कोकिलाबेन अस्पताल के सामने स्थित विवादित जमीन – फोटो : अमर उजाला
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केंद्र सरकार द्वारा लाए जा रहे वक्फ बोर्ड संशोधन पर तात्कालिक तौर पर विराम जरूर लग गया है, लेकिन भविष्य में जब भी इसके लागू होने की स्थिति बनी तो मप्र के मामले इस संशोधन बिल को मजबूती देने वाले बनेंगे। पहले भोपाल और अब इंदौर में बनी स्थिति ने जहां वक्फ बोर्ड की किरकिरी कराई है, वहीं इसके पास मौजूद दस्तावेज और रिकॉर्ड की विश्वसनीयता पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं।
राजधानी के अति व्यस्त मार्ग हमीदिया रोड पर मप्र वक्फ बोर्ड द्वारा निर्माण कराए जा रहे एक कमर्शियल कॉम्प्लेक्स को लेकर एसडीएम कोर्ट ने एक दिन पहले ही फैसला दिया है। इसमें निर्माणाधीन कॉम्प्लेक्स वाले स्थान को सरकारी भूमि पर होना बताया गया है। इससे पहले यह मामला तहसीलदार की अदालत से भी वक्फ बोर्ड के खिलाफ जा चुका है। एसडीएम कोर्ट ने अपने फैसले में नगर निगम को इस कॉम्प्लेक्स को गिराने के आदेश जारी कर दिए हैं। साथ ही इस कार्रवाई में होने वाले खर्च की राशि बोर्ड से वसूल करने के लिए कहा गया है।
गौरतलब है कि करोड़ों रुपये कीमत की बेशकीमती जमीन पर कॉम्प्लेक्स निर्माण का काम तत्कालीन अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मरहूम आरिफ अकील के कार्यकाल में शुरू हुआ था। इस दौरान बोर्ड की व्यवस्था प्रशासक रिटायर आईएएस निसार अहमद के हाथ में थी। बताया जाता है कि करीब चार मंजिला इस कॉम्प्लेक्स के निर्माण पर बोर्ड की बड़ी लागत लग चुकी है। इसके बाद मौजूदा बोर्ड अध्यक्ष डॉ. सनव्वर पटेल के कार्यकाल में इन दुकानों की नीलामी ओपन टेंडर प्रक्रिया के साथ की गई थी, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने अपना पैसा लगा दिया है।
अब आया इंदौर का मामला
कोकिलाबेन अस्पताल के सामने निपानिया की खसरा नम्बर 170 की विवादित वक्फ जमीन को लेकर शाह परिवार ने अपने मालिकाना हक की बताई है। इस परिवार का कहना है कि 253 साल पहले यानी 1771 में दिल्ली में जो मुगल हुकुमत काबिज थी, उसके आदेश पर इंदौर रियासत के महाराज होलकर ने इनाम के रूप में 50 बीघा जमीन शाह परिवार को दी थी। निपानिया की उक्त जमीन भी इस 50 बीघा में शामिल बताई जा रही है और 1930 में होलकर रियासत ने फिर से शाह परिवार के पक्ष में सनद बनाकर भी दी थी और सरकारी मिसलबंदी और खसरा खतौनी में शाह परिवार का नाम इंद्राज रहा है।
हाजी मोहम्मद हुसैन और शाहिद शाह का कहना है कि निपानिया की इस जमीन को 1968 में वक्फ भूमि के रूप में स्वघोषित कर दिया गया और इस तरह के किसी सर्वे की जानकारी उनको नहीं दी गई। यहां तक कि तत्कालीन शहर काजी याकूब अली ने भी हाईकोर्ट में वाद के चलते शाह परिवार के पक्ष में फारसी सनद के अनुवादक के रूप में कोर्ट को बताया था कि यह जमीन मुगलों ने शाह परिवार को माफी भूमि के रूप में दी थी। इससे संबंधित दस्तावेजों की जानकारी शुक्रवार को शाह परिवार द्वारा पत्रकार वार्ता में भी दी गई।
उनका कहना है कि हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर उनके पक्ष में प्राप्त है। बावजूद इसके 2013 में वक्फ बोर्ड ने लाइफ केयर एज्युकेशन सोसायटी को मात्र 25 पैसे स्क्वॉयर फीट में उक्त जमीन लीज पर देकर अवैधानिक अनुबंध भी कर लिया। चूंकि अभी हाईकोर्ट में इस जमीन का प्रकरण लम्बित है। बावजूद इसके अवमानना करते हुए वक्फ बोर्ड ने नई लीज दे डाली और इसमें बड़े स्तर पर आर्थिक लेन देन भी किया गया। शाह परिवार का यह भी दावा है कि 2024 की शुरुआत तक इस जमीन पर शांतिपूर्वक कब्जा उन्हीं का बना हुआ था, लेकिन 16 जून 2024 को किसी सोहेल नामक व्यक्ति को अवैध रूप से लीज पर दे डाला। यहां तक कि प्रशासन और निगम को जमीन को अवैध कब्जे से बचाने के लिए उन्होंने ही पारदर्शी तार फेंसिंग करने का आवेदन लगाया। हालांकि, अब अदालत ही जमीन के मालिकाना हक का फैसला करेगी।
वक्फ बोर्ड पदाधिकारी कर रहे अवैध सौदे
शाह परिवार ने आरोप लगाया है कि मप्र वक्फ बोर्ड में पदासिन रहने वाले ओहदेदार भूमाफियाओं से मिलीभगत कर लगातार अवैध सौदे करते रहे हैं। यह सिलसिला अब भी जारी है। उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर जिला कमेटी और प्रदेश के ओहदेदारों के खिलाफ उन्होंने शिकायत भी की है।
…भोपाल से खान आशु की रिपोर्ट
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