sawan-2023: नीलकंठेश्वर-महादेव-के-दर्शन-से-शांत-होते-हैं जन्मपत्रिका-के-विष-योग,-प्रदोष-में-होता-है-विशेष-पूजन
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: अंकिता विश्वकर्मा Updated Wed, 26 Jul 2023 03: 10 PM IST लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फॉलो करें श्री नीलकंठेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है और जन्मपत्रिका के विष योग में भी शांति होती है। इनके दर्शन करने मात्र से ही मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। नीलकंठेश्वर महादेव - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us उज्जैन के पिपलीनाका क्षेत्र में नगर निगम जोन में एक ऐसा चमत्कारी और दिव्य शिव मंदिर है। यह 84 महादेव में 54वां स्थान रखते हैं। मंदिर के गर्भगृह में माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की अष्टधातु की प्रतिमाएं विराजित हैं। साथ ही द्वार पर आकर्षक नंदी की प्रतिमा भी है। मंदिर के पुजारी वेदाचार्य पंडित सपन व्यास ने बताया कि मंदिर में विराजित श्री नीलकंठेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है और जन्मपत्रिका के विष योग में भी शांति होती है। इनके दर्शन करने मात्र से ही मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मंदिर में प्रदोष एवं सोमवार को पूजन करने का विशेष महत्व है। वैसे तो वर्षभर श्री नीलकंठेश्वर का पूजन अर्चन करने के साथ ही मंदिर में हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन श्री नीलकंठेश्वर के प्रिय मास श्रावण में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में 11 ब्राह्मण भगवान नीलकंठेश्वर का अभिषेक पूजन कर रुद्राभिषेक करते हैं। मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में होने वाले इस रुद्राभिषेक के साथ ही ढोल नगाड़ों से होने वाली दिव्य आरती में बड़ी संख्या में भक्तजन शामिल होते हैं।  श्री नीलकंठेश्वर की पौराणिक कथा नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर को लेकर एक कथा है, जिसमें महादेव देवी पार्वती को आद्यकल्प के राजा सत्यविक्रम की कथा सुनाते हैं जो कि शत्रु से हारकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में शरण लेने पहुंचा था। महर्षि ने उसे महाकाल वन स्थित एक शिवलिंग के दर्शन करने को कहा था। जब राजा सत्य विक्रम इस शिवलिंग का पूजन अर्चन करने पहुंचा तो यहां महर्षि के कथनानुसार एक तपस्वी दिखाई दिया, जो कि सूर्य की तरह तेजस्वी थे। उस परम तपस्वी ने सब जानकर एक हुंकार भरी जिससे पांच कन्याएं प्रकट हुईं, जिनमें एक सिंहासन पर आसीन थी तथा चार उसे उठाकर लाई थी। तपस्वी ने एक और हुंकार भरी जिससे कुछ अप्सराएं प्रकट होकर नृत्य करने लगी। राजा आश्चर्यचकित हो गए। तपस्वी ने उसे शत्रुओं पर विजय तथा सभी सुखोपभोग हेतु शिवराधना करने का कहां। राजा ने भक्तिपूर्वक ऐसा ही किया तथा उसे शिव का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उसे लिंग दर्शन से निष्कंटक राज्य प्राप्त हुआ। राजा तब अपने राज्य लौट गया जहां उसने चक्रवर्तित्व लाभ किया। तब से यह लिंग नीलकंठेश्वर के नाम से विख्यात है। बताया जाता है कि गृही, संन्यासी अथवा ब्रह्मचारी जो भी इस शिवलिंग के दर्शन करेगा उसके सहस्र जन्मकुल पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाएंगे तथा उसे सिद्धि प्राप्त होगी। उसका दान, तप, होम, जप, ध्यान व अध्ययन अक्षय हो जाता है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: अंकिता विश्वकर्मा Updated Wed, 26 Jul 2023 03: 10 PM IST

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श्री नीलकंठेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है और जन्मपत्रिका के विष योग में भी शांति होती है। इनके दर्शन करने मात्र से ही मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। नीलकंठेश्वर महादेव – फोटो : अमर उजाला

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उज्जैन के पिपलीनाका क्षेत्र में नगर निगम जोन में एक ऐसा चमत्कारी और दिव्य शिव मंदिर है। यह 84 महादेव में 54वां स्थान रखते हैं। मंदिर के गर्भगृह में माता पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की अष्टधातु की प्रतिमाएं विराजित हैं। साथ ही द्वार पर आकर्षक नंदी की प्रतिमा भी है। मंदिर के पुजारी वेदाचार्य पंडित सपन व्यास ने बताया कि मंदिर में विराजित श्री नीलकंठेश्वर महादेव का पूजन अर्चन करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त हो जाती है और जन्मपत्रिका के विष योग में भी शांति होती है। इनके दर्शन करने मात्र से ही मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। मंदिर में प्रदोष एवं सोमवार को पूजन करने का विशेष महत्व है। वैसे तो वर्षभर श्री नीलकंठेश्वर का पूजन अर्चन करने के साथ ही मंदिर में हर त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन श्री नीलकंठेश्वर के प्रिय मास श्रावण में प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में 11 ब्राह्मण भगवान नीलकंठेश्वर का अभिषेक पूजन कर रुद्राभिषेक करते हैं। मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त में होने वाले इस रुद्राभिषेक के साथ ही ढोल नगाड़ों से होने वाली दिव्य आरती में बड़ी संख्या में भक्तजन शामिल होते हैं। 

श्री नीलकंठेश्वर की पौराणिक कथा
नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर को लेकर एक कथा है, जिसमें महादेव देवी पार्वती को आद्यकल्प के राजा सत्यविक्रम की कथा सुनाते हैं जो कि शत्रु से हारकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में शरण लेने पहुंचा था। महर्षि ने उसे महाकाल वन स्थित एक शिवलिंग के दर्शन करने को कहा था। जब राजा सत्य विक्रम इस शिवलिंग का पूजन अर्चन करने पहुंचा तो यहां महर्षि के कथनानुसार एक तपस्वी दिखाई दिया, जो कि सूर्य की तरह तेजस्वी थे। उस परम तपस्वी ने सब जानकर एक हुंकार भरी जिससे पांच कन्याएं प्रकट हुईं, जिनमें एक सिंहासन पर आसीन थी तथा चार उसे उठाकर लाई थी। तपस्वी ने एक और हुंकार भरी जिससे कुछ अप्सराएं प्रकट होकर नृत्य करने लगी। राजा आश्चर्यचकित हो गए। तपस्वी ने उसे शत्रुओं पर विजय तथा सभी सुखोपभोग हेतु शिवराधना करने का कहां। राजा ने भक्तिपूर्वक ऐसा ही किया तथा उसे शिव का सान्निध्य प्राप्त हुआ। उसे लिंग दर्शन से निष्कंटक राज्य प्राप्त हुआ। राजा तब अपने राज्य लौट गया जहां उसने चक्रवर्तित्व लाभ किया। तब से यह लिंग नीलकंठेश्वर के नाम से विख्यात है। बताया जाता है कि गृही, संन्यासी अथवा ब्रह्मचारी जो भी इस शिवलिंग के दर्शन करेगा उसके सहस्र जन्मकुल पूर्व संचित पाप नष्ट हो जाएंगे तथा उसे सिद्धि प्राप्त होगी। उसका दान, तप, होम, जप, ध्यान व अध्ययन अक्षय हो जाता है।

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