indore-news:-संस्कृत-का-महत्व-भूल-रहे-हम,-उच्चारण-को-शुद्ध-और-प्रभावी-बनाती-है-यह-भाषा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Thu, 29 Aug 2024 06: 26 PM IST संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। वरिष्ठों ने बताया संस्कृत का महत्व।    संस्कृत दिवस के मौके पर छात्रों ने दी प्रस्तुति। - फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर विस्तार Follow Us भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण दिवस के रूप में हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर संस्कृत दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने इसे 1969 में मनाने की शुरुआत की, ताकि लोगों में हमारी प्राचीन, समृद्ध और सक्षम भाषा के प्रति संरक्षण का भाव जागे। इसके अध्ययन के प्रति झुकाव बढ़े। इसी उपलक्ष्य में पागनिसपागा स्थित बाल निकेतन संघ विद्यालय परिसर में हाल ही में गए संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत में श्लोक, गुरु स्त्रोत, गीत, वेद पाठ ज्योर्तिलिंग, राम स्तुति, राष्ट्र गीत, नाटक, नृत्य नाटिका, राष्ट्रीय चिन्ह पर विद्यार्थियों द्वारा सुंदर प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के मुख्य अथिति के रूप में लेखक एवं म.प्र. हिंदी साहित्य समिति इंदौर के उपसभापति, सूर्यकांत नागर, कर्मचारी राज्य बीमा निगम से सेवानिवृत एवं लेखक अरविंद रामचंद्र जवलेकर, बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ नीलिमा अदमणे, विद्यालय प्राचार्य संदीप धाकड़ मौजूद रहे। सभी भारतीय भाषाओं की मूल है संस्कृत इस अवसर पर बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमणे ने कहा कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं का मूल है, हमारी संस्कृति की जड़ें भी वहीं से निकलती हैं। संस्कृत सबसे बड़े शब्दकोश वाली भाषा है। हम गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हम ऐसी माटी से आते हैं जहां से यह देवभाषा निकली। संस्कृत एक एेसी भाषा है जिसमें मनुष्य का स्वाभाव एवं विचार अपने आप ही उसके वचनों से व्यतीत हो जाता है और उसका व्यक्तित्व समझ आ जाता है। उदाहरण के तौर पर रामायण का एक प्रसंग है, जहा युद्ध के पहले भगवान राम और रावण दोनों ने ही भगवान शिव की आराधना और भक्ति में एक एक श्लोक गाया। अपने स्वाभाव अनुसार रावण ने शिवताण्डवस्तोत्रम् गाया तथा भगवान राम ने रुद्राष्टकम् रचा। रावण के श्लोक में उसका घमंड एवं अहंकार दिखाई देता है वही दूसरी ओर भगवान राम के श्लोक में उनकी विनम्रता और सौम्यता झलक की दिखाई देती है।  धरोहर के रूप में मिली संस्कृत इस अवसर पर संस्कृत का महत्त्व समझाते हुए लेखक एवं म.प्र. हिंदी साहित्य समिति इंदौर के उपसभापति, सूर्यकांत नागर ने कहा कि संस्कृत सीखे बिना हम अपने उस साहित्य को नहीं जान सकते, जो ऋषि मुनि और तपस्वी धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं। इस भाषा को बोलने, सीखने से उच्चारण शुद्ध और प्रभावी होता है। हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति पर अधिक जोर देना चाहिए और बच्चों को बचपन से ही संस्कृत का अध्ययन शुरू करना चाहिए। भाषा के प्रति हमें बच्चों में लगन जगाना जरूरी है और आने वाले समय में संस्कृत को भी हिंदी जैसे ही शिक्षा में उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए। दूसरी भाषाओं की जननी है संस्कृत कर्मचारी राज्य बीमा निगम से सेवानिवृत एवं लेखक अरविंद रामचंद्र जवलेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि मैं बाल निकेतन संघ को बहुत बधाई देना चाहता हूं की उन्होंने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार का आयोजन किया। आज कल संस्कृत भाषा को एक वैकल्पिक भाषा का दर्जा दे दिया गया है जबकि संस्कृत दूसरी भाषाओं की जननी मानी जाती है। इसकी जगह दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं ने ले ली है। भारत की शिक्षा प्रणाली अंग्रेजो के आने से पहले बहुत मजबूत थी और संस्कृत भाषा में कई ग्रंथो को लिखा गया और हमारी उस समय आर्थिक स्थति भी बहुत मजबूत थी किन्तु अंग्रेजो ने देश को कमजोर करने के लिए यहां की शिक्षा प्रणाली को बदला। आज सरकार भी कोशिश कर रही है की बच्चों को भारत की पुरानी संस्कृति से जोड़ा जाए और जिसके लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन बाल निकेतन संघ की अध्यापिका वर्षा दुबे एवं आभार अंजलि सिंह ने माना। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Thu, 29 Aug 2024 06: 26 PM IST

संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। वरिष्ठों ने बताया संस्कृत का महत्व। 
  संस्कृत दिवस के मौके पर छात्रों ने दी प्रस्तुति। – फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर

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भारत की ही नहीं, विश्व की सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत के संरक्षण दिवस के रूप में हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर संस्कृत दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने इसे 1969 में मनाने की शुरुआत की, ताकि लोगों में हमारी प्राचीन, समृद्ध और सक्षम भाषा के प्रति संरक्षण का भाव जागे। इसके अध्ययन के प्रति झुकाव बढ़े। इसी उपलक्ष्य में पागनिसपागा स्थित बाल निकेतन संघ विद्यालय परिसर में हाल ही में गए संस्कृत दिवस के उपलक्ष्य पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों द्वारा संस्कृत में श्लोक, गुरु स्त्रोत, गीत, वेद पाठ ज्योर्तिलिंग, राम स्तुति, राष्ट्र गीत, नाटक, नृत्य नाटिका, राष्ट्रीय चिन्ह पर विद्यार्थियों द्वारा सुंदर प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के मुख्य अथिति के रूप में लेखक एवं म.प्र. हिंदी साहित्य समिति इंदौर के उपसभापति, सूर्यकांत नागर, कर्मचारी राज्य बीमा निगम से सेवानिवृत एवं लेखक अरविंद रामचंद्र जवलेकर, बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ नीलिमा अदमणे, विद्यालय प्राचार्य संदीप धाकड़ मौजूद रहे।

सभी भारतीय भाषाओं की मूल है संस्कृत
इस अवसर पर बाल निकेतन संघ की सचिव डॉ. नीलिमा अदमणे ने कहा कि संस्कृत सभी भारतीय भाषाओं का मूल है, हमारी संस्कृति की जड़ें भी वहीं से निकलती हैं। संस्कृत सबसे बड़े शब्दकोश वाली भाषा है। हम गौरवान्वित महसूस करते हैं कि हम ऐसी माटी से आते हैं जहां से यह देवभाषा निकली। संस्कृत एक एेसी भाषा है जिसमें मनुष्य का स्वाभाव एवं विचार अपने आप ही उसके वचनों से व्यतीत हो जाता है और उसका व्यक्तित्व समझ आ जाता है। उदाहरण के तौर पर रामायण का एक प्रसंग है, जहा युद्ध के पहले भगवान राम और रावण दोनों ने ही भगवान शिव की आराधना और भक्ति में एक एक श्लोक गाया। अपने स्वाभाव अनुसार रावण ने शिवताण्डवस्तोत्रम् गाया तथा भगवान राम ने रुद्राष्टकम् रचा। रावण के श्लोक में उसका घमंड एवं अहंकार दिखाई देता है वही दूसरी ओर भगवान राम के श्लोक में उनकी विनम्रता और सौम्यता झलक की दिखाई देती है। 

धरोहर के रूप में मिली संस्कृत
इस अवसर पर संस्कृत का महत्त्व समझाते हुए लेखक एवं म.प्र. हिंदी साहित्य समिति इंदौर के उपसभापति, सूर्यकांत नागर ने कहा कि संस्कृत सीखे बिना हम अपने उस साहित्य को नहीं जान सकते, जो ऋषि मुनि और तपस्वी धरोहर के रूप में छोड़ गए हैं। इस भाषा को बोलने, सीखने से उच्चारण शुद्ध और प्रभावी होता है। हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति पर अधिक जोर देना चाहिए और बच्चों को बचपन से ही संस्कृत का अध्ययन शुरू करना चाहिए। भाषा के प्रति हमें बच्चों में लगन जगाना जरूरी है और आने वाले समय में संस्कृत को भी हिंदी जैसे ही शिक्षा में उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।

दूसरी भाषाओं की जननी है संस्कृत
कर्मचारी राज्य बीमा निगम से सेवानिवृत एवं लेखक अरविंद रामचंद्र जवलेकर ने अपने उद्बोधन में कहा कि मैं बाल निकेतन संघ को बहुत बधाई देना चाहता हूं की उन्होंने संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार का आयोजन किया। आज कल संस्कृत भाषा को एक वैकल्पिक भाषा का दर्जा दे दिया गया है जबकि संस्कृत दूसरी भाषाओं की जननी मानी जाती है। इसकी जगह दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं ने ले ली है। भारत की शिक्षा प्रणाली अंग्रेजो के आने से पहले बहुत मजबूत थी और संस्कृत भाषा में कई ग्रंथो को लिखा गया और हमारी उस समय आर्थिक स्थति भी बहुत मजबूत थी किन्तु अंग्रेजो ने देश को कमजोर करने के लिए यहां की शिक्षा प्रणाली को बदला। आज सरकार भी कोशिश कर रही है की बच्चों को भारत की पुरानी संस्कृति से जोड़ा जाए और जिसके लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान बहुत जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन बाल निकेतन संघ की अध्यापिका वर्षा दुबे एवं आभार अंजलि सिंह ने माना।

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