mp-election-2023:-महू-में-कांटे-की-टक्कर,-उषा-की-राह-नहीं-आसान,-दलबदलू-शुक्ला-बना-रहे-नई-पहचान
महू का ड्रीमलैंड चौराहा। - फोटो : amar ujala digital विस्तार Follow Us महू का राजनीतिक मिजाज कभी एक जैसा नहीं रहा। मतदाता ने किसी एक दल की छाप इस सीट पर मतदाता ने नहीं रहने दी। कभी भाजपा को गले लगाया तो कभी कभी कांग्रेस का साथ निभाया। इस बार क्या होगा? यह सवाल पूछा जाने पर महू वासी मुस्करा देते है। कोई कांटे की टक्कर बताता है  तो कोई बदलाव की बात करता है। इस बार न तो उषा ठाकुर की राह यहां आसान लग रही है और कांग्रेस उम्मीदवार रामकिशोर शुक्ला 12 साल भाजपा में रहकर कांग्रेस में लौटे है। जनता के सामने कांग्रेस के हिसाब से उन्हें नई पहचान बनाना पड़ रही है।   कार्यकर्ता की टीम भी उन्हें नए सिरे से बनाना पड़ी। कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरे अंतर सिंह दरबार किसके वोट ज्यादा काटेंगे। यह इस चुनाव में मायने रखेगा । वे खुद राजपुत है, इसलिए उषा ठाकुर के वोट भी काटेंगे और पूर्व विधायक होने के कारण वे कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक को भी नुकसान पहुंचाएंगे।  उषा के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी फेक्टर भी आ रहा नजर विधायक उषा ठाकुर के प्रति नाराजगी के स्वर महू नगर में मुखर है मतदाताअेां का कहना है कि वे चुनाव जीतने के बाद ज्यादा नजर नहीं आई। कुछ क्षेत्रों में उषा के खिलाफ एंटी इकमेंसी फेक्टर साफ तौर पर देखा जा रहा है। आम मतदाता उनकी सक्रियता पर सीधे तौर पर सवाल उठाते नजर आते है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों को ठाकुर ने साध रखा है। विधायक निधि भी ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च हुई। मानपुर, सिमरोल, सोनवाय वाले बेल्ट को भाजपा अपनी ताकत मानकर चल रही है। आरएसएस की पैठ भी महू के कुछ हिस्सों में अच्छी है। इसका फायदा भी भाजपा को हर चुनाव में मिलता है।  तीसरी हार से कमजोर हुए दरबार अब कितने मजबूत? वर्ष 1998 और वर्ष 2004 के चुनाव जीतकर कांग्रेस विधायक अंतर सिंह दरबार ने महू को कांग्रेस का गढ़ बना दिया था, लेकिन फिर भाजपा ने महू से कैलाश विजयवर्गीय को उम्मीदवार बनाया और वे चुनाव जीत गए। वर्ष 2013 का चुनाव भी विजयवर्गीय ने दरबार को हरा कर जीता। पिछले चुनाव में 18 दिन पहले उषा ठाकुर को भाजपा ने चुनाव लड़ने महू भेजा। तब समीकरण कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे थे, लेकिन परिणाम चौकानें वाले रहे।  उषा ने चुनाव जीत लिया। इस हार से दरबार और कमजोर हो गए। कांग्रेस ने इस बार उन पर फिर से  दांव लगाने के बजाए भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए रामकिशोर शुक्ला को टिकट दिया है। इसमे कोई शक नहीं कि दरबार की अपनी एक फैन फालोइंग है, लेकिन बतौर निर्दलीय वे कितने मजबूत साबित होंगे और ठाकुर व शुक्ला को कितनी टक्कर दे पाएंगे, यह परिणाम के बाद ही पता चलेगा,लेकिन दरबार के कारण महू में मुकाबला त्रिकोणीय के साथ रोचक हो गया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि महूू में जनता की पसंद कौन बनता है।

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महू का ड्रीमलैंड चौराहा। – फोटो : amar ujala digital

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महू का राजनीतिक मिजाज कभी एक जैसा नहीं रहा। मतदाता ने किसी एक दल की छाप इस सीट पर मतदाता ने नहीं रहने दी। कभी भाजपा को गले लगाया तो कभी कभी कांग्रेस का साथ निभाया। इस बार क्या होगा? यह सवाल पूछा जाने पर महू वासी मुस्करा देते है। कोई कांटे की टक्कर बताता है  तो कोई बदलाव की बात करता है। इस बार न तो उषा ठाकुर की राह यहां आसान लग रही है और कांग्रेस उम्मीदवार रामकिशोर शुक्ला 12 साल भाजपा में रहकर कांग्रेस में लौटे है। जनता के सामने कांग्रेस के हिसाब से उन्हें नई पहचान बनाना पड़ रही है।  

कार्यकर्ता की टीम भी उन्हें नए सिरे से बनाना पड़ी। कांग्रेस से बगावत कर मैदान में उतरे अंतर सिंह दरबार किसके वोट ज्यादा काटेंगे। यह इस चुनाव में मायने रखेगा । वे खुद राजपुत है, इसलिए उषा ठाकुर के वोट भी काटेंगे और पूर्व विधायक होने के कारण वे कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक को भी नुकसान पहुंचाएंगे। 

उषा के खिलाफ एंटी इंकमबेंसी फेक्टर भी आ रहा नजर

विधायक उषा ठाकुर के प्रति नाराजगी के स्वर महू नगर में मुखर है मतदाताअेां का कहना है कि वे चुनाव जीतने के बाद ज्यादा नजर नहीं आई। कुछ क्षेत्रों में उषा के खिलाफ एंटी इकमेंसी फेक्टर साफ तौर पर देखा जा रहा है।

आम मतदाता उनकी सक्रियता पर सीधे तौर पर सवाल उठाते नजर आते है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों को ठाकुर ने साध रखा है। विधायक निधि भी ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च हुई। मानपुर, सिमरोल, सोनवाय वाले बेल्ट को भाजपा अपनी ताकत मानकर चल रही है। आरएसएस की पैठ भी महू के कुछ हिस्सों में अच्छी है। इसका फायदा भी भाजपा को हर चुनाव में मिलता है। 

तीसरी हार से कमजोर हुए दरबार अब कितने मजबूत?

वर्ष 1998 और वर्ष 2004 के चुनाव जीतकर कांग्रेस विधायक अंतर सिंह दरबार ने महू को कांग्रेस का गढ़ बना दिया था, लेकिन फिर भाजपा ने महू से कैलाश विजयवर्गीय को उम्मीदवार बनाया और वे चुनाव जीत गए। वर्ष 2013 का चुनाव भी विजयवर्गीय ने दरबार को हरा कर जीता। पिछले चुनाव में 18 दिन पहले उषा ठाकुर को भाजपा ने चुनाव लड़ने महू भेजा। तब समीकरण कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे थे, लेकिन परिणाम चौकानें वाले रहे। 

उषा ने चुनाव जीत लिया। इस हार से दरबार और कमजोर हो गए। कांग्रेस ने इस बार उन पर फिर से  दांव लगाने के बजाए भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आए रामकिशोर शुक्ला को टिकट दिया है। इसमे कोई शक नहीं कि दरबार की अपनी एक फैन फालोइंग है, लेकिन बतौर निर्दलीय वे कितने मजबूत साबित होंगे और ठाकुर व शुक्ला को कितनी टक्कर दे पाएंगे, यह परिणाम के बाद ही पता चलेगा,लेकिन दरबार के कारण महू में मुकाबला त्रिकोणीय के साथ रोचक हो गया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि महूू में जनता की पसंद कौन बनता है।

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