indore:-नदी-के-बीच-बना-सुंदर-महल,-सैकड़ों-साल-से-पानी-में-शान-से-खड़ा,-कितनी-उन्नत-थी-हमारी-तकनीकें
न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Wed, 02 Aug 2023 07: 09 PM IST इंदौर. भारत की सांस्कृतिक, कलात्मक विरासत कितनी उन्नत थी इस बात का उदाहरण है इंदौर के पास बना जल महल। यह महल अपनी खूबसूरती और डिजाइन के लिए बेहद खास है लेकिन आज तक गुमनाम है। हाल ही में इंदौर के राइड्स आफ राइडर्स ग्रुप ने इसे विजिट किया है। ग्रुप एडमिन ज्ञानदीप श्रीवास्तव ने बताया कि यह स्थान पर्यटकों की नजर से ओझल है और इंदौर से मात्र 55 किमी दूर है। इसका रास्ता इंदौर बेटमा घाटाबिल्लोद लेबढ़ होते हुए सादलपर से होकर जाता है। सादलपुर 4 लेन हाईवे पर ही यह मौजूद है। इस राइड में हमारे 40 राइडर शामिल हुए थे। यह जगह बेहद शानदार और शांत है और यहां आने पर आपको जल महल मांडव में आने जैसा अहसास होता है। यह महल बागेड़ी नदी के बीच में बना हुआ है।  जलरोधी सामग्री के बिना बनाई मजबूत नींव इसकी मजबूत नींव की वजह से वर्षों से यह नदी के वेग को आसानी से झेलता आ रहा है। न ही इसके वास्तु पर कोई असर हुआ है न ही सुंदरता पर। इस तरह यह धरोहर न केवल जल से अपने गहरे नाते की कहानी कहती है बल्कि यह भी बताती है कि इसके निर्माण के समय तकनीक इतनी समृद्ध थी कि बिना किसी जलरोधी सामग्री के भी महल को जल में स्थाई रखने की कला विकसित की गई थी।    अकबर ने यहां पर विश्राम किया था सादलपुर का जलमहल वास्तव में बागेड़ी नदी के कारण अस्तित्व में आया। 15वीं शताब्दी में निर्मित यह महल पानी के बिना अधूरा सा लगता है। बताया जाता है कि सन् 1500 से लेकर 1511 के बीच इसे मांडू के सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी ने बनवाया था। इसके एक स्तंभ पर लिखा है कि 1589 में दक्षिण की ओर जाते समय बादशाह अकबर ने यहां विश्राम किया था। महू और नीमच जैसे छावनी क्षेत्रों को देखते हुए अंदाजा लगाया जाता है कि जिस तरह अंग्रेजों ने अपने समय में आवागमन के लिए इन दो स्थानों पर छावनी विकसित की थी। इसी तरह से मुगलकाल में भी आवाजाही और रास्ते में पूरी सेना के साथ राजा के लिए शरणस्थली के रूप में इस महल की कल्पना की गई थी।

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न्यूज़ डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Wed, 02 Aug 2023 07: 09 PM IST

इंदौर. भारत की सांस्कृतिक, कलात्मक विरासत कितनी उन्नत थी इस बात का उदाहरण है इंदौर के पास बना जल महल। यह महल अपनी खूबसूरती और डिजाइन के लिए बेहद खास है लेकिन आज तक गुमनाम है। हाल ही में इंदौर के राइड्स आफ राइडर्स ग्रुप ने इसे विजिट किया है।

ग्रुप एडमिन ज्ञानदीप श्रीवास्तव ने बताया कि यह स्थान पर्यटकों की नजर से ओझल है और इंदौर से मात्र 55 किमी दूर है। इसका रास्ता इंदौर बेटमा घाटाबिल्लोद लेबढ़ होते हुए सादलपर से होकर जाता है। सादलपुर 4 लेन हाईवे पर ही यह मौजूद है। इस राइड में हमारे 40 राइडर शामिल हुए थे। यह जगह बेहद शानदार और शांत है और यहां आने पर आपको जल महल मांडव में आने जैसा अहसास होता है। यह महल बागेड़ी नदी के बीच में बना हुआ है। 

जलरोधी सामग्री के बिना बनाई मजबूत नींव
इसकी मजबूत नींव की वजह से वर्षों से यह नदी के वेग को आसानी से झेलता आ रहा है। न ही इसके वास्तु पर कोई असर हुआ है न ही सुंदरता पर। इस तरह यह धरोहर न केवल जल से अपने गहरे नाते की कहानी कहती है बल्कि यह भी बताती है कि इसके निर्माण के समय तकनीक इतनी समृद्ध थी कि बिना किसी जलरोधी सामग्री के भी महल को जल में स्थाई रखने की कला विकसित की गई थी। 
 

अकबर ने यहां पर विश्राम किया था
सादलपुर का जलमहल वास्तव में बागेड़ी नदी के कारण अस्तित्व में आया। 15वीं शताब्दी में निर्मित यह महल पानी के बिना अधूरा सा लगता है। बताया जाता है कि सन् 1500 से लेकर 1511 के बीच इसे मांडू के सुल्तान नसीरुद्दीन खिलजी ने बनवाया था। इसके एक स्तंभ पर लिखा है कि 1589 में दक्षिण की ओर जाते समय बादशाह अकबर ने यहां विश्राम किया था।

महू और नीमच जैसे छावनी क्षेत्रों को देखते हुए अंदाजा लगाया जाता है कि जिस तरह अंग्रेजों ने अपने समय में आवागमन के लिए इन दो स्थानों पर छावनी विकसित की थी। इसी तरह से मुगलकाल में भी आवाजाही और रास्ते में पूरी सेना के साथ राजा के लिए शरणस्थली के रूप में इस महल की कल्पना की गई थी।

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