न्यूज डेस्क, अमर उजाला, उज्जैन Published by: अंकिता विश्वकर्मा Updated Mon, 31 Jul 2023 09: 24 AM IST
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84 महादेव में 31वां स्थान रखने वाले श्री खंडेश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसमें भगवान शिव का काले पाषाण का शिवलिंग है। मंदिर में श्रीफल चढ़ाने का विशेष महत्व है। वन खंडेश्वर महादेव – फोटो : अमर उजाला
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धार्मिक नगरी उज्जैन में एक ऐसे देवता है जिनका यदि पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजन अर्चन किया जाए तो वह ऐसे खंडित व्रत और तप को भी परिपूर्ण कर देते हैं। जिसकी पूर्णता में अब तक कई व्यवधान आ रहे थे। यह एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में स्कंद पुराण के अवंतीखंड में उल्लेख है कि इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, कुबेर, अग्नि आदि देवताओं ने सिद्धि प्राप्ति की थी।
आगर रोड पर ग्राम खिलचीपुर में 84 महादेव में 31वां स्थान रखने वाले श्री खंडेश्वर महादेव का अति प्राचीन मंदिर स्थित है। जिसमें भगवान शिव का काले पाषाण का शिवलिंग है। मंदिर के पुजारी पंडित अभिषेक नागर के अनुसार मंदिर में शिवलिंग के साथ ही श्री खंडेश्वर महादेव लिंग स्वरूप में भी विराजमान हैं। मंदिर में माता पार्वती, कार्तिकेय, श्री गणेश के साथ ही वीरभद्र जी की प्रतिमा विराजित है। मंदिर में वैसे तो नित्य ही भगवान का विशेष पूजन अर्चन किया जाता है, लेकिन श्रावण मास के दौरान मंदिर में भगवान का विशेष पूजन अर्चन अभिषेक किया जाता है। पुजारी पंडित अभिषेक नागर ने बताया कि श्री खंडेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से ही अद्भुत सिद्धि प्राप्त होती है एवं सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
श्रीफल चढ़ाने का है विशेष महत्व
पुजारी पंडित अभिषेक नागर ने बताया कि मंदिर में श्रीफल चढ़ाने का विशेष महत्व है, जिसके पीछे मान्यता है कि यदि पूर्ण श्रद्धा के साथ श्री खंडेश्वर महादेव को पूर्ण श्रीफल चढ़ाया जाता है तो सभी गलतियां क्षमा हो जाती है।
श्री खंडेश्वर महादेव के चमत्कारों को लेकर स्कंद पुराण के अवंती खंड में एक कथा का उल्लेख देखने को मिलता है, जिसमें बताया जाता है कि त्रेतायुग में भद्राश्व नाम के राजा थे। उनकी कई रानियां थी। इन रानियों में रानी कांतिमती सबसे अधिक सुंदर थी। एक बार राजा भद्राश्व के यहां महामुनि अगस्त्य आए और उन्होंने इस राज्य में एक सप्ताह का समय व्यतीत किया। राजा ने महामुनी अगस्त्य का आदर सत्कार करते हुए कुछ ऐसी व्यवस्था की जिससे महामुनी अगस्त्य प्रसन्न चित्त हो जाए, लेकिन महामुनी अगस्त्य को इन सभी व्यवस्थाओं से अधिक प्रसन्नता राजा की धर्मपत्नी कान्तिमती को देखकर हुई। क्यों कि ऋषि अगस्त्य अपनी सिद्धियों के बल से रानी कांतिमती के बारे में सब कुछ जान चुके थे, इसीलिए वे बेहद प्रसन्न थे। अतिथि सत्कार के बाद जब राजा ने महामुनी अगस्त्य से उनकी प्रसन्नता का कारण जानना चाहा तो ऋषि अगस्त्य ने बताया कि राजन आप पूर्वजन्म में विदिशा नाम के स्थान पर वैश्य हरिदत्त के घर पर नौकर का काम किया करते थे। जहां आपके साथ आपकी पत्नी कांतिमती भी दासी का काम करती थी, वह वैश्य महादेव का परम भक्त थे। वह वैश्य महाकाल वन में आकर भगवान की पूजा अर्चना किया करता थे। कुछ समय के बाद आप दोनों की मृत्यु हो गई लेकिन उस वैश्य की प्रभु भक्ति का प्रताप इतना था कि आप इस जन्म में इस राज्य के राजा बन गए। ऋषि की यह बात सुनकर राजा ऐसे दिव्य शिवलिंग का पूजन अर्चन और दर्शन करने के लिए महाकाल वन पहुंचे, जहां उन्होंने निष्काम भाव से श्री खंडेश्वर महादेव का पूजन अर्चन किया, जिसके कारण ही उन्हें निष्कण्टक राज्य भोग का आशीर्वाद मिला था।
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