर स्टारडम अगर किसी का था तो वह रहा तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन साब का। उन्हीं के नाम पर हमारा नाम रखा गया। और, तब, जब हम सितार बजाते तो लोग हमसे बार-बार पूछते, क्यों जाकिर तबला नहीं बजाते?

और, सितार शायद आपने बहुत छोटी उम्र में ही बजाना शुरू कर दिया था? जी हां, चार साल की उम्र थी और हमारे वालिद साब दिल्ली से एक सितार खरीद कर लाए थे छोटी, हमने वह बजाना शुरू की। बड़ा हमको उस साज से बड़ा प्रेम है इसीलिए।

साज से आप आए आवाज की तरफ। बड़ा मुश्किल काम माना जाता है किसी के होठों पर मुस्कुराहट लाना और आपने ये काम सुरों से भी किए और अपने लफ्जों से भी… मेरे ख्याल से जब आपका काम चलता है, तो लगता है कि हम बड़े तुर्रम खां हैं। हमने बहुत कुछ किया है। लेकिन, उम्र के साथ समझ आता है कि आपका क्या ही किया हुआ है इसमें। ये कई सारी पीढ़ियों की दुआएं हैं। मेहनत है जो शायद एक साथ मेरे हाथ में आकर फली हैं।

हां, आम खाने वाली पीढ़ी को पेड़ लगाने वाली पीढ़ी का शुक्रिया जरूर ही अदा करना चाहिए.. हमसे पहले की पीढ़ी यानी हमारे ताऊजी, चाचा आदि को उनके बुजुर्गों ने सिखाया। और, उनके बुजुर्गों ने उनको। हमने आपने दादा की शागिर्दगी में बहुत वक्त बिताया है। वह जिस लहजे में लोगों से बात करते थे, हम भी उसी को इस्तेमाल करते हैं, तो लोग बड़ा प्यार करते हैं। तो ये सब हमारे पहले की बातें हैं और यही संदर्भ है। दुनिया में एक ही बात सच है, वह है संदर्भ, बाकी सब झूठ है।

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