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मुहर्रम अन्य माह की तरह एक इस्लामिक माह है। जिसमें कई घटनाक्रम जुड़े हुए हैं। उसी में पैगम्बर साहब के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत भी हुई है, जिसकी याद में मुहर्रम माह में वर्षों से चली आ रही परंपराएं निभाई जाती हैं।
ऐसे ही राजगढ़ शहर में निकलने वाली नाल साहब की सवारी का मुहर्रम माह की दस तारीख को आखिरी दिन होता है, जो ताजियों को सलामी देकर वापस लौट जाती है। इसके बारे में बताया जाता है कि राजगढ़ में यह परंपरा मुस्लिम समुदाय में स्टेट टाइम से चली आ रही है। इसका पालन आज भी राजगढ़ नगर में किया जाता है, जिसे देखने के लिए जिले के अन्य क्षेत्रों से भी लोग यहां पहुंचते हैं। उसी क्रम में बुधवार को नाल साहब की अंतिम सवारी निकाली गई। इसमें शहर के मुस्लिम युवाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया।
बुधवार देर शाम नाल साहब की अंतिम सवारी के समापन के पश्चात स्थानीय कलाकारों द्वारा विभिन्न माध्यम से अखाड़े में करतब दिखाए गए। इसका सिलसिला बीती रात तक चलता रहा, वहीं पूरे जिले में राजगढ़ शहर में बजने वाली नौबत और ताशे की धाक भी शहर में अल सुबह तक गूंजती रही। बता दें मुहर्रम पर्व पर स्टेट टाइम से चली आ रही परंपरा के मुताबिक गुरुवार को सभी ताज़िए एक जगह एकत्रित हुए। जिन्हें रीति रिवाज के मुताबिक करबला (मान्यता के अनुसार नदी का एक घाट) तक ले जाया गया। जहां सभी को पानी में विसर्जित कर दिया गया।
गौरतलब है कि राजगढ़ शहर में प्रतिवर्ष इस्लामिक माह मुहर्रम का चांद नजर आने के पश्चात से ही चौकी स्नान से कार्यक्रम की शुरुआत कर दी जाती है। इसका सिलसिला मुहर्रम माह की 11 तारीख तक जारी रहता है। इसमें राजगढ़ शहर में मुहर्रम माह की 8 और 10 तारीख की रात और 10 तारीख को दिन में निकलने वाली सवारी अंतिम होती है। मुहर्रम माह की दस तारीख को यौम ए आशूरा भी कहा जाता है, जिसकी रात में रातभर ताज़िए निकलते हैं और युवाओं के द्वारा अखाड़ा और सबील (खाने-पीने के सामान का निशुल्क काउंटर) लगाया जाता है और वही मुहर्रम माह की 11 तारीख को सभी ताज़िए परंपरा के अनुसार राजमहल प्रांगण में एकत्रित करते हुए विदाई दी जाती है। जहां से उन्हें चयनित स्थान महंदी वाले बाबा के यहां स्थित कर्बला (नदी के एक घाट) पर विसर्जित कर दिया जाता है।
ताजियों का विसर्जन।
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