sehore-news:-कुबेरेश्वर-धाम-में-श्रद्धालुओं-की-उमड़ी-भीड़,-महाराष्ट्र-से-कांवड़-लेकर-पहुंचे-सैकड़ों-भक्त
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सिहोर Published by: अर्पित याज्ञनिक Updated Sat, 31 Aug 2024 06: 40 PM IST चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों सैकड़ों श्रद्धालु महाराष्ट्र से कांवड़ लेकर पहुंच रहे हैं। शनिवार को छत्रपति संभाजी नगर से आए 36 से अधिक श्रद्धालु तपती धूप में 11 किलोमीटर पैदल चलकर सीवन नदी के तट से धाम तक पहुंचे।  कुबेरेश्वर धाम में उमड़े श्रद्धालु। - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों प्रतिदिन महाराष्ट्र से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लेकर आ रहे हैं, कई लोग तो ऐसे हैं, जो अपने गांव और नगर की पवित्र नदियों का जल लेकर आते है। वहीं, शहर के सीवन नदी के तट पहुंचकर धाम तक पैदल ही कांवड़ लेकर जा रहे हैं।  शनिवार को तपती धूप के मध्य धाम पर पहुंचे 36 से अधिक श्रद्धालुओं ने बताया कि वह महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर से गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा के आशीर्वाद लेने के लिए जिला मुख्यालय के स्थित सीवन नदी के तट से करीब 11 किलोमीटर पैदल कांवड़ लेकर आए हैं। इसके अलावा कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो हजारों किलोमीटर पैदल चलकर भी आस्था और उत्साह के साथ बाबा के दर्शन कर भगवान का अभिषेक कर रहे हैं। इन श्रद्धालुओं का विठलेश सेवा समिति की और से पंडित समीर शुक्ला, विनय मिश्रा, आशीष वर्मा, आकाश शर्मा, मनोज दीक्षित मामा आदि ने सम्मान किया। मराठी संस्कृति में श्रावण मास को लेकर उत्साह महाराष्ट्र के शरद पुरोहित ने बताया कि मराठी संस्कृति में श्रावण मास को लेकर उत्साह है। हमारे यहां पर अमावस्या तक श्रावन का क्रम चलता रहेगा। श्रावण में ज्यादातर श्रद्धालु सोमवार के दिन व्रत रखते हैं। अविवाहित लड़कियां मनचाहा पति पाने के लिए श्रावण के सोमवार और मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत भी रखती हैं। श्रावण के दौरान कांवड़ यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक स्थानों पर जाते हैं और वहां से जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने जग कल्याण के लिए स्वयं पी लिया था, ताकि समस्त जीव-जंतु बचे रहें। यह जहर उनके गले में ही रह गया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और इसी कारण उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। इस जहर के प्रभाव को शांत करने के लिए तब सभी देवी-देवताओं और राक्षसों ने भगवान शिव को गंगाजल और दूध पिलाया, ताकि जहर का असर कम हो सके। यही कारण है कि श्रावण में शिवजी को गंगाजल और दूध चढ़ाया जाता है।  रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सिहोर Published by: अर्पित याज्ञनिक Updated Sat, 31 Aug 2024 06: 40 PM IST

चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों सैकड़ों श्रद्धालु महाराष्ट्र से कांवड़ लेकर पहुंच रहे हैं। शनिवार को छत्रपति संभाजी नगर से आए 36 से अधिक श्रद्धालु तपती धूप में 11 किलोमीटर पैदल चलकर सीवन नदी के तट से धाम तक पहुंचे।  कुबेरेश्वर धाम में उमड़े श्रद्धालु। – फोटो : अमर उजाला

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जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में इन दिनों प्रतिदिन महाराष्ट्र से सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लेकर आ रहे हैं, कई लोग तो ऐसे हैं, जो अपने गांव और नगर की पवित्र नदियों का जल लेकर आते है। वहीं, शहर के सीवन नदी के तट पहुंचकर धाम तक पैदल ही कांवड़ लेकर जा रहे हैं। 

शनिवार को तपती धूप के मध्य धाम पर पहुंचे 36 से अधिक श्रद्धालुओं ने बताया कि वह महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजी नगर से गुरुदेव पंडित प्रदीप मिश्रा के आशीर्वाद लेने के लिए जिला मुख्यालय के स्थित सीवन नदी के तट से करीब 11 किलोमीटर पैदल कांवड़ लेकर आए हैं। इसके अलावा कई श्रद्धालु ऐसे भी हैं जो हजारों किलोमीटर पैदल चलकर भी आस्था और उत्साह के साथ बाबा के दर्शन कर भगवान का अभिषेक कर रहे हैं। इन श्रद्धालुओं का विठलेश सेवा समिति की और से पंडित समीर शुक्ला, विनय मिश्रा, आशीष वर्मा, आकाश शर्मा, मनोज दीक्षित मामा आदि ने सम्मान किया।

मराठी संस्कृति में श्रावण मास को लेकर उत्साह
महाराष्ट्र के शरद पुरोहित ने बताया कि मराठी संस्कृति में श्रावण मास को लेकर उत्साह है। हमारे यहां पर अमावस्या तक श्रावन का क्रम चलता रहेगा। श्रावण में ज्यादातर श्रद्धालु सोमवार के दिन व्रत रखते हैं। अविवाहित लड़कियां मनचाहा पति पाने के लिए श्रावण के सोमवार और मंगलवार को मंगला गौरी का व्रत भी रखती हैं। श्रावण के दौरान कांवड़ यात्रा भी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें श्रद्धालु विभिन्न धार्मिक स्थानों पर जाते हैं और वहां से जल लाकर भगवान शिव को चढ़ाते हैं। हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय निकले विष को भगवान शिव ने जग कल्याण के लिए स्वयं पी लिया था, ताकि समस्त जीव-जंतु बचे रहें। यह जहर उनके गले में ही रह गया, जिससे उनका कंठ नीला हो गया और इसी कारण उन्हें नीलकंठ कहा जाता है। इस जहर के प्रभाव को शांत करने के लिए तब सभी देवी-देवताओं और राक्षसों ने भगवान शिव को गंगाजल और दूध पिलाया, ताकि जहर का असर कम हो सके। यही कारण है कि श्रावण में शिवजी को गंगाजल और दूध चढ़ाया जाता है। 

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