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हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि संज्ञेय अपराध में आपसी समझौते के आधार पर आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता है। एकलपीठ ने उक्त आदेश के साथ याचिका को खारिज कर दिया।
भोपाल निवासी जसप्रीत सिंह चीमा की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि अनावेदक सौरभ चौकसे की शिकायत पर पिपलानी थाने में धारा 326 के तहत अपराधिक प्रकरण दर्ज किया गया था। दोनों के बीच मालूमी बात पर विवाद हुआ था। दोनों के बीच आपसी समझौता हो गया है। याचिका में राहत चाही गयी थी कि आपसी समझौते के आधार पर आरोप-पत्र को निरस्त किया जाये। सरकार की तरफ से आपत्ति पेश करते हुए बताया गया कि धारा 326 में दस साल से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान है। संज्ञेय अपराध होने के कारण आपसी समझौते के तहत आरोप-पत्र को निरस्त नहीं किया जा सकता है।
एकलपीठ ने याचिका को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि साल साल से अधिक की सजा वाले संज्ञेय अपराध की सुनवाई सत्र न्यायालय द्वारा की जाती है। तीन से सातल साल की सजा के प्रावधान वाले संज्ञेय अपराध के मामलों की सुनवाई जेएमएफसी द्वारा की जाती है। तीन साल से कम की सजा वाले असंज्ञेय अपराध के मामले की सजा मजिस्ट्रेट द्वारा की जाती है। याचिकाकर्ता द्वारा किये गये अपराध में दस से आजीवन कारावास की सजा से दंडित किये जाने का प्रावधान है। संज्ञेय अपराध होने के कारण आपसी समझौते के तहत आरोप-पत्र निरस्त नहीं किया जा सकता है।
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