Tribal Affairs: देश के आदिवासी संस्कृति, कला और भाषा के संरक्षण के लिए सरकार कई तरह के कदम उठा रही है. केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) के जरिए जनजातीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराती है. नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करने के साथ ही स्थानीय भाषाओं में वर्णमाला,कविताएं और कहानियां प्रकाशित की जा रही है.  आदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने का हो रहा है प्रयास आदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न आदिवासी भाषाओं पर किताबें, पत्रिकाएं प्रकाशित करने का काम किया जा रहा है. साथ ही आदिवासी लोक परंपरा के संरक्षण और संवर्धन के लिए विभिन्न जनजातियों की लोक कथाओं की डिजिटलीकरण किया जा रहा है. मौखिक साहित्य (गीत, पहेलियों और कथाओं को जमा करने का काम हो रहा है. स्थानीय जनजातीय बोलियों में सिकलसेल एनीमिया रोग जागरूकता मॉड्यूल, निदान एवं उपचार मॉड्यूल तैयार करने का काम किया गया है ताकि अधिक से अधिक आदिवासी लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके. सम्मेलन, सेमिनार, के जरिए आदिवासी साहित्य का किया जा रहा है प्रचारआदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न जनजातीय समुदायों के सम्मेलन, सेमिनार, कार्यशालाओं और आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन करती है. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के साथ-साथ संबंधित समुदायों के भाषा विशेषज्ञों को जनजातीय बोलियों और भाषा में शब्दकोश विकसित करने में शामिल किया जाता है. शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013 में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर के अंतर्गत ‘लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण योजना शुरू करी गयी और अब तक 10 हजार अधिक कम बोली जाने वाली भाषाओं का डिजिटलीकरण किया गया है. 

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Tribal Affairs: देश के आदिवासी संस्कृति, कला और भाषा के संरक्षण के लिए सरकार कई तरह के कदम उठा रही है. केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में जनजातीय अनुसंधान संस्थानों (टीआरआई) के जरिए जनजातीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराती है. नयी शिक्षा नीति 2020 के तहत बहुभाषी शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए आदिवासी भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करने के साथ ही स्थानीय भाषाओं में वर्णमाला,कविताएं और कहानियां प्रकाशित की जा रही है. 

आदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने का हो रहा है प्रयास आदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न आदिवासी भाषाओं पर किताबें, पत्रिकाएं प्रकाशित करने का काम किया जा रहा है. साथ ही आदिवासी लोक परंपरा के संरक्षण और संवर्धन के लिए विभिन्न जनजातियों की लोक कथाओं की डिजिटलीकरण किया जा रहा है. मौखिक साहित्य (गीत, पहेलियों और कथाओं को जमा करने का काम हो रहा है. स्थानीय जनजातीय बोलियों में सिकलसेल एनीमिया रोग जागरूकता मॉड्यूल, निदान एवं उपचार मॉड्यूल तैयार करने का काम किया गया है ताकि अधिक से अधिक आदिवासी लोगों के बीच जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके. सम्मेलन, सेमिनार, के जरिए आदिवासी साहित्य का किया जा रहा है प्रचारआदिवासी साहित्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार विभिन्न जनजातीय समुदायों के सम्मेलन, सेमिनार, कार्यशालाओं और आदान-प्रदान कार्यक्रमों का आयोजन करती है. सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के साथ-साथ संबंधित समुदायों के भाषा विशेषज्ञों को जनजातीय बोलियों और भाषा में शब्दकोश विकसित करने में शामिल किया जाता है. शिक्षा मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2013 में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल), मैसूर के अंतर्गत ‘लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण और संरक्षण योजना शुरू करी गयी और अब तक 10 हजार अधिक कम बोली जाने वाली भाषाओं का डिजिटलीकरण किया गया है.