न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: अंकिता विश्वकर्मा Updated Sat, 15 Apr 2023 10: 29 AM IST
आस्था की 118 किलोमीटर लंबी पंचकोशी यात्रा दो दिन पहले ही शुरू हो गई। अलग-अलग जत्थों मे शामिल ग्रामीण गुरुवार शाम से ही यात्रा पर रवाना हो गए। शुक्रवार सुबह होते ही बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान नागचंद्रेश्वर से बल लेकर यात्रा की शुरुआत की ओर दोपहर तक यात्री पहले पड़ाव पिंग्लेश्वर पर पहुंच गए। यहां आस्थावानों ने प्रथम द्वारपाल भगवान श्री पिंग्लेश्वर महादेव का दर्शन-पूजन किया।
धार्मिक मान्यता अनुसार पंचकोशी यात्रा का शुभारंभ वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि शनिवार से होना था और यात्री पांच दिन में श्री पिंग्लेश्वर महादेव, श्री कायवरुणेश्वर महादेव, श्री दुर्दुरेश्वर महादेव तथा श्री बिल्वकेश्वर महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना कर इसे अमावस्या तक पूर्ण करते, लेकिन इसके पहले ही यह यात्रा शुरू हो गई।
भजन-कीर्तन करते हुए निकले श्रद्धालु
प्रतिवर्ष की तरह इस साल भी स्वयंसेवी व सामाजिक संस्थाओं द्वारा पंचकोशी यात्रियों की अलग-अलग तरह से सेवा की जा रही है। नागचंद्रेश्वर मंदिर से निकलने के बाद यात्री पटनी बाजार, गोपाल, मंदिर, छत्रीचौक, कंठाल, निजातपुरा, कोयला फाटक, हीरा मिल की चाल से आगे बढ़ते हैं। इस पूरे मार्ग पर यात्रियों को पोहे, ककड़ी, ठंडा पानी के अलावा भोजन पैकेट वितरित किए जा रहे हैं। यात्रा में बच्चों के साथ ही बूढ़े भी शामिल हैं, जो दैनिक उपयोग का जरूरी सामान गठरी में बांधकर भजन कीर्तन करते हुए पड़ाव की ओर बढ़ रहे हैं।
प्रशासन की व्यवस्थाएं अधूरी
पहले पड़ाव पिंगलेश्वर पर प्रशासन और नगर निगम द्वारा की जाने वाली तैयारियां अधूरी थी। हालांकि यात्रा में शामिल लोगों को प्रशासन की तैयारियों से कोई सरोकार नजर नहीं आया।
पंचकोशी यात्रा का महत्व
पूर्णिमा से वैशाख मास प्रारंभ होता है। वैशाख मास का महत्व कार्तिक और माघ माह के समान है। इस मास में जल दान, कुंभ दान का विशेष महत्व है। वैशाख मास स्नान का महत्व अवंति खंड में है। जो लोग पूरे वैशाख स्नान का लाभ नहीं ले पाते हैं, वे अंतिम पांच दिनों में पूरे मास का पुण्य अर्जित कर सकते हैं। वैशाख मास एक पर्व के समान है। इसके महत्व के चलते कुंभ भी इसी मास में आयोजित होता है। पंचकोशी यात्रा में सभी ज्ञात-अज्ञात देवताओं की प्रदक्षिणा का पुण्य इस पवित्र मास में मिलता है।
सिर पर गठरी मुंह में भगवान का नाम
धार्मिक नगरी उज्जैन में शुरू हुई 118 किलोमीटर लंबी पंचकोशी यात्रा पांच दिनों में उज्जैन के चारों द्वारों का भ्रमण करेगी। यह आस्था की ऐसी यात्रा है, जिसमें तपती दोपहरी में लाखों श्रद्धालु माथे पर गठरी रखकर इस यात्रा को कर रहे है और अपने मुख से यही जयघोष करते नजर आ रहे है कि हाथ लकड़िया चंदन की जय बोलो यशोदा नंदन की।
राजा विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है पंचकोशी यात्रा
पंचकोशी यात्रा अनादिकाल से प्रचलित थी, जिसे राजा विक्रमादित्य ने प्रोत्साहित किया। स्कंदपुराण के अनुसार अनन्तकाल तक काशीवास की अपेक्षा वैशाख मास में मात्र पांच दिवस अवंतिवास का पुण्य फल अधिक है। वैशाख कृष्ण दशमी पर शिप्रा स्नान व नागचंद्रेश्वर पूजन के बाद यात्रा प्रारम्भ होती है, जो 118 किमी की परिक्रमा करने के बाद कर्क तीर्थवास में समाप्त होती है और तत्काल अष्टतीर्थ यात्रा आरंभ होकर वैशाखा कृष्ण अमावस्या को शिप्रा स्नान के बाद पंचकोशी यात्रा का समापन होता है। उज्जैन का आकार चौकोर है। क्षेत्र रक्षक देवता श्री महाकालेश्वर का स्थान मध्य बिन्दु में है। इस बिन्दु के अलग-अलग अन्तर से मन्दिर स्थित हैं, जो द्वारपाल कहलाते हैं। इनमें पूर्व में पिंगलेश्वर, दक्षिण में कायावरोहणेश्वर, पश्चिम में बिल्वकेश्वर तथा उत्तर में दुर्देश्वर महादेव जो चौरासी महादेव मन्दिर श्रृंखला के अन्तिम चार मन्दिर हैं।
118 किलोमीटर यात्रा में कुल 9 पड़ाव
पंचकोशी यात्रा 118 किलोमीटर तक निकाली जाती है और इसमें कुल 9 पड़ाव व उप-पड़ाव आते हैं।
– नागचंद्रेश्वर से पिंगलेश्वर पड़ाव 12 किलोमीटर
– पिंगलेश्वर से कायावरोहणेश्वर पड़ाव 23 किलोमीटर
– कायावरोहणेश्वर से नलवा उप पड़ाव 21 किलोमीटर
– नलवा उप पड़ाव से बिल्वकेश्वर पड़ाव अम्बोदिया छह किलोमीटर
– अम्बोदिया पड़ाव से कालियादेह उप पड़ाव 21 किलोमीटर
– कालियादेह से दुर्दुश्वर पड़ाव जैथल 07 किलोमीटर
– दुर्दुश्वर से पिंगलेश्वर होते हुए उंडासा 16 किलोमीटर
– उडांसा उप पड़ाव से क्षिप्रा घाट रेत मैदान उज्जैन 12 किलोमीटर
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