indore:-मूक,-बधिर-और-दृष्टि-दिव्यांग-गुरदीप-ने-पास-की-10वीं-की-परीक्षा,-मध्यभारत-में-पहली-बार-किसी-ने-ऐसा-किया
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Fri, 26 May 2023 07: 45 PM IST लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फॉलो करें बचपन में देखने, बोलने और सुनने की क्षमता गई, पढ़ाई करने के जुनून ने सफलता दिलाई, कड़ी मेहनत से परिवार का नाम रोशन किया   गुरदीप - फोटो : न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर विस्तार छात्रा गुरदीप कौर ने 10वीं की कक्षा में पास होकर एक नया इतिहास रचा है। यह इसलिए खास है क्योंकि गुरदीप बधिरांध हैं यानी मूक, बधिर और दृष्टि दिव्यांग हैं। इन सबके बावजूद गुरदीप ने अपनी मेहनत से परीक्षा में सफलता प्राप्त की। इसमें विशेष बात यह थी की परीक्षा के दौरान गुरदीप की राइटर भी एक बधिर बालिका थी। आनंद सर्विस सोसायटी मूक बधिर संस्था के ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित ने बताया कि संभवत यह मध्यभारत की पहली बंधिरांध है, जिसने एमपी बोर्ड की परीक्षा पास की है। ब्रेल लिपी और सांकेतिक भाषा से की पढ़ाई ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित ने बताया कि गुरदीप का शुरुआत से ही पढ़ाई के प्रति रुझान था और उसने आठवीं तक परीक्षा पास कर ली थी लेकिन आगे साथ नहीं मिलने से वह पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। इसके बाद हरदीप के माता-पिता ने सांसद शंकर लालवानी व कलेक्टर इलैया राजा टी से मुलाकात कर उनसे मदद मांगी। उन्होंने हरदीप के पढ़ाई की जिम्मेदारी आनंद बधिर सोसाइटी को सौंप दी। संस्थान ने हरदीप को स्पर्श की भाषा की ट्रेनिंग दी। शिक्षक उसे दो से तीन घंटे ब्रेल लिपी की भी ट्रेनिंग देते थे। इसके बाद हरदीप का साथ देने के लिए एक मूक-बधिर छात्रा को तैयार किया गया। पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपी और सांकेतिक भाषा के साथ ही टैक्टिल साइनिंग विधि का उपयोग किया गया था। गुरदीप ने यह साबित कर दिया है कि कुछ हासिल करने का जुनून हो तो सफलता अवश्य मिलती है।  बहन को खोया, डाक्टरों की गलती से देखने, बोलने और सुनने की क्षमता गई बचपन में हरदीप की जान बड़ी मुश्किल से बची थी। पिता ट्रांसपोर्ट कारोबारी प्रीतपाल सिंह और मां मंजीत कौर के यहां साल 1991 में जुड़वा बच्चियों ने जन्म लिया था। एक बेटी को उसी समय खो दिया था। अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही के कारण हरदीप की आंख, कान व बोलने की क्षमता गंवाना पड़ी। काफी इलाज के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। इन हालात में भी गुरदीप ने हार नहीं मानी और बेहतर पढ़ाई कर परिवार का नाम रोशन किया।  रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Fri, 26 May 2023 07: 45 PM IST

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बचपन में देखने, बोलने और सुनने की क्षमता गई, पढ़ाई करने के जुनून ने सफलता दिलाई, कड़ी मेहनत से परिवार का नाम रोशन किया
  गुरदीप – फोटो : न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर

विस्तार छात्रा गुरदीप कौर ने 10वीं की कक्षा में पास होकर एक नया इतिहास रचा है। यह इसलिए खास है क्योंकि गुरदीप बधिरांध हैं यानी मूक, बधिर और दृष्टि दिव्यांग हैं। इन सबके बावजूद गुरदीप ने अपनी मेहनत से परीक्षा में सफलता प्राप्त की। इसमें विशेष बात यह थी की परीक्षा के दौरान गुरदीप की राइटर भी एक बधिर बालिका थी। आनंद सर्विस सोसायटी मूक बधिर संस्था के ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित ने बताया कि संभवत यह मध्यभारत की पहली बंधिरांध है, जिसने एमपी बोर्ड की परीक्षा पास की है।

ब्रेल लिपी और सांकेतिक भाषा से की पढ़ाई
ज्ञानेंद्र और मोनिका पुरोहित ने बताया कि गुरदीप का शुरुआत से ही पढ़ाई के प्रति रुझान था और उसने आठवीं तक परीक्षा पास कर ली थी लेकिन आगे साथ नहीं मिलने से वह पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। इसके बाद हरदीप के माता-पिता ने सांसद शंकर लालवानी व कलेक्टर इलैया राजा टी से मुलाकात कर उनसे मदद मांगी। उन्होंने हरदीप के पढ़ाई की जिम्मेदारी आनंद बधिर सोसाइटी को सौंप दी। संस्थान ने हरदीप को स्पर्श की भाषा की ट्रेनिंग दी। शिक्षक उसे दो से तीन घंटे ब्रेल लिपी की भी ट्रेनिंग देते थे। इसके बाद हरदीप का साथ देने के लिए एक मूक-बधिर छात्रा को तैयार किया गया। पढ़ाई के लिए ब्रेल लिपी और सांकेतिक भाषा के साथ ही टैक्टिल साइनिंग विधि का उपयोग किया गया था। गुरदीप ने यह साबित कर दिया है कि कुछ हासिल करने का जुनून हो तो सफलता अवश्य मिलती है। 

बहन को खोया, डाक्टरों की गलती से देखने, बोलने और सुनने की क्षमता गई
बचपन में हरदीप की जान बड़ी मुश्किल से बची थी। पिता ट्रांसपोर्ट कारोबारी प्रीतपाल सिंह और मां मंजीत कौर के यहां साल 1991 में जुड़वा बच्चियों ने जन्म लिया था। एक बेटी को उसी समय खो दिया था। अस्पताल के स्टाफ की लापरवाही के कारण हरदीप की आंख, कान व बोलने की क्षमता गंवाना पड़ी। काफी इलाज के बाद भी कोई फर्क नहीं पड़ा। इन हालात में भी गुरदीप ने हार नहीं मानी और बेहतर पढ़ाई कर परिवार का नाम रोशन किया। 

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