सांकेतिक तस्वीर - फोटो : सोशल मीडिया विस्तार Follow Us बाल संरक्षण के लिए राज्य स्तरीय परामर्श के लिए दो दिवसीय 'विमर्श' नाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम का शुभांरभ करते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ ने अपने उद्बोधन में कहा कि मानसिक विकास के बिना बाल सरंक्षण संभव नहीं है। अस्वस्थ मस्तिक ही शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट का मुख्य कारण है। दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, मप्र राज्य न्यायिक अकादमी, मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, यूनिसेफ एवं प्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। मप्र राज्य अकादमी में आयोजित कार्यक्रम को उद्प्रज्वलन के साथ किया। उन्होंने कहा कि बच्चे की सुरक्षा का दायरा काफी बड़ा है। बाल संरक्षण को आमतौर पर बच्चे का शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण तथा पुनर्वास और प्रभावी ढंग से किशोर न्याय अधिनियम का पालन करना समझते हैं। कानून के उद्देश्यों की प्राप्ति तभी संभव है, जब बच्चे की मानसिक भलाई सुनिश्चित की जाये। इस क्षेत्र के कुशल परामर्शदाता और चिकित्सक निश्चित रूप से बच्चों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार व उन संस्थाओं की है, जो इस क्षेत्र में कार्य करती है। कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लक्ष्य को प्राप्त करना है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकारी एजेंसी को स्कूल व कॉलेज में परामर्शदाताओं और चिकित्सकों की नियुक्ति पर विचार करना चाहिए। माता-पिता का भी दायित्व है कि वह बच्चों को परामर्शदताओं व चिकित्सकों के पास लेकर जाएं। स्कूलों में ऐसा किया जाता है तो अपराध से पीड़ित बच्चों के लिए लाभदायक होगा। जो घर पर अपने विचार साझा करने में असहज होते हैं। बच्चे की मानसिक भलाई उसके जीवन को सुरक्षित करती है। इस अवसर पर हाईकोर्ट जज तथा किशोर न्याय समिति के सदस्य जस्टिस आनंद पाठक ने कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य केवल तंत्र पर ध्यान केन्द्रित करना नहीं है। बच्चों की सुरक्षा संबंधित मुद्दों के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों पर विचार करना है। समृद्ध वर्ग समाज के लोगों को स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ खुद को शामिल करना चाहिए। बच्चों के लिए असुरक्षित स्थानों में भी जाकर उनसे बात करनी चाहिए। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश राजोरा तथा यूनिसेफ की मुख्य फील्ड अधिकारी मार्गरेट ग्वाडा ने कार्यक्रम को संबोधित किया।

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बाल संरक्षण के लिए राज्य स्तरीय परामर्श के लिए दो दिवसीय ‘विमर्श’ नाम कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। कार्यक्रम का शुभांरभ करते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि विजय कुमार मलिमठ ने अपने उद्बोधन में कहा कि मानसिक विकास के बिना बाल सरंक्षण संभव नहीं है। अस्वस्थ मस्तिक ही शारीरिक स्वास्थ्य में गिरावट का मुख्य कारण है।

दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, मप्र राज्य न्यायिक अकादमी, मध्यप्रदेश राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, यूनिसेफ एवं प्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। मप्र राज्य अकादमी में आयोजित कार्यक्रम को उद्प्रज्वलन के साथ किया। उन्होंने कहा कि बच्चे की सुरक्षा का दायरा काफी बड़ा है। बाल संरक्षण को आमतौर पर बच्चे का शारीरिक और मनोवैज्ञानिक कल्याण तथा पुनर्वास और प्रभावी ढंग से किशोर न्याय अधिनियम का पालन करना समझते हैं।

कानून के उद्देश्यों की प्राप्ति तभी संभव है, जब बच्चे की मानसिक भलाई सुनिश्चित की जाये। इस क्षेत्र के कुशल परामर्शदाता और चिकित्सक निश्चित रूप से बच्चों के जीवन में बदलाव ला सकते हैं। यह जिम्मेदारी राज्य सरकार व उन संस्थाओं की है, जो इस क्षेत्र में कार्य करती है। कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार लक्ष्य को प्राप्त करना है।

उन्होंने सुझाव दिया कि सरकारी एजेंसी को स्कूल व कॉलेज में परामर्शदाताओं और चिकित्सकों की नियुक्ति पर विचार करना चाहिए। माता-पिता का भी दायित्व है कि वह बच्चों को परामर्शदताओं व चिकित्सकों के पास लेकर जाएं। स्कूलों में ऐसा किया जाता है तो अपराध से पीड़ित बच्चों के लिए लाभदायक होगा। जो घर पर अपने विचार साझा करने में असहज होते हैं। बच्चे की मानसिक भलाई उसके जीवन को सुरक्षित करती है।

इस अवसर पर हाईकोर्ट जज तथा किशोर न्याय समिति के सदस्य जस्टिस आनंद पाठक ने कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य केवल तंत्र पर ध्यान केन्द्रित करना नहीं है। बच्चों की सुरक्षा संबंधित मुद्दों के साथ-साथ भविष्य की चुनौतियों पर विचार करना है। समृद्ध वर्ग समाज के लोगों को स्कूलों में जाकर बच्चों के साथ खुद को शामिल करना चाहिए। बच्चों के लिए असुरक्षित स्थानों में भी जाकर उनसे बात करनी चाहिए। गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश राजोरा तथा यूनिसेफ की मुख्य फील्ड अधिकारी मार्गरेट ग्वाडा ने कार्यक्रम को संबोधित किया।

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