indore-news:-डेंगू-मलेरिया-की-मौतें-कैसे-छुपाती-है-सरकार,-रोज-सैकड़ों-मरीज,-रिकॉर्ड-में-गायब
INDORE NEWS - फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर विस्तार Follow Us इंदौर में डेंगू से 15 साल के छात्र की मौत होने के बावजूद प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग इसे डेंगू से मौत नहीं मान रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है। दरअसल, डेंगू और मलेरिया की मौत में पहले भी इसी तरह से खेल होता रहा है।  क्या है मामला 18 अगस्त को देर रात छात्र मंसूरी अंसारी (15) को प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया था। वहां बेड नहीं होने पर 19 की सुबह एक अन्य प्राइवेट अस्पताल ले गए। यहां भर्ती करने के बाद सुबह 11 से 12 बजे के बीच उसने दम तोड़ दिया। सरकारी लैब में हुए मेकएलाइजा टेस्ट में छात्र को डेंगू होना पाया गया। छात्र के पिता ने बताया 17 अगस्त को बुखार आने पर बेटे को सामान्य दवा-गोली दी। बाद में ठीक लगा तो शाम में घूमने भी गया। 18 अगस्त को फिर बुखार आया तो देर शाम क्लिनिक पर दिखाया। वहां से वापस घर ले आए तो देर रात फिर तबीयत बिगड़ी। 19 अगस्त की सुबह 6 बजे हमने CHL Care हॉस्पिटल में भर्ती कराया। यहां जांचें हुईं और इलाज के दौरान ही छात्र की मौत हो गई। हॉस्पिटल ने रिपोर्ट विभाग को भेज दी थी।  मलेरिया विभाग ने खुद भी पुष्टि की, फिर भी रिकार्ड में दर्ज नहीं मलेरिया विभाग का कहना है कि हमें अस्पताल से इस बारे में 29 अगस्त को रिपोर्ट प्राप्त हुई। उसके बाद सैंपल को मेकएलाइजा जांच के लिए सरकारी लैब में भेजा। वहां से 3 सितंबर को नई रिपोर्ट आई। उसी आधार पर डेंगू माना गया है, इसलिए अधिकृत तौर पर मौत की पुष्टि में 15 से ज्यादा दिन लग गए।  इलाज करने वाले डॉक्टर बोले डेंगू से हुई मौत छात्र का इलाज करने वाले डॉ. निखिलेश जैन ने बताया कि छात्र को डेंगू शॉक सिंड्रोम था। यह ऐसा है कि डेंगू बुखार का शरीर के अलग-अलग अंगों पर असर पड़ने लगता है। किडनी, लिवर के अलावा बाकी अंग भी कमजोर हो गए। शरीर में पस पड़ गया। यूरिन में भी इन्फेक्शन था और सेप्सिस भी हो गया। यानी संक्रमण और डेंगू साथ-साथ। ऐसे में मल्टी ऑर्गन फैल हो गए। जहां तक मौत के कारण का प्रश्न है, कार्डियक अरेस्ट दर्ज करने का मतलब है कि धड़कन रुक जाना लेकिन असल कारण इंफेक्शन और डेंगू था। रिपोर्ट गायब कर देता है विभाग भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार डेंगू पॉजिटिव मरीज उसी को माना जाता है जिसका मेकएलाइजा टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट सिर्फ सरकारी लैब में मान्य है। इस मामले में भी यह टेस्ट हुआ और रिपोर्ट में डेंगू आया लेकिन इसके बाद भी सरकार की रिपोर्ट से यह मौत गायब कर दी गई है। जिला प्रशासन ने इसे मान लिया है लेकिन वह भी इसमें कार्डियक अरेस्ट की बात कह रहे हैं। इंदौर जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. दौलत पटेल ने मंसूर को डेंगू होने की पुष्टि तो की लेकिन कहा कि मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट भी थी। वहीं भोपाल मुख्यालय ने इंदौर में डेंगू से कोई मौत होने पर साफ इनकार कर दिया है।  रोज सैकड़ों मरीज आ रहे डेंगू मलेरिया के रोज सैकड़ों मरीज आ रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में लाइनें लगी हुई हैं और डॉक्टर लगातार इलाज कर रहे हैं। मलेरिया विभाग के आंकड़ों में रोज दस से बीस केस ही आ रहे हैं।  कैसे होता है खेल यदि मरीज को हल्का बुखार हो तो प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर प्रारंभिक लक्षणों के आधार पर डेंगू और मलेरिया की दवाएं देते हैं। इस स्तिथि में जांच नहीं करवाई जाती। ऐसे में रिपोर्ट में डेंगू या मलेरिया दर्ज नहीं होता। यदि मरीज गंभीर हो और रिपोर्ट में डेंगू या मलेरिया आता है तो मलेरिया विभाग फिर से इसकी जांच सरकारी लैब में करवाता है। यदि उसमें भी पुष्टि हो जाती है और मरीज की मृत्यु हो जाती है तो विभाग मृत्यु का अन्य कारण लिख देता है। जैसे कि हार्ट फेल होना, सांस रुकना आदि। 

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इंदौर में डेंगू से 15 साल के छात्र की मौत होने के बावजूद प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग इसे डेंगू से मौत नहीं मान रहा है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार मौत कार्डियक अरेस्ट से हुई है। दरअसल, डेंगू और मलेरिया की मौत में पहले भी इसी तरह से खेल होता रहा है। 

क्या है मामला
18 अगस्त को देर रात छात्र मंसूरी अंसारी (15) को प्राइवेट अस्पताल ले जाया गया था। वहां बेड नहीं होने पर 19 की सुबह एक अन्य प्राइवेट अस्पताल ले गए। यहां भर्ती करने के बाद सुबह 11 से 12 बजे के बीच उसने दम तोड़ दिया। सरकारी लैब में हुए मेकएलाइजा टेस्ट में छात्र को डेंगू होना पाया गया। छात्र के पिता ने बताया 17 अगस्त को बुखार आने पर बेटे को सामान्य दवा-गोली दी। बाद में ठीक लगा तो शाम में घूमने भी गया। 18 अगस्त को फिर बुखार आया तो देर शाम क्लिनिक पर दिखाया। वहां से वापस घर ले आए तो देर रात फिर तबीयत बिगड़ी। 19 अगस्त की सुबह 6 बजे हमने CHL Care हॉस्पिटल में भर्ती कराया। यहां जांचें हुईं और इलाज के दौरान ही छात्र की मौत हो गई। हॉस्पिटल ने रिपोर्ट विभाग को भेज दी थी। 

मलेरिया विभाग ने खुद भी पुष्टि की, फिर भी रिकार्ड में दर्ज नहीं
मलेरिया विभाग का कहना है कि हमें अस्पताल से इस बारे में 29 अगस्त को रिपोर्ट प्राप्त हुई। उसके बाद सैंपल को मेकएलाइजा जांच के लिए सरकारी लैब में भेजा। वहां से 3 सितंबर को नई रिपोर्ट आई। उसी आधार पर डेंगू माना गया है, इसलिए अधिकृत तौर पर मौत की पुष्टि में 15 से ज्यादा दिन लग गए। 

इलाज करने वाले डॉक्टर बोले डेंगू से हुई मौत
छात्र का इलाज करने वाले डॉ. निखिलेश जैन ने बताया कि छात्र को डेंगू शॉक सिंड्रोम था। यह ऐसा है कि डेंगू बुखार का शरीर के अलग-अलग अंगों पर असर पड़ने लगता है। किडनी, लिवर के अलावा बाकी अंग भी कमजोर हो गए। शरीर में पस पड़ गया। यूरिन में भी इन्फेक्शन था और सेप्सिस भी हो गया। यानी संक्रमण और डेंगू साथ-साथ। ऐसे में मल्टी ऑर्गन फैल हो गए। जहां तक मौत के कारण का प्रश्न है, कार्डियक अरेस्ट दर्ज करने का मतलब है कि धड़कन रुक जाना लेकिन असल कारण इंफेक्शन और डेंगू था।

रिपोर्ट गायब कर देता है विभाग
भारत सरकार की गाइड लाइन के अनुसार डेंगू पॉजिटिव मरीज उसी को माना जाता है जिसका मेकएलाइजा टेस्ट किया जाता है। यह टेस्ट सिर्फ सरकारी लैब में मान्य है। इस मामले में भी यह टेस्ट हुआ और रिपोर्ट में डेंगू आया लेकिन इसके बाद भी सरकार की रिपोर्ट से यह मौत गायब कर दी गई है। जिला प्रशासन ने इसे मान लिया है लेकिन वह भी इसमें कार्डियक अरेस्ट की बात कह रहे हैं। इंदौर जिला मलेरिया अधिकारी डॉ. दौलत पटेल ने मंसूर को डेंगू होने की पुष्टि तो की लेकिन कहा कि मौत की वजह कार्डियक अरेस्ट भी थी। वहीं भोपाल मुख्यालय ने इंदौर में डेंगू से कोई मौत होने पर साफ इनकार कर दिया है। 

रोज सैकड़ों मरीज आ रहे
डेंगू मलेरिया के रोज सैकड़ों मरीज आ रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में लाइनें लगी हुई हैं और डॉक्टर लगातार इलाज कर रहे हैं। मलेरिया विभाग के आंकड़ों में रोज दस से बीस केस ही आ रहे हैं। 

कैसे होता है खेल
यदि मरीज को हल्का बुखार हो तो प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर प्रारंभिक लक्षणों के आधार पर डेंगू और मलेरिया की दवाएं देते हैं। इस स्तिथि में जांच नहीं करवाई जाती। ऐसे में रिपोर्ट में डेंगू या मलेरिया दर्ज नहीं होता। यदि मरीज गंभीर हो और रिपोर्ट में डेंगू या मलेरिया आता है तो मलेरिया विभाग फिर से इसकी जांच सरकारी लैब में करवाता है। यदि उसमें भी पुष्टि हो जाती है और मरीज की मृत्यु हो जाती है तो विभाग मृत्यु का अन्य कारण लिख देता है। जैसे कि हार्ट फेल होना, सांस रुकना आदि। 

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