ujjain-shravan-month:-अभय-का-वरदान-देते-हैं-श्री-च्यवनेश्वर-महादेव,-इंद्र-का-वज्र-प्रहार-भी-रहा-था-बेअसर
च्यवनेश्वर महादेव मंदिर - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us दुनियाभर में 84 महादेव हैं और इस क्रम में 30वां स्थान रखने वाले श्री च्यवनेश्वर महादेव की महिमा निराली है। भगवान इंद्र ने क्रोधित होकर महर्षि च्यवन पर वज्र प्रहार किया था। इस शिवलिंग के दर्शन करने से महर्षि च्यवन न केवल अभय हुए थे, बल्कि वज्र का प्रहार भी बेअसर हुआ था।   श्री च्यवनेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित पवन गुरु का कहना है कि सप्तसागरों में से एक है पुरुषोत्तम सागर। उसके सामने इंदिरा नगर ईदगाह के सामने अति-प्राचीन मंदिर विद्यमान है। यहां भगवान शिव की काले पाषाण की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर में भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय स्वामी और नंदी जी की प्रतिमा मनोहारी है। मंदिर में वैसे तो प्रतिदिन भगवान का विशेष पूजन-अर्चन कर महाआरती होती है लेकिन सावन मास में भगवान के पूजन-अर्चन का विशेष क्रम जारी रहता है।  समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं च्यवनेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी की माने तो यदि सच्चे मन से श्री च्यवनेश्वर महादेव का पूजन अर्चन किया जाए तो न सिर्फ भय से मुक्ति मिलती है बल्कि हमारी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।  यह है श्री च्यवनेश्वर की पौराणिक कथा पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही शिवलिंग है जिसकी आराधना करने से च्यवन ऋषि को इंद्र का वज्र प्रहार भी नुकसान नहीं पहुंचा सका था। महर्षि भृगु के पुत्र थे च्यवन, जो परम तपस्वी थे। जिस समय वे वितस्ता नदी के किनारे तपस्या में लीन थे, उसी समय राजा शर्याति की कन्या सुकन्या ने उनके शरीर पर धूल-मिट्टी होने के कारण बाम्बी बनने की अनभिज्ञता के कारण सखियों के साथ च्यवन ऋषि के चमकते हुए नेत्रों में कांटे चुभा दिए। इससे नेत्रों से खून निकलने लगा था। इससे ऋषि च्यवन अत्यधिक दुखी हुए जिससे राजा शर्याति की सेना में बीमारियां फैलना शुरू हो गई। शर्याति अपनी बेटी सुकन्या के साथ महर्षि च्यवन के पास गए और महर्षि से माफी मांगी थी। सुकन्या को महर्षि च्यवन को पत्नी के रूप में सौंप दिया था। इसके कुछ समय बाद शर्याति के राज्य में बीमारियां रुक गईं। कुछ समय बाद महर्षि च्यवन के आश्रम में दो अश्विनी कुमार आए। उन्होंने सुकन्या के सामने विवाह प्रस्ताव रखा। सुकन्या मना करके वहां से जाने लगी तभी अश्विनी कुमार ने कहा कि वे महर्षि च्यवन को युवा बना सकते हैं। महर्षि मान गए और अश्विनी कुमारों के साथ जल में प्रवेश कर महर्षि च्यवन को युवावस्था प्राप्त हुई। महर्षि च्यवन ने अश्विनी कुमारों को इंद्र के दरबार में अमृत पान का भरोसा दिलाया था। उन्होंने इसके लिए एक यज्ञ शुरू किया। भगवान इंद्र को यह नागवार गुजरा और उन्होंने महर्षि च्यवन को वज्र से नाश करने की चेतावनी दी। इंद्र के ऐसे वचनों से भयभीत होकर महर्षि महाकाल वन पहुंचे। वहां जाकर एक दिव्य शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया। भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने महर्षि च्यवन को इंद्र के वज्र प्रहार से अभय होने का आशीर्वाद दिया। तभी से यह लिंग च्यवनेशर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।

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च्यवनेश्वर महादेव मंदिर – फोटो : अमर उजाला

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दुनियाभर में 84 महादेव हैं और इस क्रम में 30वां स्थान रखने वाले श्री च्यवनेश्वर महादेव की महिमा निराली है। भगवान इंद्र ने क्रोधित होकर महर्षि च्यवन पर वज्र प्रहार किया था। इस शिवलिंग के दर्शन करने से महर्षि च्यवन न केवल अभय हुए थे, बल्कि वज्र का प्रहार भी बेअसर हुआ था।  

श्री च्यवनेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी पंडित पवन गुरु का कहना है कि सप्तसागरों में से एक है पुरुषोत्तम सागर। उसके सामने इंदिरा नगर ईदगाह के सामने अति-प्राचीन मंदिर विद्यमान है। यहां भगवान शिव की काले पाषाण की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर में भगवान शिव के साथ ही माता पार्वती, श्री गणेश, कार्तिकेय स्वामी और नंदी जी की प्रतिमा मनोहारी है। मंदिर में वैसे तो प्रतिदिन भगवान का विशेष पूजन-अर्चन कर महाआरती होती है लेकिन सावन मास में भगवान के पूजन-अर्चन का विशेष क्रम जारी रहता है। 

समस्त मनोकामना पूर्ण करते हैं च्यवनेश्वर महादेव
मंदिर के पुजारी की माने तो यदि सच्चे मन से श्री च्यवनेश्वर महादेव का पूजन अर्चन किया जाए तो न सिर्फ भय से मुक्ति मिलती है बल्कि हमारी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। 

यह है श्री च्यवनेश्वर की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह वही शिवलिंग है जिसकी आराधना करने से च्यवन ऋषि को इंद्र का वज्र प्रहार भी नुकसान नहीं पहुंचा सका था। महर्षि भृगु के पुत्र थे च्यवन, जो परम तपस्वी थे। जिस समय वे वितस्ता नदी के किनारे तपस्या में लीन थे, उसी समय राजा शर्याति की कन्या सुकन्या ने उनके शरीर पर धूल-मिट्टी होने के कारण बाम्बी बनने की अनभिज्ञता के कारण सखियों के साथ च्यवन ऋषि के चमकते हुए नेत्रों में कांटे चुभा दिए। इससे नेत्रों से खून निकलने लगा था। इससे ऋषि च्यवन अत्यधिक दुखी हुए जिससे राजा शर्याति की सेना में बीमारियां फैलना शुरू हो गई। शर्याति अपनी बेटी सुकन्या के साथ महर्षि च्यवन के पास गए और महर्षि से माफी मांगी थी। सुकन्या को महर्षि च्यवन को पत्नी के रूप में सौंप दिया था। इसके कुछ समय बाद शर्याति के राज्य में बीमारियां रुक गईं। कुछ समय बाद महर्षि च्यवन के आश्रम में दो अश्विनी कुमार आए। उन्होंने सुकन्या के सामने विवाह प्रस्ताव रखा। सुकन्या मना करके वहां से जाने लगी तभी अश्विनी कुमार ने कहा कि वे महर्षि च्यवन को युवा बना सकते हैं। महर्षि मान गए और अश्विनी कुमारों के साथ जल में प्रवेश कर महर्षि च्यवन को युवावस्था प्राप्त हुई। महर्षि च्यवन ने अश्विनी कुमारों को इंद्र के दरबार में अमृत पान का भरोसा दिलाया था। उन्होंने इसके लिए एक यज्ञ शुरू किया। भगवान इंद्र को यह नागवार गुजरा और उन्होंने महर्षि च्यवन को वज्र से नाश करने की चेतावनी दी। इंद्र के ऐसे वचनों से भयभीत होकर महर्षि महाकाल वन पहुंचे। वहां जाकर एक दिव्य शिवलिंग का पूजन-अर्चन किया। भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने महर्षि च्यवन को इंद्र के वज्र प्रहार से अभय होने का आशीर्वाद दिया। तभी से यह लिंग च्यवनेशर के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।

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