डिजिटल ब्यूरो, अमर उजाला Published by: श्वेता महतो Updated Tue, 03 Sep 2024 04: 06 PM IST
‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के अध्यक्ष के अनुसार, आज भारत में तकरीबन 91 लाख एनपीएस कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनकी सेलरी से हर महीने 10 प्रतिशत अंशदान कटौती की जाती है। इसके एवरेज में सरकारी 14 प्रतिशत की रकम कंट्रीब्यूट करती है। एकीकृत पेंशन योजना से जुड़े तथ्य – फोटो : अमर उजाला
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केंद्र सरकार ने एनपीएस में सुधार कर नई पेंशन योजना ‘यूनिफाइड पेंशन स्कीम’ (यूपीएस) लागू करने की घोषणा की है। अगले वर्ष पहली अप्रैल से यह योजना लागू हो जाएगी। केंद्र एवं राज्यों के अधिकांश कर्मचारी संगठनों ने यूपीएस की खिलाफत करते हुए विरोध का बिगुल बजा दिया है। केंद्र सरकार को दोबारा से आंदोलन प्रारंभ करने की चेतावनी दी गई है। कुछ संगठन ऐसे भी हैं, जो अभी यूपीएस पर नोटिफिकेशन जारी होने का इंतजार कर रहे हैं। उसके बाद आगे की रणनीति तय करेंगे। इस बीच पेंशन योजना को लेकर एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले तक जो विपक्षी दल ओपीएस के समर्थन में खड़े थे, आज उनमें से अधिकांश पार्टियां, खुलकर सामने नहीं आ रही हैं। आखिर, 91 लाख एनपीएस कर्मी और 12000 करोड़ रुपए महीना, इसे लेकर क्या पर्दे के पीछे कोई सच्चाई छिपी है। प्रमुख विपक्षी दल, कांग्रेस पार्टी ‘ओपीएस’ पर अपने पत्ते नहीं खोल रही है। ‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह पटेल कहते हैं, संभव है कि एनपीएस को खत्म कर हुबहू ओपीएस बहाल करना एक शगूफा मात्र हो। उन्होंने कई ऐसे कारण गिनाए हैं, जिनके चलते ‘राष्ट्रीय दल’ ओल्ड पेंशन स्कीम को कोर मुद्दे के तौर पर अपनाना नहीं चाहते।
डॉ. मंजीत सिंह पटेल के मुताबिक, देश में लंबे समय से ओपीएस बहाली के मुद्दे पर चर्चा जारी है। कर्मचारियों ने बड़े आंदोलन किए हैं। लोकसभा चुनाव में कर्मचारियों का रुझान पोस्टल बैलट पर वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ दिखाई दिया। इसके बाद 24 अगस्त को, भारत सरकार द्वारा गठित की गई एनपीएस रिव्यू कमिटी के मुखिया टीवी सोमनाथन ने नई पेंशन स्कीम के समानांतर यूनिफाइड पेंशन स्कीम का मसौदा पेश कर दिया। देश की ज्यादातर हिस्सों में यूनिफाइड पेंशन स्कीम यानी यूपीएस के खिलाफ कर्मचारियों का गुस्सा दिखाई पड़ रहा है। अब मुद्दा यह है कि क्या ओल्ड पेंशन स्कीम को उसके मूल रूप में बहाल किया जा सकता है। हूबहू ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का मतलब है कि पहले वर्तमान एनपीएस सिस्टम को खत्म किया जाए। उससे पहले भी हम यह देखते हैं कि जिन राजनीतिक पार्टियों ने ओल्ड पेंशन स्कीम में अपना समर्थन दिया या उसकी बहाली के पक्ष में खड़े हुए उनकी सच्चाई क्या है।
कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष ने बताया, लोकसभा 2024 के चुनाव से ठीक पहले रामलीला मैदान में पुरानी पेंशन बहाली के लिए लाखों कर्मचारी एकत्रित हुए थे। आंदोलन के मंच पर लगभग पूरा विपक्ष मौजूद था। आम आदमी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा समाजवादी पार्टी के दिग्गज भी वहां पधारे थे। अगर हम राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो सबसे बड़े विपक्षी दल ने गत वर्ष कर्मचारियों की अक्टूबर में हुई रैली को तो समर्थन दिया था, लेकिन उसके ठीक दो महीने बाद जब लोकसभा चुनाव की सुविधा शुरू हुई तो उन्होंने अपने मेनिफेस्टो में इसे शामिल नहीं किया। उनके मेनिफेस्टो में 25 न्याय की गारंटी शामिल थीं। पुरानी पेंशन का मुद्दा, जिस पर विपक्षी दल वर्तमान सरकार को हर जगह घूरते हुए नजर आ रहे थे, इस दल के मेनिफेस्टो से ओपीएस का मुद्दा ही गायब था। पुरानी पेंशन बहाली आंदोलन के नेताओं ने विपक्षी दलों के पदाधिकारियों से अलग-अलग जगह पर मुलाकात की। उनसे आग्रह किया गया कि वे ओपीएस को अपने चुनावी मेनिफेस्टो में शामिल करें। कर्मचारी नेताओं की तरफ से ऐसे बयान आए कि विपक्षी दल के सप्लीमेंट्री मेनिफेस्टो में ओपीएस का मुद्दा शामिल किया जाएगा। हालांकि बाद में कुछ नहीं हो सका।
राष्ट्रीय स्तर के प्रमुख विपक्षी दल ने इस मुद्दे को न तो अपने मेनिफेस्टो में शामिल किया और न ही इसके लिए सप्लीमेंट्री मेनिफेस्टो जारी किया। जब विपक्षी राष्ट्रीय दल ने अपने मेनिफेस्टो पर प्रेस वार्ता की तो उसमें ओल्ड पेंशन स्कीम को शामिल न किए जाने पर सवाल किया गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता ने इस मुद्दे पर गोल-गोल जवाब देकर अपना पीछा छुड़ा लिया। कहा, अभी कमेटी की रिपोर्ट आने दें। जब उनकी सरकार आएगी, तब वे देखेंगे कि क्या कर सकते हैं। उनकी नजर इस मुद्दे पर है। इसके बाद चुनावी रैलियों में कहा गया कि ओल्ड पेंशन स्कीम का मुद्दा मेनिफेस्टो में नहीं है, लेकिन अंडर कंसीडरेशन है। हालांकि राजनीति में अंडर कंसीडरेशन जैसी कोई चीज नहीं होती। डॉ. मंजीत पटेल ने बताया, अब बात करते हैं कि क्या ओल्ड पेंशन स्कीम, हुबहु बहाल की जा सकती है। सबसे पहले यह देखना पड़ेगा कि एनपीएस को अगर खत्म किया जाए तो उसका वर्तमान आर्थिक दशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ये एक बड़ा एवं अहम सवाल है।
‘नेशनल मिशन फॉर ओल्ड पेंशन स्कीम भारत’ के अध्यक्ष के अनुसार, आज भारत में तकरीबन 91 लाख एनपीएस कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनकी सेलरी से हर महीने 10 प्रतिशत अंशदान कटौती की जाती है। इसके एवरेज में सरकारी 14 प्रतिशत की रकम कंट्रीब्यूट करती है। यानी सभी कर्मचारियों की कुल सेलरी का 24 प्रतिशत अंशदान मार्केट में निवेश किया जाता है। इसे एलआईसी, यूटीआई या एसबीआई में लगाया जाता है। अगर इसे कैलकुलेट करते हैं तो आज तकरीबन 12000 करोड़ रुपए हर महीने एलआईसी, यूटीआई और एसबीआई को मिलते हैं। इससे उनका बिजनेस चलता है। अगर एनपीएस को खत्म कर दिया जाए तो कल से यह पैसा इन तीनों बैंकों को मिलना बंद हो जाएगा। इसका मतलब यह हो सकता है कि इन तीनों सरकारी कंपनियों को सरकार, निजीकरण के रास्ते पर धकेल सकती है।
अभी दो साल पहले ही भारत सरकार ने एलआईसी की एक तिहायी हिस्सेदारी निजीकरण के तहत बेची थी। इसी तरह कोविड 19 के दौरान इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया की भी तकरीबन 60000 करोड़ रुपए की हिस्सेदारी, निजी क्षेत्र में बेची गई थी। केंद्र सरकार ने पहले ही अनेक बैंकों का आपस में विलय किया है। वजह, सरकारी क्षेत्र के कई बैंक, घाटे में चल रहे थे।
आज तकरीबन एनपीएस के तहत 15 लाख करोड़ रुपए का निवेश हो चुका है। आने वाले चार-पांच साल में यह निवेश, 50 लाख करोड़ को पार कर सकता है। एनपीएस में निवेश की गई रकम, यूनिट की वैल्यू के रूप में है। आज एलआईसी, यूटीआई या फिर एसबीआई की एक यूनिट की वैल्यू लगभग 42 से 44 रुपए के बीच में है। तीन-चार साल पहले यह वैल्यू 20 से 25 रुपये के बीच में थी। अब अगर एनपीएस को रद्द किया जाता है तो जाहिर सी बात है 15 लाख करोड रुपए की वैल्यू घटकर 10 लाख करोड़ से भी नीचे आ सकती है।
इसका मतलब यह हुआ कि 5 लाख करोड़ रुपए का घाटा कौन पूरा करेगा। वह पैसा कहां से आएगा। आर्थिक नजर से यह एक बहुत बड़ा सवाल है। इसके कारण कोई भी राष्ट्रीय दल, ओल्ड पेंशन स्कीम को मुद्दे को मेनिफेस्टो में रखना नहीं चाहता। हालांकि उन्हें कर्मचारियों के वोट लेने हैं, तो वे उनकी भीड़ या आंदोलन में जाकर उन्हें सपोर्ट करते हैं। क्षेत्रीय दल भी जानते हैं कि वे हूबहू ओपीएस बहाल नहीं कर सकते। हां, अगर उनकी सरकारी बनी तो कर्मचारियों के हित में कुछ बड़े कदम उठा सकते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में वे अपने राज्य की आर्थिक स्थिति को कभी दांव पर नहीं लगा सकते।
डॉ. पटेल के अनुसार, अगले 10 सालों में एनपीएस का कॉर्पस इतना बड़ा हो जाएगा कि भारत के स्टॉक मार्केट को किसी भी फॉरेन इन्वेस्टर द्वारा आसानी से गिराया नहीं जा सकेगा। संभव है इस लिहाज से एनपीएस को खत्म कर हुबहू ओपीएस बहाल करना एक शगूफा मात्र हो।
अब मुख्य मुद्दा ये है कि ओपीएस कैसे बहाल हो। यह ज्यादा बड़ा मुश्किल काम नहीं है। आज तक एनपीएस में रिटर्न 9.5% से ज्यादा रहा है, इसका मतलब यह है कि कर्मचारियों के अंशदान पर 7.1% का गारंटिड ब्याज दिया जा सकता है। बचे हुए ब्याज को सरकार अपने फंड में ले सकती है। इससे एनपीएस में ही जीपीएफ की डिमांड पूरी हो सकती है। इस पैसे पर जीपीएफ की तरह विड्रॉल की सुविधा भी दी जा सकती है।
हर तीन महीने में सरकार को 91 लाख कर्मचारियों के अंशदान पर लगभग 3 से 4% बचत हो सकती है। दूसरा सरकार अपने अंशदान को सेवानिवृत्ति पर ब्याज सहित वापस ले सकती है। इसके बदले में वह 20 साल की नौकरी पूरी करने वाले को 50% और इससे कम नौकरी वाले को उसी अनुपात में पेंशन दे सकती है। ये तरीका, हुबहू ओल्ड पेंशन स्कीम की तरह कारगर साबित हो सकता है। पेंशन पर ऑल इंडिया कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स के हिसाब से महंगाई भत्ते और पे कमीशन का भी लाभ दिया जा सकता है। पटेल ने कहा, पेंशन बहाली आंदोलन का यही एक सुगम रास्ता समाधान के रूप में निकल सकता है।
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