jabalpur-news:-अभियोजन-साक्ष्य-समाप्त-के-बाद-नहीं-कर-सकते-धारा-165-का-आवेदन-स्वीकार
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर - फोटो : अमर उजाला विस्तार वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें अभियोजन पक्ष का साक्ष्य अधिकार समाप्त किए जाने के बाद न्यायालय द्वारा साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 का आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट ने उक्त आदेश के साथ याचिका को स्वीकार करते हुए जेएमएफसी के आदेश को निरस्त कर दिया। रीवा निवासी मुकेश पांडे तथा अन्य तीन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि जेएमएफसी हनुमना ने अभियोजन का साक्ष्य अधिकारी समाप्त कर दिया था। इसके गवाहों की जांच व जिरह के लिए आवेदन दायर किया गया था, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत आवेदन दायर किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश जारी किए थे। याचिका की सुनवाई के दौरान अनावेदक की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ता आरोपी पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं, जिसके कारण उन्हें तथा गवाहों को वारंट तामील नहीं हुए। इस कारण से वह न्यायालय में गवाही के लिए उपस्थित नहीं हो पाए। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जेएसएससी ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य अधिकार समाप्त कर दिए थे। सीआरपी की धारा-311 के तहत दायर आवेदन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया। अपराध की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने ऐसा किया है, परंतु वह ऐसा नहीं करते हैं। साक्ष्य अधिकार समाप्त किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी गयी है। आवेदन को स्वीकार करना पूर्व में पारित आदेश की समीक्षा करना है। 

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अभियोजन पक्ष का साक्ष्य अधिकार समाप्त किए जाने के बाद न्यायालय द्वारा साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 का आवेदन स्वीकार नहीं किया जा सकता है। हाईकोर्ट जस्टिस विशाल धगट ने उक्त आदेश के साथ याचिका को स्वीकार करते हुए जेएमएफसी के आदेश को निरस्त कर दिया।

रीवा निवासी मुकेश पांडे तथा अन्य तीन की तरफ से दायर याचिका में कहा गया था कि जेएमएफसी हनुमना ने अभियोजन का साक्ष्य अधिकारी समाप्त कर दिया था। इसके गवाहों की जांच व जिरह के लिए आवेदन दायर किया गया था, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत आवेदन दायर किया, जिसे स्वीकार कर लिया गया। याचिका की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने स्थगन आदेश जारी किए थे।

याचिका की सुनवाई के दौरान अनावेदक की तरफ से बताया गया कि याचिकाकर्ता आरोपी पुलिस के साथ मिलकर काम करते हैं, जिसके कारण उन्हें तथा गवाहों को वारंट तामील नहीं हुए। इस कारण से वह न्यायालय में गवाही के लिए उपस्थित नहीं हो पाए। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जेएसएससी ने अभियोजन पक्ष के साक्ष्य अधिकार समाप्त कर दिए थे।

सीआरपी की धारा-311 के तहत दायर आवेदन को निरस्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने साक्ष्य अधिनियम की धारा-165 के तहत दायर आवेदन को स्वीकार कर लिया। अपराध की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने ऐसा किया है, परंतु वह ऐसा नहीं करते हैं। साक्ष्य अधिकार समाप्त किये जाने को हाईकोर्ट में चुनौती नहीं दी गयी है। आवेदन को स्वीकार करना पूर्व में पारित आदेश की समीक्षा करना है। 

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