न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अभिषेक चेंडके Updated Sun, 08 Sep 2024 07: 37 PM IST
मिल परिसरों में गणेश स्थापना के बाद कवि सम्मेलन, आकेस्ट्रा व अन्य सांस्कृतिक आयोजन होते थे। श्रमिक खुद आयोजन व झांकियों के लिए चंदा करते थे। स्वदेशी मिल की जमीन बिक चुकी है, लेकिन श्रमिक झांकियां तराश कर जनता के लिए उन्हें बनाते है। हुकमचंद मिल में झांकी का निर्माण। – फोटो : अमर उजाला
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इंदौर के कपड़ा मिल भले ही बंद हो चुके है, लेकिन झांकियां निकालने की परंपरा मेहनतकश अब भी कायम रखे है। इसके लिए आईडीए व अन्य संस्थान मदद जरुर करते है, लेकिन श्रमिकों का जज्बा भी कम नहीं हैै। मिल परिसरों में झांकियों का निर्माण शुरू हो गया है।
अनंद चतुदर्शी पर यह झांकियां सड़कों पर झिलमिलाएंगी और श्रमिकों की मेहनत रंग लाएगी। इंदौर में गणेशोत्सव पर झांकियां निकालने की पंरपरा 100 साल पुरानी है।
मिल परिसरों में गणेश स्थापना के बाद कवि सम्मेलन, आकेस्ट्रा व अन्य सांस्कृतिक आयोजन होते थे। श्रमिक खुद आयोजन व झांकियों के लिए चंदा करते थे। स्वदेशी मिल की जमीन बिक चुकी है, लेकिन श्रमिक झांकियां तराश कर जनता के लिए उन्हें बनाते है। इस साल हुकमचंद मिल की जमीन भी बिक गई है।
गणपति बप्पा को विदाई देने के लिए झांकियां निकाली जाती थी। बीते 30 सालों में सभी मिल एक-एक कर बंद होते गए, लेकिन श्रमिकों ने झांकियां निकालने का सिलसिला जारी रखा। हुकमचंद, मालवा मिल, कल्याण मिल, राजकुमार मिल, स्वदेशी मिल के अलावा नगर निगम, इंदौर विकास प्राधिकरण, खजराना गणेश मंदिर व अन्य संस्थान भी झांकियां निकालते हैै।
हुकमचंद मिल ने की थी शुरुआत
हुकमचंद मिल गणेशोत्सव समिति के नरेंद्र श्रीवंश ने बताया कि इंदौर में झांकियों को निकालने की शुरुआत हुकमंचद मिल ने सबसे पहले की थी। इसके बाद दूसरे मिल भी साथ आए और यह परंपरा बन गई।
अकेला इंदौर ही है जहां अनंत चतुदर्शी पर इस तरह झांकियां निकाली जाती है। इसे देखने के लिए मालवा-निमाड़ के गांवों से भी लोग आते है। चल समारोह के अलावा तीन दिन मिलों में झांकियां रखी जाती है और मिल परिसर के आसपास मेेले भी लगते है। इससे हजारों गरीब लोगों को रोजगार भी मिलत है।
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