सांकेतिक तस्वीर – फोटो : फाइल फोटो
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विलुप्त हो रहे गिद्धों के संरक्षण लिए मंदसौर के गांधी सागर अभयारण्य में विशेष परियोजना लागू की जा रही है। इसका प्लान तैयार कर लिया गया है। नेस्टिंग साइट को पहचान कर उसका संरक्षण करने के लिए अभयारण्य में वन कर्मचारियों की ट्रेनिंग के लिए वर्कशॉप का आयोजन किया गया।
गांधी सागर अभयारण्य गिद्धों का प्राकृतिक आवास है। यहां पर गिद्ध की चार प्रजातियां पाई जाती हैं। शीत ऋतु में यहां गिद्ध की तीन प्रजातियां प्रवास करती है। 2021 में जब गिद्ध गणना हुई तो मंदसौर जिले में 700 गिद्ध पाए गए थे। यह मध्यप्रदेश में पन्ना के बाद दूसरे स्थान पर है। गिद्धों के संरक्षण हेतु उनके नेस्टिंग साइट को पहचान कर उनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है ताकि इनकी संख्या बढ़ सके। गिद्ध संरक्षण योजना समिति के डॉक्टर विकास यादव ने गांधी सागर अभयारण्य में गिद्ध के संरक्षण पर वन कर्मचारियों के लिए कार्यशाला का आयोजन किया।
कार्यशाला में प्रमुख रूप से गिद्धों की प्रजातियों को पहचानना एवं उनके संरक्षण के लिए आवश्यक कार्य पर जोर दिया गया। इसके तहत गिद्धों के प्रजनन काल के दौरान किन-किन क्षेत्रों में किस तरह के वृक्षों पर घोंसले बनाए जाते हैं। इनके प्रजनन के समय किस तरह इन स्थानों को सुरक्षित किया जा सकता है। इन स्थानों के अक्षांश एवं देशांतर लेकर उनकी मैपिंग करना अत्यंत आवश्यक है। इन समस्त बिंदुओं पर डॉक्टर विकास यादव ने वन स्टाफ को प्रशिक्षण दिया। अभयारण्य के आसपास ग्रामीणों से चर्चा कर पालतू पशुओं की डंपिंग साइट की पहचान कर भविष्य में वल्चर रेस्टोरेंट हेतु जगह खोजना भी प्लान में शामिल है। गिद्धों को नुकसान पहुंचाने वाली प्रतिबंधित दवाओं का उपयोग नहीं करने के संबंध में प्रारंभिक सर्वेक्षण किया गया है। वैकल्पिक दवाइयों की जानकारी एकत्रित करने के लिए स्टाफ को निर्देशित किया है। प्रशिक्षण में वन मंडल अधिकारी मंदसौर संजय रायखेरे, अधीक्षक गांधी सागर राजेश मण्डावलिया एवं रेंजर उपस्थित थे।
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