सुप्रीम कोर्ट – फोटो : Social media
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सुप्रीम कोर्ट ने मप्र हाईकोर्ट द्वारा आर्कबिशप जेराल्ड अल्मेडा और सिस्टर लिली को दी गई अग्रिम जमानत पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। इन पर कटनी की आशा किरण संस्था में हिंदू अनाथ बच्चों का धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनाने का आरोप है।
शीर्ष कोर्ट ने बिशप अल्मेडा व सिस्टर लिली को नोटिस जारी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) व मप्र सरकार द्वारा दायर अलग अलग अपीलों पर जवाब मांगा है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा, ‘हम अग्रिम जमानत पर रोक नहीं लगा सकते, नोटिस जारी करो।’ इसके साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि हम हाईकोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था पर भी रोक नहीं लगा सकते। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है।
बता दें, हाईकोर्ट ने दोनों आरोपियों को अग्रिम जमानत देने के साथ कहा था कि धर्मांतरण की शिकायत सिर्फ वह व्यक्ति दायर कर सकता है जो पीड़ित का रक्त संबंधी हो, विवाह से, अभिभावक के नाते या अभिरक्षक अथवा दत्तक के नाते उससे जुड़ा हो। इन लोगों के अलावा कोई धर्मांतरण की शिकायत नहीं कर सकता। मप्र हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि उक्त संबंधित पक्षों या पीड़ित की शिकायत के बगैर पुलिस को मप्र धार्मिक स्वतंत्रता कानून 2021 के तहत धर्मांतरण के मामले में जांच करने का अधिकार नहीं है।
आर्कबिशप अल्मेडा और सिस्टर लिली जोसेफ को एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो द्वारा कटनी के उक्त अनाथ आश्रम के दौरे के बाद गिरफ्तार किया गया था। एनसीपीसीआर ने विद्यार्थियों के पास बाइबल पाए जाने का दावा करते हुए धर्मांतरण की शिकायत की थी। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 19 जून को अग्रिम जमानत देते हुए कहा कि इस मामले में एक व्यक्ति द्वारा निरीक्षण के आधार पर शिकायत दर्ज की गई है। धर्मांतरित व्यक्ति या उसके रिश्तेदार या अन्य संबंधित द्वारा शिकायत नहीं की गई है। हाईकोर्ट ने बिशप व सिस्टर को राहत देते हुए आशा किरण संस्था को निर्देश दिया था कि वहां रखे गए अनाथ बच्चों को धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाए, यह सुनिश्चित करें।
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