jabalpur:-जांच-उपरांत-संज्ञेय-अपराध-बनने-पर-दर्ज-करें-fir,-नए-कानून-के-तहत-पहले-मामले-में-हाईकोर्ट-के-निर्देश
एक जुलाई को नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है। कोर्ट ने निर्देशित किया है कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके।  जबलपुर हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us मप्र हाईकोर्ट ने एक धर्मगुरु द्वारा अन्य धर्मगुरु व उनके परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के मामले में पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने नए कानून नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देशित किया है कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके। बता दें कि एक जुलाई को नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है। गोटेगांव निवासी अमीश तिवारी की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने गोटेगांव पुलिस में 7 मई को शिकायत की थी कि दतिया निवासी धर्मगुरु गुरुशरण शर्मा तमाम साधु संतों के विरुद्ध टीका टिप्पणियां करते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वायरल करते हैं। न्यायालय को बताया गया कि गुरुशरण शर्मा ने बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादर पूर्वक संबोधन किया, जिसमें अशोभनीय भाषा का उपयोग किया गया। शास्त्री व उनके परिवार के लोगों के संबंध में अशोभनीय व लज्जा भंग करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। अधिवक्ता दुबे ने दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे। यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। ऐसा नहीं होने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद न्यायालय ने नए कानून की व्याख्या करते हुए उक्त आदेश दिए।

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एक जुलाई को नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है। कोर्ट ने निर्देशित किया है कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके।  जबलपुर हाईकोर्ट – फोटो : अमर उजाला

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मप्र हाईकोर्ट ने एक धर्मगुरु द्वारा अन्य धर्मगुरु व उनके परिवार पर अशोभनीय टिप्पणी करने के मामले में पुलिस को जांच करने के निर्देश दिए हैं। जस्टिस विशाल धगट की एकलपीठ ने नए कानून नागरिक सुरक्षा संहिता की व्याख्या करते हुए पुलिस को निर्देशित किया है कि जांच के बाद यदि संज्ञेय अपराध बनता है तो एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करें। यदि संज्ञेय अपराध नहीं बनता है तो उसकी जानकारी शिकायतकर्ता को दें ताकि वह उचित फोरम की शरण ले सके। बता दें कि एक जुलाई को नए कानून लागू होने के बाद संभवत: यह पहला मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने कोई आदेश दिया है।

गोटेगांव निवासी अमीश तिवारी की ओर से अधिवक्ता पंकज दुबे ने पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ता ने गोटेगांव पुलिस में 7 मई को शिकायत की थी कि दतिया निवासी धर्मगुरु गुरुशरण शर्मा तमाम साधु संतों के विरुद्ध टीका टिप्पणियां करते हैं और उन्हें इंटरनेट मीडिया के माध्यम से वायरल करते हैं। न्यायालय को बताया गया कि गुरुशरण शर्मा ने बागेश्वर धाम पीठाधीश्वर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के संबंध में अनादर पूर्वक संबोधन किया, जिसमें अशोभनीय भाषा का उपयोग किया गया। शास्त्री व उनके परिवार के लोगों के संबंध में अशोभनीय व लज्जा भंग करने जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया। इससे आहत होकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई। अधिवक्ता दुबे ने दलील दी कि नए कानून भारतीय नागरिक संहिता की धारा 173 के तहत पुलिस का यह दायित्व है कि शिकायत मिलने के 14 दिन के भीतर जांच करे। यदि अपराध असंज्ञेय है तो शिकायतकर्ता को उसकी सूचना दे। ऐसा नहीं होने पर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। सुनवाई के बाद न्यायालय ने नए कानून की व्याख्या करते हुए उक्त आदेश दिए।

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