न्यूूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: अरविंद कुमार Updated Thu, 01 Aug 2024 07: 53 PM IST
मध्यप्रदेश में आईएएस और आईएफएस अफसरों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट आदेश ही विवाद का कारण बना है। वल्लभ भवन, भोपाल – फोटो : सोशल मीडिया
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मध्यप्रदेश में भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय वन सेवा (IFS) के अधिकारियों के बीच टकराव जैसी स्थिति बन गई है। हाल ही में राज्य सरकार ने एक आदेश जारी किया, जिसमें आईएफएस अधिकारियों की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) प्रक्रिया को बदलते हुए इसे आईएएस अधिकारियों के अधीन कर दिया गया। इस आदेश के बाद आईएफएस अधिकारी इस बदलाव के विरोध में उतर आए हैं और इसे सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना करार दिया है।
इसको लेकर आईएफएस एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से मुलाकात कर एक ज्ञापन दिया है। एसोसिएशन से जुड़े अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि यदि कोई समाधान सरकार के स्तर पर नहीं होता है तो हम सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं।
आईएफएस अधिकारियों का कहना है कि 29 जून 2024 का सरकार का आदेश वन विभाग के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप और वन्यजीव संरक्षण के प्रयासों को प्रभावित कर सकता है। उनको यही भी आशंका यह है कि यह आदेश पर्यावरण मंजूरियों को प्रभावित करने का कोई षड्यंत्र भी हो सकता है। अब इसको लेकर मध्य प्रदेश आईएफएस एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री मोहन यादव के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराया है। उनका कहना है कि यह आदेश आईएफएस अधिकारियों के अधिकारों को कमजोर करता है और उनके मनोबल पर भी नेगेटिव असर डालता है। दूसरी तरफ आईएएस अधिकारियों का कहना है कि यह नियम पहले से ही कर्नाटक, ओडिशा, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में लागू है और मध्य प्रदेश में इसे लागू करना कोई नई बात नहीं है।
वहीं, आईएफएस अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए इसे अवमानना याचिका के रूप में प्रस्तुत करने की योजना बनाई है। उनका तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही स्पष्ट किया है कि वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) प्रक्रिया में रिपोर्टिंग, समीक्षा और स्वीकृति अधिकारी एक ही सेवा या विभाग से होने चाहिए। 21 दिसंबर, 2000 को मध्य प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में IFS अधिकारियों के लिए एक आदेश जारी किया था, जिसमें APAR प्रक्रिया में केवल वन विभाग के अधिकारियों को शामिल किया गया था। 26 अप्रैल, 2004 को सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को स्वीकार किया था।
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