नौरादेही टाइगर रिजर्व को लेकर शिकायत – फोटो : अमर उजाला
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वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के नौरादेही अभयारण्य में बाघिन N-112 और बाघ N-113 गायब हो गए हैं। इस पर अभयारण्य के प्रबंधन ने एक अन्य बाघिन को N-112 नाम दे दिया। मामला सामने आया तो जांच के आदेश हुए हैं। वन विभाग ने टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर से छह बिंदुओं पर जांच कर सात दिन में रिपोर्ट मांगी है।
मध्य प्रदेश के सागर संभाग में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के नौरादेही अभयारण्य में गंभीर गड़बड़ियों का मामला सामने आया है। टाइगर रिजर्व में टाइगर सफारी और वन संपत्ति में गंभीर लापरवाही की शिकायत हुई है। छह बिंदुओं की शिकायत को फोटो-वीडियो के प्रमाण के साथ वन विभाग के आला अफसरों तक पहुंचाया गया है। वनों की अवैध कटाई से लेकर संदिग्ध परिस्थितियों में बाघों के गायब होने का आरोप है। शिकायत में दावा किया गया है कि टाइगर रिजर्व में बाघिन N-112 अपने शावकों के साथ और बाघ N-113 वर्ष 2021 में गायब हो गए। प्रबंधन ने सरकारी रिकॉर्ड में इसका जिक्र तक नहीं किया। इतना ही नहीं बाघिन N-111 को बाघिन N-112 घोषित कर दिया। दोनों बाघिन के फोटो भी शिकायत के साथ भेजे गए हैं। मामले में दोनों की आईडी की जांच की मांग की गई है। बाघों के शिकार की आंशका जताते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई है। अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक समीता राजौरा वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे की शिकायत पर वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व सागर के डिप्टी डायरेक्टर से सात दिन में छह बिन्दुओं पर जवाब मांगा है।
मिलीभगत से हो रही वनों की कटाई
टाइगर रिजर्व में वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से अंधाधुंध अवैध कटाई हो रही है। टाइगर रिजर्व क्षेत्र के खुले पर्यटन क्षेत्र में भी राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के नियमों का उल्लंघन हो रहा है। टाइगर रिजर्व के इको-सेंसेटिव जोन में एनओसी के नाम पर स्थानीय स्टाफ घरेलू उद्देश्य के लिए जमीन खरीदने के लिए पैसे मांग रहा है। उन्होंने टाइगर रिजर्व में खाली पदों को भरने का भी मुद्दा उठाया है।
जिम्मेदारों की मिलीभगत से हो रही गड़बड़ी
वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे का आरोप है कि पूरे मामले में नीचे से लेकर ऊपर तक मिलीभगत हुई है। वनों की अवैध कटाई सरेआम जारी है। टाइगर सफारी का संचालन नियमविरुद्ध और मनमर्जी से किया जा रहा है। टाइगर रिजर्व में शाकाहारी जीवों की संख्या कम होने और विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी के कारण बाघ और बाघिन खतरे में है।
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