mp:-मप्र-की-स्वास्थ्य-सुविधाएं-बेहद-खराब,-महिलाओं-बच्चों-की-स्थिति-चिंताजनक,-हाईकोर्ट-ने-मांगा-जवाब
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Fri, 19 Jul 2024 08: 49 PM IST याचिका में मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता जताई गई है। याचिका में पेश किए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं।    मप्र में महिलाएं बच्चे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए परेशान हैं। - फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर विस्तार वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें मध्यप्रदेश में बदहाल ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति दुपल्ला वेंटकरमन्ना की युगल पीठ ने मध्यप्रदेश शासन से जवाब तलब किया है। यह याचिका गांधीवादी विचारक और लेखक चिन्मय मिश्र द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अधिवक्ता अभिनव धनोड़कर ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखा। न्यायालय ने इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए मध्यप्रदेश शासन को 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के लिए कहा है।  याचिका में मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता जताई गई है। याचिका में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है: शिशु मृत्यु दर: भारत में जहां शिशु मृत्यु दर 32 प्रति 1000 है, वहीं मध्यप्रदेश में यह 48 प्रति 1000 है। मातृ मृत्यु दर: राष्ट्रीय स्तर पर मातृ मृत्यु दर 113 प्रति 100,000 है, जबकि मध्यप्रदेश में यह 173 प्रति 100,000 है। गर्भवती महिलाओं की देखभाल: केवल 55% ग्रामीण महिलाओं को ही प्रसव पूर्व 4 बार जांच की सुविधा मिल पाती है, जो कि आवश्यक है। प्रसव के दौरान आयरन फोलिक एसिड: केवल 30% महिलाओं को ही प्रसव के समय आयरन फोलिक एसिड दिया जाता है, बाकी 70% महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं। स्तनपान: केवल 42% महिलाएं ही जन्म के 1 घंटे के अंदर अपने बच्चे को स्तनपान करवाती हैं। खून की कमी: मध्यप्रदेश में 58% से अधिक महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त हैं। इन सबके अलावा, याचिका में ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों, स्वास्थ्य केंद्रों और दवाओं की कमी का भी उल्लेख किया गया है। याचिकाकर्ता ने ये तर्क दिए याचिकाकर्ता का तर्क यह है कि, स्वास्थ्य का अधिकार तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभ तथा पूर्ण उपलब्धता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत, जीवन जीने के अधिकार की श्रेणी में होकर एक मौलिक अधिकार है, तथा शासन का यह दायित्व है कि ग्रामीण इलाकों में व्याप्त बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में तुरंत सुधार करें। याचिका का आधार यह है कि मध्यप्रदेश के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्यप्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, प्राइमरी हेल्थ सेंटर या सब सेंटर, जो कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की नींव है, भारत शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के अनुसार कार्यरत नहीं है, वहां न तो उपयुक्त सुविधाएं हैं और न ही डॉक्टर तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मी। एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं 2019-21 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 309 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर है, जिसमें हर एक सेंटर में एक फिजीशियन, एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा एक बच्चों के चिकित्सक की नियुक्ति होना आवश्यक है लेकिन 309 में से एक भी ऐसा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर नहीं है। जहां इस सब की नियुक्ति हो। कुल मिलाकर 324 सर्जन की नियुक्ति की आवश्यकता है, उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है और बाकी 302 पद खाली हैं। 324 जनरल फिजीशियन की नियुक्ति की आवश्यकता है। उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है। बाकी 302 पद खाली हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ में 324 में से केवल 21 पद भरे हैं बाकी 303 पद खाली हैं। बच्चों के विशेषज्ञों के लिए आवश्यकता 309 नियुक्तियों की है लेकिन केवल 60 पद ही स्वीकृत हैं, जिनमें से भी केवल 11 पर ही नियुक्ति हुई हैं। सबसे चौंकाने वाले स्थिति यह है कि, मध्य प्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं है और केवल 5 ही एनेस्थेटिस्ट नियुक्त हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 28 पर्सेंट सब सेंटर्स की कमी है। 47 पर्सेंट प्राइमरी हेल्थ सेंटर की कमी है और 45 पर्सेंट कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार जितने भी सेंटर हैं। उनमें से एक भी सेंटर इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार कार्यरत नहीं है। हर सेंटर में कोई ना कोई कमी है। जिसके कारण मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल स्थिति है और इसका विपरीत प्रभाव सबसे अधिक महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

You can share this post!

Related News

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Fri, 19 Jul 2024 08: 49 PM IST

याचिका में मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता जताई गई है। याचिका में पेश किए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 
  मप्र में महिलाएं बच्चे बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए परेशान हैं। – फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर

विस्तार वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें

मध्यप्रदेश में बदहाल ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दायर जनहित याचिका पर शुक्रवार को न्यायमूर्ति एसए धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति दुपल्ला वेंटकरमन्ना की युगल पीठ ने मध्यप्रदेश शासन से जवाब तलब किया है। यह याचिका गांधीवादी विचारक और लेखक चिन्मय मिश्र द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अधिवक्ता अभिनव धनोड़कर ने याचिकाकर्ता का पक्ष रखा। न्यायालय ने इस गंभीर मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश देते हुए मध्यप्रदेश शासन को 4 सप्ताह में जवाब पेश करने के लिए कहा है। 

याचिका में मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों की स्वास्थ्य स्थिति पर चिंता जताई गई है। याचिका में निम्नलिखित मुख्य बिंदुओं पर प्रकाश डाला गया है:

शिशु मृत्यु दर: भारत में जहां शिशु मृत्यु दर 32 प्रति 1000 है, वहीं मध्यप्रदेश में यह 48 प्रति 1000 है।
मातृ मृत्यु दर: राष्ट्रीय स्तर पर मातृ मृत्यु दर 113 प्रति 100,000 है, जबकि मध्यप्रदेश में यह 173 प्रति 100,000 है।
गर्भवती महिलाओं की देखभाल: केवल 55% ग्रामीण महिलाओं को ही प्रसव पूर्व 4 बार जांच की सुविधा मिल पाती है, जो कि आवश्यक है।
प्रसव के दौरान आयरन फोलिक एसिड: केवल 30% महिलाओं को ही प्रसव के समय आयरन फोलिक एसिड दिया जाता है, बाकी 70% महिलाएं इससे वंचित रह जाती हैं।
स्तनपान: केवल 42% महिलाएं ही जन्म के 1 घंटे के अंदर अपने बच्चे को स्तनपान करवाती हैं।
खून की कमी: मध्यप्रदेश में 58% से अधिक महिलाएं एनीमिया (खून की कमी) से ग्रस्त हैं।
इन सबके अलावा, याचिका में ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों, स्वास्थ्य केंद्रों और दवाओं की कमी का भी उल्लेख किया गया है।

याचिकाकर्ता ने ये तर्क दिए
याचिकाकर्ता का तर्क यह है कि, स्वास्थ्य का अधिकार तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभ तथा पूर्ण उपलब्धता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत, जीवन जीने के अधिकार की श्रेणी में होकर एक मौलिक अधिकार है, तथा शासन का यह दायित्व है कि ग्रामीण इलाकों में व्याप्त बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में तुरंत सुधार करें। याचिका का आधार यह है कि मध्यप्रदेश के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्यप्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर, प्राइमरी हेल्थ सेंटर या सब सेंटर, जो कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की नींव है, भारत शासन के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड के अनुसार कार्यरत नहीं है, वहां न तो उपयुक्त सुविधाएं हैं और न ही डॉक्टर तथा अन्य स्वास्थ्य कर्मी।

एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं
2019-21 के नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 309 कम्युनिटी हेल्थ सेंटर है, जिसमें हर एक सेंटर में एक फिजीशियन, एक सर्जन, एक स्त्री रोग विशेषज्ञ तथा एक बच्चों के चिकित्सक की नियुक्ति होना आवश्यक है लेकिन 309 में से एक भी ऐसा कम्युनिटी हेल्थ सेंटर नहीं है। जहां इस सब की नियुक्ति हो। कुल मिलाकर 324 सर्जन की नियुक्ति की आवश्यकता है, उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है और बाकी 302 पद खाली हैं। 324 जनरल फिजीशियन की नियुक्ति की आवश्यकता है। उनमें से केवल 7 की ही नियुक्ति हुई है। बाकी 302 पद खाली हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ में 324 में से केवल 21 पद भरे हैं बाकी 303 पद खाली हैं। बच्चों के विशेषज्ञों के लिए आवश्यकता 309 नियुक्तियों की है लेकिन केवल 60 पद ही स्वीकृत हैं, जिनमें से भी केवल 11 पर ही नियुक्ति हुई हैं। सबसे चौंकाने वाले स्थिति यह है कि, मध्य प्रदेश में एक भी कम्युनिटी हेल्थ सेंटर में नेत्र रोग विशेषज्ञ नहीं है और केवल 5 ही एनेस्थेटिस्ट नियुक्त हैं।

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार मध्य प्रदेश में 28 पर्सेंट सब सेंटर्स की कमी है। 47 पर्सेंट प्राइमरी हेल्थ सेंटर की कमी है और 45 पर्सेंट कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की कमी है। रिपोर्ट के अनुसार जितने भी सेंटर हैं। उनमें से एक भी सेंटर इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार कार्यरत नहीं है। हर सेंटर में कोई ना कोई कमी है। जिसके कारण मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल स्थिति है और इसका विपरीत प्रभाव सबसे अधिक महिलाओं और बच्चों पर पड़ रहा है।

रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

Posted in MP