मंगलवार को दिनभर पानी निकालने का प्रयास करते रहे कर्मचारी। – फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर
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वाटर प्लस सर्वे में सेवन स्टार रेटिंग पाने वाला इंदौर बारिश में सीवरेज के पानी से लबालब हो जाता है। पिछले तीन साल से आ रही इस परेशानी का हल न तो नगर निगम निकाल पाया है न ही शहर के जनप्रतिनिधि। हर साल शहर की जनता बारिश होते ही गंदे पानी में रहने को मजबूर हो जाती है। न सिर्फ लोगों के घरों, दुकानों में गंदा पानी भर जाता है बल्कि कई बस्तियां तक डूब जाती हैं। मंगलवार को हुई बारिश में तो नगर निगम के आसपास का बड़ा क्षेत्र सीवरेज के गंदे पानी से लबालब हो गया था।
नाला टैपिंग हुई फेल
नगर निगम ने सरकार की अलग-अलग योजनाओं से 350 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर नाला टेपिंग की है। शहर में 90 किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में नाला टेपिंग का दावा है। नाला टैपिंग के बाद ही शहर को वाटर प्लस में सेवन स्टार रेटिंग मिली थी लेकिन बाद में नाला टैपिंग के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे। बारिश होने पर जब पानी भरने लगा तो नाला टैपिंग के लिए जो लाइन शहर में बिछाई गई कई जगह उनके पाइप फोड़कर पानी को बहाना पड़ा। नाला टैपिंग से सीवरेज का पानी कान्ह नदी में मिलने से रोका जाता है। हालांकि बारिश होने पर इन नालों में तेज गति से पानी आता है जो बड़े नालों और कान्ह नदी में नहीं जा पाता और सीवरेज ओवरफ्लो होने के कारण यह पानी शहर में ही भर जाता है।
पानी भरने के यह भी कारण
पुराने शहर के 40 प्रतिशत हिस्से में स्टार्म वाटर लाइन ही नहीं है। इस वजह से बारिश का पानी सही तरीके से निकल नहीं पाता।
वाटर रिचार्जिंग पाइंट का मेंटेनेंस नहीं होता। कई जगह उन पर मिट्टी जमी है या कचरा भरा है तो पानी जमीन में नहीं जा पाता।
511 करोड़ रुपए और खर्च करेगा निगम
नमामि गंगे मिशन के अंतर्गत करीब 1200 करोड़ रुपए की विभिन्न परियोजनाएं देशभर में स्वीकृत हुई हैं। इसमें से सर्वाधिक राशि इंदौर को मिली है। कान्ह नदी के शुदि्धकरण के लिए 511 करोड़ रुपए इंदौर को मिले हैं। इस राशि से इंदौर में तीन सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का प्रोजेक्ट आया है। इसके अलावा कान्ह को सीवरेज से मुक्त कराने के लिए दस साल में 350 करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं।
नेताओं ने कहा यह अधिकारियों की गलती
कुछ समय पहले पत्रकारों से चर्चा के दौरान एमआइसी सदस्य राजेंद्र राठौर ने कहा कि नाला टेपिंग से शहर को फायदा नहीं हुआ। इस प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए खर्च करना फिजूलखर्ची साबित हुई। शहर की क्षमता का अनुमान सही न होने से बारिश में शहरभर में जल जमाव हुआ। चार से छह इंच बारिश में भी पहले इतना जल जमाव नहीं होता था, जो इस बार दो इंच बारिश में ही देखने को मिला। निरीक्षण के दौरान देखा गया था कि नाले में बारिश का पानी पहुंचा ही नहीं। इसके लिए नाला टेपिंग ही जिम्मेदार है। राठौर ने कहा कि इस लापरवाही के लिए तत्कालीन अफसरों पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
पहले नाला टेपिंग करो फिर बारिश में पानी भरने पर खोलो, यही विकास है
हाल ही में हुई एमआईसी की बैठक में महापौर और अन्य अधिकारियों के सामने एमआईसी सदस्य जीतू यादव ने कहा कि नदी-नालों में गिरने वाले ड्रेनेज के पानी को रोकने के लिए हमने करोड़ों रुपए खर्च कर नाला टेपिंग का काम किया। इससे नाले सूख गए और उनमें क्रिकेट खेलने के साथ पहलवानों की कुश्ती कराई गई। साथ ही शादी की सालगिरह और जन्मदिन जैसे आयोजन किए। अफसरों ने नाले में बैठक कर चाय-नाश्ता अलग किया। आज इन नदी-नालों की हालत खराब है और सूखे नालों में गंदा पानी बह रहा है। नाला टेपिंग की क्या यही प्लानिंग थी। उन्होंने यहां तक कहा कि पहले नाला टेपिंग करो, फिर बरसात में जलभराव होने पर खोलो, क्या यही विकास है? इस तरह काम करके जनता का पैसा क्यों बर्बाद कर रहे हो?
महापौर बोले पिछले साल से बेहतर स्थिति
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा कि इस साल पिछले साल से बेहतर स्थिति है। पिछले साल हमने कई जगह चिन्हित की थी जहां इस बार पानी नहीं भरा है। तेज बारिश में तो जल जमाव की स्थित बनती ही है। जहां निर्माण कार्य चल रहा है वहां पर समस्या आ रही है। वहां भी हम जल्द ही सुधार कर लेंगे।
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