sehore-borewell-accident:-सृष्टि-की-मौत-पर-हाईकोर्ट-सख्त,-कहा-बोरवेल-साबित-हो-रहे-हैं-बच्चों-के-साइलेंट-किलर
जबलपुर हाई कोर्ट - फोटो : सोशल मीडिया विस्तार सीहोर जिले में पिछले दिनों बोरवेल में गिरने से तीन वर्षीय मासूम बच्ची की मौत के मामले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव, पीएचई विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बेंच ने आदेश में कहा है कि बोरवेल साइलेंट किलर साबित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण लापरवाही, जागरूकता में कमी तथा अपर्याप्त सुरक्षा उपाय है। चार हफ्ते बाद अगली सुनवाई होगी।     सीहोर जिले के ग्राम मुगावली में छह जून को तीन साल की मासूम सृष्टि खेलते समय खेत में खुले बोरवेल में गिर गयी थी। बच्ची बोलवेल में 40 फीट अंदर फंसी थी। उसे बचाने के लिए रोबोटिक विशेषज्ञों, सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ कर्मियों की टीम ने मेहनत की। रेस्क्यू ऑपरेशन में इस्तेमाल की गई मशीनों के कंपन के कारण वह 100 फीट गहराई तक चली गई थी। रेस्क्यू ऑपरेशन लगभग 50 घंटे तक चला। उसे बेहोशी की हालत में बाहर निकाला गया। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।    संज्ञान याचिका में कहा गया था कि बच्चों को जिंदा दफन करने वाले किलर बोरवेल का जाल बन गया है। सूची काफी लंबी है- राजकुमार, माही, साई, नदीम, सीमा, फतेहवीर, रितेश और हाल ही में सृष्टि के साथ-साथ कई और खुशमिजाज प्यारे बच्चों की मौत बोरवेल में गिरने से हुई है। कुछ को बचा लिया गया। कुछ इस गहरी और अंधेरी खाई में खो गए। बोरवेल दुर्घटनाएं समाज के लिए काली छाया हैं। जिससे निर्दोष लोगों की जान को गंभीर खतरा होता है। ऐसी घटनाओं से पूरे देश व परिवारों को असहनीय पीड़ा देती है। भूजल तक पहुंचने के लिए मूल्यवान संसाधन बोरवेल साइलेंट किलर बन गए हैं। बोरवेल में दुर्घटनाएं आमतौर पर लापरवाही, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा उपाय के कारण होती हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी सर्वोच्च न्यायालय ने छोटे बच्चों के बोरवेलों और नलकूपों में गिरने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय करने के लिए सभी राज्यों को निर्देश जारी किए थे। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के साथ ही केंद्र व राज्य सरकारों के दिशा-निर्देशों के बावजूद कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही है। बोरवेल से जुड़े जोखिमों और बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने जागरूकता अभियान संचालित किये जाने की आवश्यकता है।  आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली जरूरी सरकार को बोरवेल दुर्घटनाओं को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए विशेष टीमों और पर्याप्त उपकरणों सहित मजबूत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करनी चाहिए। परिणामों को कम करने और सफल बचाव कार्यों की संभावनाओं में सुधार के लिए त्वरित और समन्वित कार्रवाई महत्वपूर्ण है। इस मुद्दे के समाधान की जवाबदेही सर्वोपरि है। सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए कि लापरवाही, गैर-अनुपालन या बोरवेल दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।

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जबलपुर हाई कोर्ट – फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार सीहोर जिले में पिछले दिनों बोरवेल में गिरने से तीन वर्षीय मासूम बच्ची की मौत के मामले को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने संज्ञान याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव, पीएचई विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बेंच ने आदेश में कहा है कि बोरवेल साइलेंट किलर साबित हो रहे हैं। इसका मुख्य कारण लापरवाही, जागरूकता में कमी तथा अपर्याप्त सुरक्षा उपाय है। चार हफ्ते बाद अगली सुनवाई होगी।  

 
सीहोर जिले के ग्राम मुगावली में छह जून को तीन साल की मासूम सृष्टि खेलते समय खेत में खुले बोरवेल में गिर गयी थी। बच्ची बोलवेल में 40 फीट अंदर फंसी थी। उसे बचाने के लिए रोबोटिक विशेषज्ञों, सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ कर्मियों की टीम ने मेहनत की। रेस्क्यू ऑपरेशन में इस्तेमाल की गई मशीनों के कंपन के कारण वह 100 फीट गहराई तक चली गई थी। रेस्क्यू ऑपरेशन लगभग 50 घंटे तक चला। उसे बेहोशी की हालत में बाहर निकाला गया। डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

  
संज्ञान याचिका में कहा गया था कि बच्चों को जिंदा दफन करने वाले किलर बोरवेल का जाल बन गया है। सूची काफी लंबी है- राजकुमार, माही, साई, नदीम, सीमा, फतेहवीर, रितेश और हाल ही में सृष्टि के साथ-साथ कई और खुशमिजाज प्यारे बच्चों की मौत बोरवेल में गिरने से हुई है। कुछ को बचा लिया गया। कुछ इस गहरी और अंधेरी खाई में खो गए। बोरवेल दुर्घटनाएं समाज के लिए काली छाया हैं। जिससे निर्दोष लोगों की जान को गंभीर खतरा होता है। ऐसी घटनाओं से पूरे देश व परिवारों को असहनीय पीड़ा देती है। भूजल तक पहुंचने के लिए मूल्यवान संसाधन बोरवेल साइलेंट किलर बन गए हैं। बोरवेल में दुर्घटनाएं आमतौर पर लापरवाही, जागरूकता की कमी और अपर्याप्त सुरक्षा उपाय के कारण होती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी
सर्वोच्च न्यायालय ने छोटे बच्चों के बोरवेलों और नलकूपों में गिरने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के उपाय करने के लिए सभी राज्यों को निर्देश जारी किए थे। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के साथ ही केंद्र व राज्य सरकारों के दिशा-निर्देशों के बावजूद कोई कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही है। बोरवेल से जुड़े जोखिमों और बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में समुदायों को शिक्षित करने जागरूकता अभियान संचालित किये जाने की आवश्यकता है। 

आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली जरूरी
सरकार को बोरवेल दुर्घटनाओं को प्रभावी ढंग से संभालने के लिए विशेष टीमों और पर्याप्त उपकरणों सहित मजबूत आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली स्थापित करनी चाहिए। परिणामों को कम करने और सफल बचाव कार्यों की संभावनाओं में सुधार के लिए त्वरित और समन्वित कार्रवाई महत्वपूर्ण है। इस मुद्दे के समाधान की जवाबदेही सर्वोपरि है। सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए कि लापरवाही, गैर-अनुपालन या बोरवेल दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार किसी भी कार्य के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाए।

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