mp-election-2023:-मध्य-प्रदेश-किस-'कमल'-का?-फैसला-कल,सुबह-8-बजे-शुरू-होगी-मतगणना,-एक-घंटे-में-आने-लगेंगे-रुझान
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Sat, 02 Dec 2023 01: 46 PM IST   मध्य प्रदेश की 230 सीटों पर 17 नवंबर को मतदान हुआ था। तीन दिसंबर को सुबह आठ बजे मतगणना शुरू होगी। एक घंटे में पोस्टल बैलेट के रुझान आ जाएंगे। 10 बजे तक सभी सीटों के रुझान आ जाने की उम्मीद है।     MP Election 2023 - फोटो : अमर उजाला, इंदौर विस्तार Follow Us वह घड़ी आ गई है, जिसका न केवल भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल, बल्कि मध्य प्रदेश की नौ करोड़ जनता को भी है। दोनों ही पार्टियों ने दमदार तरीके से चुनाव लड़ा। भाजपा की ओर से जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फ्रंटरनर बने हुए थे, वहीं कांग्रेस की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के हाथ में बागड़ोर थी। सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो रविवार को ही पता चलेगा। इससे पहले दोनों ही पार्टियों ने अपनी-अपनी जीत के दावे किए हैं। दस एग्जिट पोल में भी चार में भाजपा को बहुमत और दो में कांग्रेस को बहुमत मिलने का दावा किया गया है। चार एग्जिट पोल में कांटे का मुकाबला दिखाया गया है।  मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए 17 नवंबर को मतदान हुआ था। इस बार 2533 प्रत्याशी मैदान में थे। अब तक हुए विधानसभा चुनावों के सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए मध्य प्रदेश में पहली 77.15% वोटिंग हुई है। इसमें भी 78.21% पुरुष और 76.03% महिलाओं ने मतदान किया। इसके मुकाबले 2018 के चुनावों में  75.2% वोटिंग हुई थी, जो इससे पहले तक एक रिकॉर्ड थी। रविवार को जिला मुख्यालयों के स्ट्रांग रूम से ईवीएम निकालकर मतों की गिनती का काम सुबह आठ बजे शुरू होगा। एक घंटे बाद रुझान आने लगेंगे। उम्मीद की जा रही है कि रविवार सुबह 10 बजे तक सभी सीटों के रुझान मिल जाएंगे। 2018 की बात करें तो भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। बसपा को दो, सपा को एक और निर्दलियों को चार सीटें मिली थी। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्य प्रदेश में सरकार बनाई थी। हालांकि, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हुए। तब शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने। साढ़े तीन साल में भाजपा ने उन गलतियों को दूर करने की भरसक कोशिश की, जिनकी वजह से उसे 2018 में सत्ता से दूर होना पड़ा था। लाड़ली बहना जैसी योजनाएं भी लागू की, जिसके तहत करीब 1.31 करोड़ महिलाओं के खाते में हर महीने 1,250 रुपये डाले जा रहे हैं।  एग्जिट पोल्स में भाजपा को बढ़त मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक, हर कोई भाजपा की जीत का दावा कर रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला समेत पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ एग्जिट पोल्स के आंकड़ों पर सवाल उठाकर कांग्रेस की जीत के दावे कर रहे हैं। सुरजेवाला ने तो शुक्रवार को कह दिया कि पार्टी को 135 सीटें मिल रही हैं। इससे पहले गुरुवार को तमाम सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल के आंकड़े जारी किए। इनमें दस में से चार में भाजपा को स्पष्ट बहुमत का दावा किया गया है। तीन सर्वे तो 230 में से 140 से अधिक सीटें भाजपा को दे रहे हैं। इसी तरह दो सर्वे कांग्रेस के स्पष्ट बहुमत की ओर इशारा कर रहे हैं।  मुख्यमंत्री समेत 33 मंत्रियों का भविष्य दांव पर  मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री समेत 33 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा है। शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ा। सिंधिया समर्थक मंत्री ओपीएस भदौरिया का टिकट काटा गया है। वह मेहगांव से विधायक थे। इन्हें छोड़ दें तो 32 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा ने ज्यादातर विधायकों को फिर मौका दिया है। साथ ही कई सीटों पर पूर्व विधायक चुनाव मैदान में हैं।   आदिवासी सीटों पर बढ़ा मतदान प्रतिशत  आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जोर लगाया है। 2018 में आदिवासी वोट बैंक भाजपा के हाथ से छिटककर कांग्रेस के पास चला गया था। सत्ता परिवर्तन का आधार भी बना था। उस समय आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा था। कांग्रेस ने 30 और भाजपा ने 16 सीटें जीती थी। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। इस बार आरक्षित सीटों में से सिर्फ 32 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है। 15 सीटों पर मतदान का प्रतिशत घटा भी है। खास बात यह है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित 24 सीटों पर ही 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है।  34 सीटों पर वोटिंग में महिलाएं अव्वल मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 34 पर महिलाओं का मत प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा है। इन 34 सीटों में अधिकतर सीटें विंध्य और महाकौशल की हैं, जहां इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। विंध्य में 2018 में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर 30 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, ग्वालियर-चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा स्थापित हुआ था और कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में बड़ी संख्या में सीटें हासिल की थी। यह बात अलग है कि इस बार सिंधिया ने भाजपा के लिए वोट मांगे हैं।  कांग्रेस में सीएम का चेहरा स्पष्ट, भाजपा चुप  कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पिछली बार विवाद की स्थित बनी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मुख्यमंत्री बनने के दावेदार थे। कांग्रेस के चुनाव अभियान का नेतृत्व भी उनके पास था। इसके बाद भी कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, इस बार कांग्रेस में कोई विवाद नहीं है। कमलनाथ स्पष्ट तौर पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं। यह बात अलग है कि इस बार भाजपा में असमंजस की स्थिति है। भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को आगे नहीं बढ़ाया है। वहीं, मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार समझे जाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल को भी विधानसभा चुनाव मैदान में उतारकर मुख्यमंत्री पद के फैसले को उलझा दिया है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: आनंद पवार Updated Sat, 02 Dec 2023 01: 46 PM IST

 
मध्य प्रदेश की 230 सीटों पर 17 नवंबर को मतदान हुआ था। तीन दिसंबर को सुबह आठ बजे मतगणना शुरू होगी। एक घंटे में पोस्टल बैलेट के रुझान आ जाएंगे। 10 बजे तक सभी सीटों के रुझान आ जाने की उम्मीद है।  
  MP Election 2023 – फोटो : अमर उजाला, इंदौर

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वह घड़ी आ गई है, जिसका न केवल भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल, बल्कि मध्य प्रदेश की नौ करोड़ जनता को भी है। दोनों ही पार्टियों ने दमदार तरीके से चुनाव लड़ा। भाजपा की ओर से जहां मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान फ्रंटरनर बने हुए थे, वहीं कांग्रेस की ओर से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के हाथ में बागड़ोर थी। सत्ता का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो रविवार को ही पता चलेगा। इससे पहले दोनों ही पार्टियों ने अपनी-अपनी जीत के दावे किए हैं। दस एग्जिट पोल में भी चार में भाजपा को बहुमत और दो में कांग्रेस को बहुमत मिलने का दावा किया गया है। चार एग्जिट पोल में कांटे का मुकाबला दिखाया गया है। 

मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों के लिए 17 नवंबर को मतदान हुआ था। इस बार 2533 प्रत्याशी मैदान में थे। अब तक हुए विधानसभा चुनावों के सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए मध्य प्रदेश में पहली 77.15% वोटिंग हुई है। इसमें भी 78.21% पुरुष और 76.03% महिलाओं ने मतदान किया। इसके मुकाबले 2018 के चुनावों में  75.2% वोटिंग हुई थी, जो इससे पहले तक एक रिकॉर्ड थी। रविवार को जिला मुख्यालयों के स्ट्रांग रूम से ईवीएम निकालकर मतों की गिनती का काम सुबह आठ बजे शुरू होगा। एक घंटे बाद रुझान आने लगेंगे। उम्मीद की जा रही है कि रविवार सुबह 10 बजे तक सभी सीटों के रुझान मिल जाएंगे। 2018 की बात करें तो भाजपा को 109 और कांग्रेस को 114 सीटें मिली थी। बसपा को दो, सपा को एक और निर्दलियों को चार सीटें मिली थी। कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ने 15 साल बाद मध्य प्रदेश में सरकार बनाई थी। हालांकि, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के विधायकों ने इस्तीफा दिया और भाजपा में शामिल हुए। तब शिवराज सिंह चौहान फिर मुख्यमंत्री बने। साढ़े तीन साल में भाजपा ने उन गलतियों को दूर करने की भरसक कोशिश की, जिनकी वजह से उसे 2018 में सत्ता से दूर होना पड़ा था। लाड़ली बहना जैसी योजनाएं भी लागू की, जिसके तहत करीब 1.31 करोड़ महिलाओं के खाते में हर महीने 1,250 रुपये डाले जा रहे हैं। 

एग्जिट पोल्स में भाजपा को बढ़त
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर केंद्रीय मंत्रियों तक, हर कोई भाजपा की जीत का दावा कर रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रणदीप सुरजेवाला समेत पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ एग्जिट पोल्स के आंकड़ों पर सवाल उठाकर कांग्रेस की जीत के दावे कर रहे हैं। सुरजेवाला ने तो शुक्रवार को कह दिया कि पार्टी को 135 सीटें मिल रही हैं। इससे पहले गुरुवार को तमाम सर्वे एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल के आंकड़े जारी किए। इनमें दस में से चार में भाजपा को स्पष्ट बहुमत का दावा किया गया है। तीन सर्वे तो 230 में से 140 से अधिक सीटें भाजपा को दे रहे हैं। इसी तरह दो सर्वे कांग्रेस के स्पष्ट बहुमत की ओर इशारा कर रहे हैं। 

मुख्यमंत्री समेत 33 मंत्रियों का भविष्य दांव पर 
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मुख्यमंत्री समेत 33 मंत्रियों को चुनाव मैदान में उतारा है। शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया ने स्वास्थ्य कारणों से चुनाव नहीं लड़ा। सिंधिया समर्थक मंत्री ओपीएस भदौरिया का टिकट काटा गया है। वह मेहगांव से विधायक थे। इन्हें छोड़ दें तो 32 मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर है। भाजपा ने ज्यादातर विधायकों को फिर मौका दिया है। साथ ही कई सीटों पर पूर्व विधायक चुनाव मैदान में हैं।  

आदिवासी सीटों पर बढ़ा मतदान प्रतिशत 
आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही जोर लगाया है। 2018 में आदिवासी वोट बैंक भाजपा के हाथ से छिटककर कांग्रेस के पास चला गया था। सत्ता परिवर्तन का आधार भी बना था। उस समय आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा था। कांग्रेस ने 30 और भाजपा ने 16 सीटें जीती थी। एक सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। इस बार आरक्षित सीटों में से सिर्फ 32 सीटों पर मतदान प्रतिशत बढ़ा है। 15 सीटों पर मतदान का प्रतिशत घटा भी है। खास बात यह है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित 24 सीटों पर ही 80 प्रतिशत से ज्यादा मतदान हुआ है। 

34 सीटों पर वोटिंग में महिलाएं अव्वल
मध्य प्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में से 34 पर महिलाओं का मत प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा रहा है। इन 34 सीटों में अधिकतर सीटें विंध्य और महाकौशल की हैं, जहां इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प है। विंध्य में 2018 में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर 30 में से 24 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, ग्वालियर-चंबल संभाग में ज्योतिरादित्य सिंधिया का जलवा स्थापित हुआ था और कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में बड़ी संख्या में सीटें हासिल की थी। यह बात अलग है कि इस बार सिंधिया ने भाजपा के लिए वोट मांगे हैं। 

कांग्रेस में सीएम का चेहरा स्पष्ट, भाजपा चुप 
कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर पिछली बार विवाद की स्थित बनी थी। 2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मुख्यमंत्री बनने के दावेदार थे। कांग्रेस के चुनाव अभियान का नेतृत्व भी उनके पास था। इसके बाद भी कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि, इस बार कांग्रेस में कोई विवाद नहीं है। कमलनाथ स्पष्ट तौर पर कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के चेहरे हैं। यह बात अलग है कि इस बार भाजपा में असमंजस की स्थिति है। भाजपा ने शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को आगे नहीं बढ़ाया है। वहीं, मुख्यमंत्री पद के तगड़े दावेदार समझे जाने वाले नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रह्लाद पटेल को भी विधानसभा चुनाव मैदान में उतारकर मुख्यमंत्री पद के फैसले को उलझा दिया है।

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