न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: उज्जैन ब्यूरो Updated Mon, 12 Aug 2024 07: 11 AM IST Ujjain: गर्भगृह में सबसे पहले भगवान का जलाभिषेक व पूजन दर्शन कर श्रृंगार किया गया और उसके बाद भस्म आरती की गई। मंदिर में जैसे ही भगवान के दर्शन शुरू हुए वैसे ही चारों और जय श्री महाकाल की गूंज गुंजायमान हो गई। बाबा महाकाल विस्तार Follow Us विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज श्रावण शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर बाबा महाकाल अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए रात 2.30 बजे जागे। भस्म आरती के पहले वीरभद्र और मानभद्र से आज्ञा लेकर सबसे पहले चांदी द्वार को खोला गया उसके बाद घंटी बजाकर भगवान तक यह सूचना पहुंचाई गई की पुजारी व अन्य लोग आपको जगाने के लिए मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं। गर्भगृह में सबसे पहले भगवान का जलाभिषेक व पूजन दर्शन कर श्रृंगार किया गया और उसके बाद भस्म आरती की गई। मंदिर में जैसे ही भगवान के दर्शन शुरू हुए वैसे ही चारों और जय श्री महाकाल की गूंज गुंजायमान हो गई। विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पुजारी ने बताया कि श्रावण मास के चौथे सोमवार शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर आज सुबह 3 बजे भगवान वीरभद्र की आज्ञा लेकर मंदिर के पट खोले गए। जिसके बाद सबसे पहले भगवान का शुद्ध जल से स्नान, पंचामृत स्नान करवाने के साथ ही केसर युक्त जल अर्पित किया गया। आज के श्रृंगार की विशेषता यह रही कि आज बाबा महाकाल का भांग मावे और ड्रायफ्रूट से श्रृंगार किया गया और उन्हें फूलों की माला से सजाया गया। श्रृंगार के दौरान उनके मस्तक पर त्रिपुंड, सूर्य, चन्द्र भी सजाया गया। जिसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भस्म अर्पित की गई इसके बाद पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से गुंजायमान हो गया।  सीधी का घसिया बाजा नृत्य दल श्री महाकालेश्वर भगवान की चतुर्थ सवारी मे शामिल होगा श्री महाकालेश्वर भगवान की चौथे सोमवार की सवारी में भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की मंशानुरूप जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी की सवारी में जनजातीय कलाकारों का दल भी सहभागिता करेगा। 12 अगस्त को घासी जनजातीय घसिया बाजा नृत्य सीधी के उपेन्द्र सिंह के नेतृत्व में इनका दल श्री महाकालेश्वर भगवान की चौथी सवारी में पालकी के आगे भजन मंडलियों के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगा। विंध्य मेकल क्षेत्र का प्रसिद्ध घसिया बाजा सीधी के बकबा, सिकरा, नचनी महुआ, गजरा बहरा, सिंगरावल आदि ग्रामों में निवासरत घसिया एवं गोंड जनजाति के कलाकरों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य की उत्पत्ति के संबंध में किंवदंती है कि यह नृत्य शिव की बारात में विभिन्न वनवासियों द्वारा किए जा रहे करतब का एक रुप है। जिस तरह शिव की बारात में दानव, मानव, भूत-प्रेत, भिन्न भिन्न तरह के जानवर आदि शामिल हुए थे। कुछ उसी तरह इस नृत्य में भी कलाकारों द्वारा अनुकरण किया जाता है। इस नृत्य के कलाकार इसे 12 अलग अलग तालों में पूरा करते है। यह गुदुम बाजा, डफली, शहनाई, टिमकी, मांदर, घुनघुना वाद्य यंत्रो का उपयोग करते है। साथ ही इनकी वेशभूषा बंडी, पजामा, कोटी आदि होती है। भस्म आरती श्रंगार और नृत्य..... भस्म आरती श्रंगार और नृत्य..... भस्म आरती श्रंगार और नृत्य..... रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: उज्जैन ब्यूरो Updated Mon, 12 Aug 2024 07: 11 AM IST

Ujjain: गर्भगृह में सबसे पहले भगवान का जलाभिषेक व पूजन दर्शन कर श्रृंगार किया गया और उसके बाद भस्म आरती की गई। मंदिर में जैसे ही भगवान के दर्शन शुरू हुए वैसे ही चारों और जय श्री महाकाल की गूंज गुंजायमान हो गई। बाबा महाकाल

विस्तार Follow Us

विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर में आज श्रावण शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि पर बाबा महाकाल अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए रात 2.30 बजे जागे। भस्म आरती के पहले वीरभद्र और मानभद्र से आज्ञा लेकर सबसे पहले चांदी द्वार को खोला गया उसके बाद घंटी बजाकर भगवान तक यह सूचना पहुंचाई गई की पुजारी व अन्य लोग आपको जगाने के लिए मंदिर में प्रवेश कर रहे हैं। गर्भगृह में सबसे पहले भगवान का जलाभिषेक व पूजन दर्शन कर श्रृंगार किया गया और उसके बाद भस्म आरती की गई। मंदिर में जैसे ही भगवान के दर्शन शुरू हुए वैसे ही चारों और जय श्री महाकाल की गूंज गुंजायमान हो गई।

विश्व प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी पंडित आशीष पुजारी ने बताया कि श्रावण मास के चौथे सोमवार शुक्ल पक्ष की अष्टमी पर आज सुबह 3 बजे भगवान वीरभद्र की आज्ञा लेकर मंदिर के पट खोले गए। जिसके बाद सबसे पहले भगवान का शुद्ध जल से स्नान, पंचामृत स्नान करवाने के साथ ही केसर युक्त जल अर्पित किया गया। आज के श्रृंगार की विशेषता यह रही कि आज बाबा महाकाल का भांग मावे और ड्रायफ्रूट से श्रृंगार किया गया और उन्हें फूलों की माला से सजाया गया। श्रृंगार के दौरान उनके मस्तक पर त्रिपुंड, सूर्य, चन्द्र भी सजाया गया। जिसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े की ओर से भस्म अर्पित की गई इसके बाद पूरा मंदिर परिसर जय श्री महाकाल की गूंज से गुंजायमान हो गया। 

सीधी का घसिया बाजा नृत्य दल श्री महाकालेश्वर भगवान की चतुर्थ सवारी मे शामिल होगा
श्री महाकालेश्वर भगवान की चौथे सोमवार की सवारी में भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव की मंशानुरूप जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद के माध्यम से भगवान श्री महाकालेश्वर जी की सवारी में जनजातीय कलाकारों का दल भी सहभागिता करेगा। 12 अगस्त को घासी जनजातीय घसिया बाजा नृत्य सीधी के उपेन्द्र सिंह के नेतृत्व में इनका दल श्री महाकालेश्वर भगवान की चौथी सवारी में पालकी के आगे भजन मंडलियों के साथ अपनी प्रस्तुति देते हुए चलेगा। विंध्य मेकल क्षेत्र का प्रसिद्ध घसिया बाजा सीधी के बकबा, सिकरा, नचनी महुआ, गजरा बहरा, सिंगरावल आदि ग्रामों में निवासरत घसिया एवं गोंड जनजाति के कलाकरों द्वारा किया जाता है।

इस नृत्य की उत्पत्ति के संबंध में किंवदंती है कि यह नृत्य शिव की बारात में विभिन्न वनवासियों द्वारा किए जा रहे करतब का एक रुप है। जिस तरह शिव की बारात में दानव, मानव, भूत-प्रेत, भिन्न भिन्न तरह के जानवर आदि शामिल हुए थे। कुछ उसी तरह इस नृत्य में भी कलाकारों द्वारा अनुकरण किया जाता है। इस नृत्य के कलाकार इसे 12 अलग अलग तालों में पूरा करते है। यह गुदुम बाजा, डफली, शहनाई, टिमकी, मांदर, घुनघुना वाद्य यंत्रो का उपयोग करते है। साथ ही इनकी वेशभूषा बंडी, पजामा, कोटी आदि होती है।

भस्म आरती श्रंगार और नृत्य…..

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