rani-lakshmi-bai:-बलिदान-मेले-में-इस-बार-सिंधिया-परिवार-पर-लगने-वाला-'गद्दारी'-का-आरोप-हटा,-भड़की-कांग्रेस
रानी लक्ष्मी बाई समाधि स्थल - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us ग्वालियर में वीरांगना लक्ष्मी बाई की समाधि पर पिछले 25 साल से बलिदान मेले में उनकी शहादत के किस्से और ऐतिहासिक स्वरूप लोगों को देखने को मिलता रहा है। इस मेले में एक नाटक प्रस्तुत किया जाता था, जो सिंधिया परिवार के इर्द-गिर्द दर्शाया जाता था। अब मेले के इतिहास से वह पंक्तियां गायब हो गई हैं और कांग्रेस ने इसको लेकर बीजेपी पर इतिहास के साथ छेड़खानी के आरोप लगाए हैं। साल 1857 की क्रांति में अपनी बहादुरी की तलवार से इतिहास लिखने वाली वीरांगना लक्ष्मी बाई की याद में एक ऐतिहासिक मेला पिछले 25 साल से उनकी समाधि के पास लगाया जाता रहा है। बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और बीजेपी के नेता जयभान सिंह पवैया ने मेला शुरू किया था। यह मेला केवल वीरांगना की तस्वीरों और कविताओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें सिंधिया परिवार पर सीधे आरोप लगाए जाते थे। हर साल 17 और 18 जून को ग्वालियर में रानी के चरित्र और वीरता पर बलिदान मेला लगाया जाता है। पहले यह मेला शासकीय आयोजन नहीं था, लेकिन अब इसे मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग और नगर निगम के सहयोग से लगाया जाता है। मेले में वीरांगना लक्ष्मी बाई की शहादत पर एक नाटक प्रस्तुत किया जाता था, जिसमें उस दौर के सिंधिया राजघराने पर आरोप लगाया जाता था। अब मेले के इतिहास और रानी की झांकी से वह पंक्तियां और नाटक का हिस्सा गायब हो गया है, जिसके आरोप सिंधिया राजघराने पर लगते रहे हैं। वहीं, इस मेले में लगाई गई प्रदर्शनी को लेकर कांग्रेस सवाल खड़ी कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आरती सिंह का कहना है कि हमेशा से ही बीजेपी इतिहास में छेड़छाड़ करती आ रही है। वहीं, बीजेपी जो हर बार सिंधिया राजघराने पर गद्दारी का आरोप लगाती रही। लेकिन अब जब सिंधिया इस वाशिंग मशीन में शामिल हो गए तो पूरी तरह भूल गए हैं। जयभान सिंह पवैया जो अपनी राजनीति को सिंधिया को गद्दार बोलकर चमकते थे, आज वह भी पूरी तरह चुप हैं। नाटक का रंग और रूप और मेले की रौनक मैं कोई अंतर नहीं आया। वीरांगना लक्ष्मी बाई की समाधि और मेला प्रांगण में आज भी पूरा आयोजन वैसे ही हो रहा है, जैसे 25 साल से होता रहा। लेकिन सिंधिया से जुड़ा वह हिस्सा अब नाटक से गायब हो गया है, जो विवादित था। वीरांगना लक्ष्मी बाई की याद में लगने वाला बलिदान मेला वीर रस से शेरपुर रहता है। देश के कई जाने-माने कवि यहां वीरता और बहादुरी से जुड़ी कविताओं की प्रस्तुति देते हैं। लेकिन मेले में सबसे ज्यादा चर्चा तो रानी के चरित्र से जुड़े इस नाटक की होती थी, जिसको लेकर विवाद था। सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही विवाद का वह हिस्सा अब खत्म हो गया है।

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रानी लक्ष्मी बाई समाधि स्थल – फोटो : अमर उजाला

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ग्वालियर में वीरांगना लक्ष्मी बाई की समाधि पर पिछले 25 साल से बलिदान मेले में उनकी शहादत के किस्से और ऐतिहासिक स्वरूप लोगों को देखने को मिलता रहा है। इस मेले में एक नाटक प्रस्तुत किया जाता था, जो सिंधिया परिवार के इर्द-गिर्द दर्शाया जाता था। अब मेले के इतिहास से वह पंक्तियां गायब हो गई हैं और कांग्रेस ने इसको लेकर बीजेपी पर इतिहास के साथ छेड़खानी के आरोप लगाए हैं।

साल 1857 की क्रांति में अपनी बहादुरी की तलवार से इतिहास लिखने वाली वीरांगना लक्ष्मी बाई की याद में एक ऐतिहासिक मेला पिछले 25 साल से उनकी समाधि के पास लगाया जाता रहा है। बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और बीजेपी के नेता जयभान सिंह पवैया ने मेला शुरू किया था। यह मेला केवल वीरांगना की तस्वीरों और कविताओं तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें सिंधिया परिवार पर सीधे आरोप लगाए जाते थे।

हर साल 17 और 18 जून को ग्वालियर में रानी के चरित्र और वीरता पर बलिदान मेला लगाया जाता है। पहले यह मेला शासकीय आयोजन नहीं था, लेकिन अब इसे मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति विभाग और नगर निगम के सहयोग से लगाया जाता है। मेले में वीरांगना लक्ष्मी बाई की शहादत पर एक नाटक प्रस्तुत किया जाता था, जिसमें उस दौर के सिंधिया राजघराने पर आरोप लगाया जाता था। अब मेले के इतिहास और रानी की झांकी से वह पंक्तियां और नाटक का हिस्सा गायब हो गया है, जिसके आरोप सिंधिया राजघराने पर लगते रहे हैं।

वहीं, इस मेले में लगाई गई प्रदर्शनी को लेकर कांग्रेस सवाल खड़ी कर रही है। कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष आरती सिंह का कहना है कि हमेशा से ही बीजेपी इतिहास में छेड़छाड़ करती आ रही है। वहीं, बीजेपी जो हर बार सिंधिया राजघराने पर गद्दारी का आरोप लगाती रही। लेकिन अब जब सिंधिया इस वाशिंग मशीन में शामिल हो गए तो पूरी तरह भूल गए हैं। जयभान सिंह पवैया जो अपनी राजनीति को सिंधिया को गद्दार बोलकर चमकते थे, आज वह भी पूरी तरह चुप हैं।

नाटक का रंग और रूप और मेले की रौनक मैं कोई अंतर नहीं आया। वीरांगना लक्ष्मी बाई की समाधि और मेला प्रांगण में आज भी पूरा आयोजन वैसे ही हो रहा है, जैसे 25 साल से होता रहा। लेकिन सिंधिया से जुड़ा वह हिस्सा अब नाटक से गायब हो गया है, जो विवादित था। वीरांगना लक्ष्मी बाई की याद में लगने वाला बलिदान मेला वीर रस से शेरपुर रहता है। देश के कई जाने-माने कवि यहां वीरता और बहादुरी से जुड़ी कविताओं की प्रस्तुति देते हैं। लेकिन मेले में सबसे ज्यादा चर्चा तो रानी के चरित्र से जुड़े इस नाटक की होती थी, जिसको लेकर विवाद था। सिंधिया के बीजेपी में शामिल होते ही विवाद का वह हिस्सा अब खत्म हो गया है।

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