ujjain-news:-ऐसी-है-बाबा-महाकाल-की-शाही-सवारी,-11वीं-शताब्दी-में-राजा-भोज-ने-इस-परंपरा-को-प्रदान-की भव्यता
सावन और भादौ के सोमवार को बाबा महाकाल नगर भ्रमण पर निकलते हैं। दो सितंबर को  बाबा महाकाल की शाही सवारी है। यह इस साल की अंतिम सवारी होगी।   बाबा महाकाल की सवारी को 11वीं शताब्दी में भव्यता प्राप्त हुई। विस्तार Follow Us मध्यप्रदेश के उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर विराजमान हैं, जो शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकाल मंदिर में दर्शन करने के लिए भोलेनाथ के भक्तों का तांता साल भर लगा रहता है, लेकिन सावन के महीने में यह भीड़ और बढ़ जाती है, जब उज्जैन महाकाल की सवारी निकाली जाती है। उज्जैन महाकाल की सवारी का इतिहास बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण है। इसे बाबा महाकाल की सवारी भी कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उज्जैन में महाकाल की सवारी क्यों निकाली जाती है और इसका इतिहास कितना पुराना है? आइए, हम आपको बताते हैं... महाकाल की सवारी का इतिहास महाकाल की सवारी की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। ग्यारहवीं शताब्दी के राजा भोज ने इस परंपरा को बड़े रूप में शुरू किया था। उन्होंने इस जुलूस में कई नए कलाकारों और संगीतकारों को शामिल किया। मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर भी इस जुलूस में शामिल हुए थे। सिंधिया वंश के राजाओं ने इस जुलूस को और अधिक भव्य बनाया, जिसमें नए रथ और हाथी शामिल किए गए। निकाली जाती है भव्य यात्रा महाकाल की सवारी एक भव्य यात्रा है, जिसमें विभिन्न कलाकार, संगीतकार और नर्तक शामिल होते हैं। भगवान महाकाल को एक रथ में बैठाकर शहर में घुमाया जाता है। यह रथ चांदी का बना होता है और इसे कई प्रकार के फूलों से सजाया जाता है। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं और महाकाल के जयकारे लगाते हैं। महाकाल की एक झलक पाने के लिए भक्तों की भीड़ हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाती है। जुलूस में भंडारी, नागा साधु, ढोल-नगाड़े वाले, तलवारबाज, घुड़सवार और अन्य कलाकार शामिल होते हैं। महीनों पहले से होती हैं सवारी की तैयारियां महाकाल की सवारी भगवान महाकाल के प्रति भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है। यह जुलूस भगवान महाकाल की शक्ति और महिमा का भी प्रतीक है। उज्जैन शहर का यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव शहर की समृद्ध संस्कृति और विरासत को दर्शाता है। इसकी तैयारियों में महाकाल मंदिर के पुजारी से लेकर मंदिर समिति के सभी सदस्य और भक्तगण महीनों पहले से जुट जाते हैं। महाकाल की सवारी का महत्व भक्त महाकाल को उनकी पसंद के भोग अर्पित करते हैं, जिनमें फूल, फल, मिठाई, और दूध शामिल होते हैं। महाकाल की सवारी के दौरान भक्त महाकाल के जयकारे लगाते हैं और उनके नाम का जाप करते हैं। यह भव्य और पवित्र जुलूस महाकाल के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन है। उज्जैन के साथ-साथ दूर-दूर से लोग महाकाल की एक झलक पाने के लिए यहां आते हैं। शिव की शक्ति का अनुग्रह कराती है बाबा महाकाल की सवारी महाकाल की सवारी एक भव्य जुलूस है, जो भगवान महाकालेश्वर को समर्पित है। यह जुलूस हर साल श्रावण मास के भाद्रपद शुक्ल पक्ष में निकाला जाता है। इस सवारी का आयोजन महाशिवरात्रि के अवसर पर उज्जैन के महाकाल मंदिर में होता है। यह भारतीय संस्कृति और धार्मिक आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण प्रतीक है। इस सवारी में महाकाल की मूर्ति को पारंपरिक तरीके से सवारी में निकाला जाता है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक धाराओं को सम्मिलित किया जाता है। महाकाल की सवारी का आयोजन बड़ी धूमधाम से होता है और यह लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। यह सवारी ध्यान और आध्यात्मिकता के माहौल में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है और लोगों को शिव की शक्ति और अनुग्रह का अनुभव कराती है। ग्यारहवीं शताब्दी में राजा भोज ने इस परंपरा को भव्यता प्रदान की।  रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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सावन और भादौ के सोमवार को बाबा महाकाल नगर भ्रमण पर निकलते हैं। दो सितंबर को 
बाबा महाकाल की शाही सवारी है। यह इस साल की अंतिम सवारी होगी।   बाबा महाकाल की सवारी को 11वीं शताब्दी में भव्यता प्राप्त हुई।

विस्तार Follow Us

मध्यप्रदेश के उज्जैन में भगवान महाकालेश्वर विराजमान हैं, जो शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। महाकाल मंदिर में दर्शन करने के लिए भोलेनाथ के भक्तों का तांता साल भर लगा रहता है, लेकिन सावन के महीने में यह भीड़ और बढ़ जाती है, जब उज्जैन महाकाल की सवारी निकाली जाती है। उज्जैन महाकाल की सवारी का इतिहास बहुत ही रोचक और महत्वपूर्ण है। इसे बाबा महाकाल की सवारी भी कहा जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि उज्जैन में महाकाल की सवारी क्यों निकाली जाती है और इसका इतिहास कितना पुराना है? आइए, हम आपको बताते हैं…

महाकाल की सवारी का इतिहास
महाकाल की सवारी की परंपरा सदियों पुरानी है। इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। ग्यारहवीं शताब्दी के राजा भोज ने इस परंपरा को बड़े रूप में शुरू किया था। उन्होंने इस जुलूस में कई नए कलाकारों और संगीतकारों को शामिल किया। मुगल सम्राट अकबर और जहांगीर भी इस जुलूस में शामिल हुए थे। सिंधिया वंश के राजाओं ने इस जुलूस को और अधिक भव्य बनाया, जिसमें नए रथ और हाथी शामिल किए गए।

निकाली जाती है भव्य यात्रा
महाकाल की सवारी एक भव्य यात्रा है, जिसमें विभिन्न कलाकार, संगीतकार और नर्तक शामिल होते हैं। भगवान महाकाल को एक रथ में बैठाकर शहर में घुमाया जाता है। यह रथ चांदी का बना होता है और इसे कई प्रकार के फूलों से सजाया जाता है। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में शामिल होते हैं और महाकाल के जयकारे लगाते हैं। महाकाल की एक झलक पाने के लिए भक्तों की भीड़ हफ्तों पहले से ही शुरू हो जाती है। जुलूस में भंडारी, नागा साधु, ढोल-नगाड़े वाले, तलवारबाज, घुड़सवार और अन्य कलाकार शामिल होते हैं।

महीनों पहले से होती हैं सवारी की तैयारियां
महाकाल की सवारी भगवान महाकाल के प्रति भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक मानी जाती है। यह जुलूस भगवान महाकाल की शक्ति और महिमा का भी प्रतीक है। उज्जैन शहर का यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक उत्सव शहर की समृद्ध संस्कृति और विरासत को दर्शाता है। इसकी तैयारियों में महाकाल मंदिर के पुजारी से लेकर मंदिर समिति के सभी सदस्य और भक्तगण महीनों पहले से जुट जाते हैं।

महाकाल की सवारी का महत्व
भक्त महाकाल को उनकी पसंद के भोग अर्पित करते हैं, जिनमें फूल, फल, मिठाई, और दूध शामिल होते हैं। महाकाल की सवारी के दौरान भक्त महाकाल के जयकारे लगाते हैं और उनके नाम का जाप करते हैं। यह भव्य और पवित्र जुलूस महाकाल के प्रति श्रद्धा और भक्ति का प्रदर्शन है। उज्जैन के साथ-साथ दूर-दूर से लोग महाकाल की एक झलक पाने के लिए यहां आते हैं।

शिव की शक्ति का अनुग्रह कराती है बाबा महाकाल की सवारी
महाकाल की सवारी एक भव्य जुलूस है, जो भगवान महाकालेश्वर को समर्पित है। यह जुलूस हर साल श्रावण मास के भाद्रपद शुक्ल पक्ष में निकाला जाता है। इस सवारी का आयोजन महाशिवरात्रि के अवसर पर उज्जैन के महाकाल मंदिर में होता है। यह भारतीय संस्कृति और धार्मिक आध्यात्मिकता का महत्वपूर्ण प्रतीक है। इस सवारी में महाकाल की मूर्ति को पारंपरिक तरीके से सवारी में निकाला जाता है, जिसमें विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक धाराओं को सम्मिलित किया जाता है। महाकाल की सवारी का आयोजन बड़ी धूमधाम से होता है और यह लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। यह सवारी ध्यान और आध्यात्मिकता के माहौल में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है और लोगों को शिव की शक्ति और अनुग्रह का अनुभव कराती है।

ग्यारहवीं शताब्दी में राजा भोज ने इस परंपरा को भव्यता प्रदान की। 

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