mp-news: -केरल-के-राज्यपाल-आरिफ-मोहम्मद-खान-बोले- स्वर्ण-मंदिर-की-नींव-मुस्लिम सूफी-मियां-मीर-ने-रखी
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Fri, 04 Aug 2023 11: 28 PM IST छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन ने कहा कि हमारी शिक्षा पद्धति रचनात्मक, बहुआयामी और समृद्ध रही है। भारतीय गुरु परंपरा में प्रकृति के साथ सीखने की भारतीय शिक्षा पद्धति, अपने प्रारंभ काल से ही उत्कर्षमय रही। रवींद्रनाथ टैगोर ने प्रकृति के बीच शिक्षा देने के उद्देश्य से ही शांतिनिकेतन और विश्वभारती की स्थापना की थी।  राज्यपाल हरिचंदन भोपाल के रविंद्र भवन में उन्मेष उत्सव के दूसरे दिन गौरांजनी सभागार में 'रचनात्मकता बढ़ाने वाली शिक्षा'  सत्र को संबोधित कर रहे थे। हरिचंदन ने कहा कि महात्मा गांधी ने शिक्षा के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रकाश  डालते हुए समाज के लिए प्रासंगिक, रचनात्मक शिक्षा की पृष्ठभूमि तैयार की और  दर्शन, नीति, नियम, सत्य-अहिंसा, न्याय और मानवीय प्रतिष्ठा का मार्ग प्रशस्त किया। सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने की। वक्ता के रूप में प्रख्यात शिक्षाविद् चक्रधर त्रिपाठी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी व आईआईटी मद्रास के निदेशक वी.कामकोटि वर्चुअली जुड़े। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने राजपाल हरिचंदन का सम्मान और अभिनंदन किया। स्वर्ण मंदिर की नींव मुस्लिम सूफी मियां मीर ने रखी एक अन्य सत्र में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने 'भारतीय भक्ति साहित्य' विषय पर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत में भक्त कवियों ने हमारे प्राचीन ज्ञान को आम लोगों तक उनकी भाषा में पहुंचाया। हमारी सनातन परंपरा इतनी समावेशी है कि चाहकर भी किसी को उससे अलग नहीं किया जा सकता। यह भारत में ही संभव है कि स्वर्ण मंदिर की नींव मुस्लिम सूफी मिया मीर रखें। उनके साथ वक्ता विनायक बंद्योपाध्याय, एम.ए. आलवार, माधव हाड़ा, प्रणव खुत्तर, सूर्यप्रसाद दीक्षित और वीरसागर जैन ने भी भारतीय साहित्यकारों का भक्ति मार्ग के माध्यम से साहित्य को जन जन तक पहुंचाने के योगदान पर प्रकाश डाला।   20 सत्रों में 130 विद्वानों ने रखे विचार नाटक ,सिनेमा,अनुवाद,मेरे लिए कविता का अर्थ,भारतीय काव्य परंपरा, योग साहित्य , नई शिक्षा नीति पर  हुआ विचार विमर्श एशिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव उन्मेष के दूसरे दिन 20 से अधिक सत्रों में 130 से अधिक लेखकों, कवियों और प्रबुद्धजनों ने साहित्य के संरक्षण, प्रचार प्रसार और उत्थान के लिए अपने विचार रखे। नाटक, सिनेमा, अनुवाद, मेरे लिए कविता का अर्थ, भारतीय काव्य परंपरा, योग साहित्य, नई शिक्षा नीति पर विचार विमर्श हुआ। इनमे प्रमुख रूप से महेश दत्तानी, रंजीत कपूर, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, के. सच्चिदानंदन, चंद्रशेखर कंबार और उषा किरण खान आदि ने भाग लिया। 13 राज्यों के कलाकारों ने पेश की सांस्कृतिक झलक उत्सव के दूसरे दिन अरुणाचल प्रदेश का आजी लामू नृत्य, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी नाटी, छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया नृत्य, असम का तिवा नृत्य, हरियाणा का फाग नृत्य, उत्तर प्रदेश का मयूर रास, झारखंड का नागपुरी झूमुर, मणिपुर का ढोल चोलम एवं थांग टा नृत्य, तमिलनाडु का करगट्टम, पश्चिम बंगाल का नटुवा नृत्य, कर्नाटक का पूजा कुनिथा और गुजरात का मणीयारो रास नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के दूसरे दिन मुख्य अतिथि कोर कामांडर, भोपाल लेफ्टिनेंट जनरल विपुल सिंघल, संगीत नाटक अकादमी दिल्ली के सचिव राजू दास एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी, दर्शक उपस्थित रहे।

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Fri, 04 Aug 2023 11: 28 PM IST

छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन ने कहा कि हमारी शिक्षा पद्धति रचनात्मक, बहुआयामी और समृद्ध रही है। भारतीय गुरु परंपरा में प्रकृति के साथ सीखने की भारतीय शिक्षा पद्धति, अपने प्रारंभ काल से ही उत्कर्षमय रही। रवींद्रनाथ टैगोर ने प्रकृति के बीच शिक्षा देने के उद्देश्य से ही शांतिनिकेतन और विश्वभारती की स्थापना की थी। 
राज्यपाल हरिचंदन भोपाल के रविंद्र भवन में उन्मेष उत्सव के दूसरे दिन गौरांजनी सभागार में ‘रचनात्मकता बढ़ाने वाली शिक्षा’  सत्र को संबोधित कर रहे थे। हरिचंदन ने कहा कि महात्मा गांधी ने शिक्षा के सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक पहलुओं पर प्रकाश  डालते हुए समाज के लिए प्रासंगिक, रचनात्मक शिक्षा की पृष्ठभूमि तैयार की और  दर्शन, नीति, नियम, सत्य-अहिंसा, न्याय और मानवीय प्रतिष्ठा का मार्ग प्रशस्त किया।
सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष गोविंद शर्मा ने की। वक्ता के रूप में प्रख्यात शिक्षाविद् चक्रधर त्रिपाठी, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी व आईआईटी मद्रास के निदेशक वी.कामकोटि वर्चुअली जुड़े। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने राजपाल हरिचंदन का सम्मान और अभिनंदन किया।

स्वर्ण मंदिर की नींव मुस्लिम सूफी मियां मीर ने रखी
एक अन्य सत्र में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने ‘भारतीय भक्ति साहित्य’ विषय पर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत में भक्त कवियों ने हमारे प्राचीन ज्ञान को आम लोगों तक उनकी भाषा में पहुंचाया। हमारी सनातन परंपरा इतनी समावेशी है कि चाहकर भी किसी को उससे अलग नहीं किया जा सकता। यह भारत में ही संभव है कि स्वर्ण मंदिर की नींव मुस्लिम सूफी मिया मीर रखें। उनके साथ वक्ता विनायक बंद्योपाध्याय, एम.ए. आलवार, माधव हाड़ा, प्रणव खुत्तर, सूर्यप्रसाद दीक्षित और वीरसागर जैन ने भी भारतीय साहित्यकारों का भक्ति मार्ग के माध्यम से साहित्य को जन जन तक पहुंचाने के योगदान पर प्रकाश डाला।
 

20 सत्रों में 130 विद्वानों ने रखे विचार
नाटक ,सिनेमा,अनुवाद,मेरे लिए कविता का अर्थ,भारतीय काव्य परंपरा, योग साहित्य , नई शिक्षा नीति पर  हुआ विचार विमर्श
एशिया के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव उन्मेष के दूसरे दिन 20 से अधिक सत्रों में 130 से अधिक लेखकों, कवियों और प्रबुद्धजनों ने साहित्य के संरक्षण, प्रचार प्रसार और उत्थान के लिए अपने विचार रखे। नाटक, सिनेमा, अनुवाद, मेरे लिए कविता का अर्थ, भारतीय काव्य परंपरा, योग साहित्य, नई शिक्षा नीति पर विचार विमर्श हुआ। इनमे प्रमुख रूप से महेश दत्तानी, रंजीत कपूर, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, के. सच्चिदानंदन, चंद्रशेखर कंबार और उषा किरण खान आदि ने भाग लिया।

13 राज्यों के कलाकारों ने पेश की सांस्कृतिक झलक
उत्सव के दूसरे दिन अरुणाचल प्रदेश का आजी लामू नृत्य, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी नाटी, छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया नृत्य, असम का तिवा नृत्य, हरियाणा का फाग नृत्य, उत्तर प्रदेश का मयूर रास, झारखंड का नागपुरी झूमुर, मणिपुर का ढोल चोलम एवं थांग टा नृत्य, तमिलनाडु का करगट्टम, पश्चिम बंगाल का नटुवा नृत्य, कर्नाटक का पूजा कुनिथा और गुजरात का मणीयारो रास नृत्य की प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के दूसरे दिन मुख्य अतिथि कोर कामांडर, भोपाल लेफ्टिनेंट जनरल विपुल सिंघल, संगीत नाटक अकादमी दिल्ली के सचिव राजू दास एवं अन्य अधिकारी, कर्मचारी, दर्शक उपस्थित रहे।

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