मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर – फोटो : अमर उजाला
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विभाग द्वारा स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति का आवेदन स्वीकार नहीं किया गया और अनुपस्थित रहने के बावजूद भी उसके खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही नहीं की गई। कर्मचारी को पेंशन सहित अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्रदान नहीं किये गये।
बता दें कि कर्मचारी के मौत के बाद उसकी पत्नी और उनके बच्चों ने कानूनी लड़ाई जारी रखी। इस दौरान कर्मचारी की पत्नी का भी निधन हो गया। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल मिश्रा की एकलपीठ के समक्ष सीएमएचओ ने 90 दिनों में देयक के भुगतान करने का हलफनामा पेश किया है।
याचिकाकर्ता ललिता रावत तथा उनकी तीन बेटियों तथा बेटे की तरफ से हाईकोर्ट में उक्त याचिका दायर की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि उनकी पति जगन्नाथ रावत की स्वास्थ्य विभाग में साल 1952 में नियुक्ति हुई थी। उनकी पोस्टिंग सीएमएचओ कार्यालय खंडवा में हुई थी। इसके बाद उनका अन्य स्थानों में स्थानांतरण हुआ था। उनके पति ने साल 1975 में सीहोर सीएमएचओ कार्यालय में पदस्थापना के दौरान स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन किया था। इसके बाद वह ड्यूटी में नहीं गए और विभाग की तरफ से उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
याचिका में कहा गया था कि उनके पति की साल 2007 में मौत हो गयी है। विभाग के दौरान उन्हे सेवानिवृत्ति देयकों का भुगतान तथा पेंशन का लाभ प्रदान नहीं किया गया था, जिसके कारण साल 2018 में उनकी तरफ से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गयी थी। याचिका का निराकरण करते हुए हाईकोर्ट ने सीएमएचओ को निर्देश जारी किये थे कि याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन का निराकरण तीस दिनों में किया जाये। सीएमएचओ ने अभ्यावेदन इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उनके पति के सेवा काल का रिकॉर्ड नहीं मिल रहा है, जिसके कारण उक्त याचिका दायर की गयी है।
याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कहा गया था कि खंडवा सीएमएचओ ने सीहोर सीएमएचओ को कर्मचारी के सेवाकाल का रिकॉर्ड मांगा था,जो मिल नहीं रहा है। हाईकोर्ट ने सीएमएचओ को व्यक्तिगत रूप से तलब किया था। सीएमएचओ खंडवा डॉ. ओपी जुगतावाल ने व्यक्ति रूप से उपस्थित होकर पेश हलफनामा में कहा है कि 90 दिनों में देयकों का भुगतान कर दिया जायेगा।
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