शिप्रा घाट – फोटो : अमर उजाला
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उज्जैन में शिप्रा प्रदूषण को लेकर विक्रम विश्वविद्यालय कार्य परिषद सदस्य द्वारा लगाई एनजीटी की याचिका मे सुनवाई हुई, जिसमें एनजीटी के निर्देश पर देवास, इंदौर, उज्जैन, रतलाम कलेक्टर ने जहां अपनी रिपोर्ट सौंपी। वहीं, नोडल एजेंसी ने अपनी पृथक से रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
बहस के दौरान अनेक बिंदुओं पर चर्चा हुई, जिसमें चारो जिलों के कलेक्टर कई मुद्दों पर पूरी जानकारी नहीं दे पाये। चारो कलेक्टर एवं नोडल एजेंसी की रिपोर्ट पर एनजीटी ने सभी जिलों में एडवोकेट्स को नियुक्त करने और अपनी रिपोर्ट देने के निर्देश दिये हैं। सुनवाई के दौरान एनजीटी ने कहा कि उज्जैन की रिपोर्ट ठीक नहीं है। सुनवाई के दौरान सामने आया कि उज्जैन और देवास जिले के नाले शिप्रा में मिल रहे हैं। इस कारण शिप्रा प्रदूषित हो रही है।
देवास की रिपोर्ट में कहा गया कि नाला है और शिप्रा नदी में जाने से पहले सूख जाता है। इंदौर कलेक्टर ने अपनी रिपोर्ट में स्वीकारा कि रोज 100 एमएलडी सीवरेज यानी नाले का पानी खान नदी मे मिलता है। यही आगे जाकर शिप्रा में मिलता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने स्वीकार किया कि नोडल एजेंसी और कलेक्टरों ने मिलकर रिपोर्ट बनाई है।
एनजीटी ने कहा रिपोर्ट मे अनेक जगह स्पष्ट नहीं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी स्पष्ट रूप से माननीय न्यायाधीशों के निर्णय का जवाब नहीं दे सके जिस पर अनेक बार न्यायाधीशों में नाराजगी जाहिर की। एसटीपी कंप्लीट नहीं है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने माना। न्यायालय में सामने आया कि उद्योगों में 68 उद्योग ऐसे हैं जो प्रदूषित पानी छोड़ते हैं।
न्यायालय ने पूछा कि इनके उपचार की क्या प्रक्रिया है, तब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने कहा कि यह पानी ट्रीटमेंट होकर गार्डन में इनका उपयोग किया जाता है। जिस पर न्यायाधीश ने कहा कि कितनी जमीन में गार्डन है और कहां उपयोग होता है। इतना पानी प्रतिदिन गार्डन में डालेंगे तो उसकी क्या स्थिति होगी इसका कोई स्पष्ट जवाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी नहीं दे पाए।
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