youth:-आठ-साल-की-उम्र-में-ध्रुवी-ने-मां-को-एक-आइडिया-दिया,-13-साल-की-उम्र-तक-वह-बड़ा-बिजनेस-बन-गया
न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Sun, 20 Aug 2023 09: 28 PM IST बिना पेड़ पौधों के जीवन की कल्पना व्यर्थ है। प्रकृति प्रदूषण से परेशान इंसान अब प्रकृति का महत्व समझने लगा है और घर हो या दफ्तर हर जगह पौधे लगाने या बचाने का प्रयास जरूर करता है। इंसान अब प्लास्टिक के उपयोग से भी बच रहा है और पौधे लगाने के लिए प्राकृतिक गमले तलाश रहा है। बेटी के होमवर्क में जब मां ने यह बात सीखी तो उन्हें इसमें एक आइडिया नजर आया। उन्होंने सोचा कि क्यों न नर्सरी का बिजनेस शुरू किया जाए और लोगों को घर, दफ्तर या जहां भी जगह मिले वहां पर पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाए। इसके साथ इस तरह के गमले तैयार किए जाएं जिनमें प्लास्टिक न हो और वे पूरी तरह से प्राकृतिक हों। मां का यह आइडिया चल निकला और 14 हजार की लागत से शुरू किया गया बिजनेस बहुत जल्द सालाना 50 लाख रुपए के मुनाफे तक पहुंच गया। इसके बाद उन्होंने एसएसडी चिल्ड्रन्स एंड कंपनी की शुरुआत की। यह कहानी है युवा उद्यमी रत्ना आर्य की। पिछले कुछ वर्षों में ही रत्ना ने प्लांट नर्सरी के बिजनेस में अपनी अलग पहचान बनाई है।  रत्ना आर्य बताती हैं कि कैसे उनकी 8 साल की बेटी ध्रुवी के होमवर्क ने उन्हें प्लांटेशन के व्यापार में उतरने का आइडिया दिया। वर्ष 2018 से 14 हजार की लागत से शुरू हुआ प्लांटेशन का कारोबार वर्ष 2023 आते-आते 50 लाख के टर्नओवर को छू गया और प्रदेश के बाहर लुधियाना, औरंगाबाद, हरियाणा जैसे राज्यों तक अपने व्यापार को पहुंचा दिया। ध्रुवी अब 13 साल की हैं और मां के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करती हैं। ध्रुवी को हाल ही में युवा उद्यमी पुरस्कार और ग्लोबल ग्रीन अवार्ड भी मिला है।  प्रदेश के बाहर फैल रहा बिजनेस रत्ना आर्य का प्लांटेशन का व्यापार प्रदेश के बाहर अन्य राज्यों में भी फैल चुका है। इनकी कंपनी पौधों के साथ कोकोपीट और कोकोपाट भी बनाती हैं। यह नारियल के कचरे से बनाए जाते हैं जिनमें पौधे लगाए जाते हैं। रत्ना बताती हैं कि बेटी ने ही उन्हें कहा था कि इस तरह के पाट होना चाहिए जिनमें प्लास्टिक नहीं हो। इसके बाद में ही ये पाट बनाए गए। अब इनकी उत्पादन क्षमता 100 टन तक पहुंच चुकी है। उनका कारोबार तेजी से फैला और आज कई शहरों के ग्राहक उनके पौधों की सजावट के कायल हो चुके हैं। इस बिजनेस के लिए ज्यादा पूंजी नहीं चाहिए थी न ही किसी तरह की आधुनिक मशीन की जरूरत थी। जरूरत थी तो केवल साहस और आप विश्वास की जो उन्हें अपनी छोटी बच्ची धुर्वी आर्य से मिला। बड़वाह के पास की लोकेशन पर नर्सरी प्लांटेशन स्थापित किया गया और अच्छी बागवानी की मदद से शहरों तक कम कीमत पर 6 फीट तक के पौधों को ₹50 में ग्राहक को उपलब्ध कराया गया। कई लोगों को मिला रोजगार रत्ना आर्य 50 लाख रुपए टर्नओवर का व्यापार खड़ा कर दिया जो 30 से 40 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है बड़वाह की लोकेशन पर नर्सरी स्थापित की गई उसे समय के साथ छोटी नर्सरी ने बड़ी नर्सरी का रूप ले लिया और बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा।

You can share this post!

Related News

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Sun, 20 Aug 2023 09: 28 PM IST

बिना पेड़ पौधों के जीवन की कल्पना व्यर्थ है। प्रकृति प्रदूषण से परेशान इंसान अब प्रकृति का महत्व समझने लगा है और घर हो या दफ्तर हर जगह पौधे लगाने या बचाने का प्रयास जरूर करता है। इंसान अब प्लास्टिक के उपयोग से भी बच रहा है और पौधे लगाने के लिए प्राकृतिक गमले तलाश रहा है। बेटी के होमवर्क में जब मां ने यह बात सीखी तो उन्हें इसमें एक आइडिया नजर आया। उन्होंने सोचा कि क्यों न नर्सरी का बिजनेस शुरू किया जाए और लोगों को घर, दफ्तर या जहां भी जगह मिले वहां पर पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया जाए। इसके साथ इस तरह के गमले तैयार किए जाएं जिनमें प्लास्टिक न हो और वे पूरी तरह से प्राकृतिक हों। मां का यह आइडिया चल निकला और 14 हजार की लागत से शुरू किया गया बिजनेस बहुत जल्द सालाना 50 लाख रुपए के मुनाफे तक पहुंच गया। इसके बाद उन्होंने एसएसडी चिल्ड्रन्स एंड कंपनी की शुरुआत की। यह कहानी है युवा उद्यमी रत्ना आर्य की। पिछले कुछ वर्षों में ही रत्ना ने प्लांट नर्सरी के बिजनेस में अपनी अलग पहचान बनाई है। 

रत्ना आर्य बताती हैं कि कैसे उनकी 8 साल की बेटी ध्रुवी के होमवर्क ने उन्हें प्लांटेशन के व्यापार में उतरने का आइडिया दिया। वर्ष 2018 से 14 हजार की लागत से शुरू हुआ प्लांटेशन का कारोबार वर्ष 2023 आते-आते 50 लाख के टर्नओवर को छू गया और प्रदेश के बाहर लुधियाना, औरंगाबाद, हरियाणा जैसे राज्यों तक अपने व्यापार को पहुंचा दिया। ध्रुवी अब 13 साल की हैं और मां के साथ बिजनेस को आगे बढ़ाने में पूरी मदद करती हैं। ध्रुवी को हाल ही में युवा उद्यमी पुरस्कार और ग्लोबल ग्रीन अवार्ड भी मिला है। 

प्रदेश के बाहर फैल रहा बिजनेस
रत्ना आर्य का प्लांटेशन का व्यापार प्रदेश के बाहर अन्य राज्यों में भी फैल चुका है। इनकी कंपनी पौधों के साथ कोकोपीट और कोकोपाट भी बनाती हैं। यह नारियल के कचरे से बनाए जाते हैं जिनमें पौधे लगाए जाते हैं। रत्ना बताती हैं कि बेटी ने ही उन्हें कहा था कि इस तरह के पाट होना चाहिए जिनमें प्लास्टिक नहीं हो। इसके बाद में ही ये पाट बनाए गए। अब इनकी उत्पादन क्षमता 100 टन तक पहुंच चुकी है। उनका कारोबार तेजी से फैला और आज कई शहरों के ग्राहक उनके पौधों की सजावट के कायल हो चुके हैं। इस बिजनेस के लिए ज्यादा पूंजी नहीं चाहिए थी न ही किसी तरह की आधुनिक मशीन की जरूरत थी। जरूरत थी तो केवल साहस और आप विश्वास की जो उन्हें अपनी छोटी बच्ची धुर्वी आर्य से मिला। बड़वाह के पास की लोकेशन पर नर्सरी प्लांटेशन स्थापित किया गया और अच्छी बागवानी की मदद से शहरों तक कम कीमत पर 6 फीट तक के पौधों को ₹50 में ग्राहक को उपलब्ध कराया गया।

कई लोगों को मिला रोजगार
रत्ना आर्य 50 लाख रुपए टर्नओवर का व्यापार खड़ा कर दिया जो 30 से 40 लोगों को रोजगार उपलब्ध करा रहा है बड़वाह की लोकेशन पर नर्सरी स्थापित की गई उसे समय के साथ छोटी नर्सरी ने बड़ी नर्सरी का रूप ले लिया और बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा।

Posted in MP