iit-indore:-देश-का-पहला-आईआईटी-जो-वन-वाटिका-बनाएगा,-1.98-करोड़-रुपए-अनुदान-मिला
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Tue, 30 Jul 2024 10: 35 AM IST जैव विविधता के संवर्धन, वन्यजीव वास में सुधार, वन आग पर नियंत्रण, वन संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण उपाय किए जाएंगे।    आईआईटी में वन वाटिका की शुरुआत। - फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर विस्तार वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें इंदौर आईआईटी देश का पहला आईआईटी बन गया है जो वन वाटिका बनाएगा। आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास ने कहा कि वन वाटिका के बनने से हमारी एक अलग पहचान बनेगी, क्योंकि हम ऐसी परियोजना प्राप्त करने वाले पहले आईआईटी हैं। इस परियोजना के लिए आईआईटी इंदौर को देश के पहला आईआईटी और जिले के एकमात्र शैक्षणिक संस्थान के रूप में चुना गया है। इस विकास के लिए कुल 50 हेक्टेयर वन भूमि की पहचान की जाएगी और इसका उपयोग वनीकरण, सहायक प्राकृतिक पुनर्जनन के माध्यम से वनों की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता के संवर्धन, वन्यजीव वास में सुधार, वन आग पर नियंत्रण, वन संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण उपायों के लिए किया जाएगा। इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिए कुल ₹1.98 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं।       Trending Videos पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) के अंतर्गत नगर वन परियोजना के लिए आईआईटी इंदौर को चुना है। इस उपलक्ष्य पर, इसका शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया। नगर वन योजना (एनवीवाई) की पायलट योजना में 2020-21 से 2024-25 की अवधि के दौरान देश में 400 नगर वन और 200 नगर वाटिका विकसित करने की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य वनों और हरित क्षेत्र के अतिरिक्त वृक्षों को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाना, शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में जैव विविधता और पर्यावरणीय लाभ को बढ़ाना और शहरवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इस कार्यक्रम में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय कैम्पा के सीईओ सुभाष चंद्रा और आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी भी उपस्थित रहे। इस दौरान, प्रोफेसर जोशी ने कहा, आईआईटी इंदौर काफी समय से इस परियोजना पर काम करना चाहता था और हमें खुशी है कि हमें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रकृति के संरक्षण की स्थिति में आईआईटी इंदौर अद्वितीय रहा है और हम लगातार बांध तथा तालाब विकसित कर रहे हैं और प्राकृतिक वास को बढ़ा रहे हैं। इस वन वाटिका के बनने से हमारी एक अलग पहचान बनेगी, क्योंकि हम ऐसी परियोजना प्राप्त करने वाले पहले आईआईटी हैं। इस परियोजना के अनुदान से पहले भी आईआईटी इंदौर इस तरह की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, लेकिन इस परियोजना के अनुदान से गतिविधियों को और गति मिलेगी। वहीं, चंद्रा ने कहा, हम जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से अवगत हैं, जिससे सूखा, अचानक बाढ़, बादल फटने जैसी घटनाएं हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप जल और जैव विविधता के प्राकृतिक चक्र पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वर्षा चक्र में परिवर्तन से भूमि की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप हानिकारक कीटों का जन्म हो रहा है और खाद्य सुरक्षा को चुनौती मिल रही है। इन परियोजनाओं के माध्यम से, हमारा इरादा मिट्टी के क्षरण को रोकना और वर्षा आधारित नदियों में जल की मात्रा में सुधार करना है। उन्होंने आगे कहा, आईआईटी इंदौर को परिसर में एक स्वचालित मौसम केंद्र की व्यवहार्यता पर विचार करना चाहिए तथा वर्षा पैटर्न और जैव विविधता का अध्ययन करना चाहिए जो प्रकृति और जलवायु का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण है। संस्थान को इस क्षेत्र के पुराने पौधों की एक सूची तैयार करनी चाहिए और जैव विविधता के बेसलाइन डेटा में सुधार करना चाहिए और लगभग 170 प्रकार के पेड़ लगाने चाहिए जो मध्य भारत में विशिष्ट हैं। ऐसी जैव विविधता विकसित करके जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव देखने के लिए एक अध्ययन किया जाना चाहिए। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, इंदौर Published by: अर्जुन रिछारिया Updated Tue, 30 Jul 2024 10: 35 AM IST

जैव विविधता के संवर्धन, वन्यजीव वास में सुधार, वन आग पर नियंत्रण, वन संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण उपाय किए जाएंगे। 
  आईआईटी में वन वाटिका की शुरुआत। – फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर

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इंदौर आईआईटी देश का पहला आईआईटी बन गया है जो वन वाटिका बनाएगा। आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास ने कहा कि वन वाटिका के बनने से हमारी एक अलग पहचान बनेगी, क्योंकि हम ऐसी परियोजना प्राप्त करने वाले पहले आईआईटी हैं। इस परियोजना के लिए आईआईटी इंदौर को देश के पहला आईआईटी और जिले के एकमात्र शैक्षणिक संस्थान के रूप में चुना गया है। इस विकास के लिए कुल 50 हेक्टेयर वन भूमि की पहचान की जाएगी और इसका उपयोग वनीकरण, सहायक प्राकृतिक पुनर्जनन के माध्यम से वनों की गुणवत्ता में सुधार, जैव विविधता के संवर्धन, वन्यजीव वास में सुधार, वन आग पर नियंत्रण, वन संरक्षण और मृदा एवं जल संरक्षण उपायों के लिए किया जाएगा। इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिए कुल ₹1.98 करोड़ स्वीकृत किए गए हैं।      

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पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैम्पा) के अंतर्गत नगर वन परियोजना के लिए आईआईटी इंदौर को चुना है। इस उपलक्ष्य पर, इसका शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया। नगर वन योजना (एनवीवाई) की पायलट योजना में 2020-21 से 2024-25 की अवधि के दौरान देश में 400 नगर वन और 200 नगर वाटिका विकसित करने की परिकल्पना की गई है, जिसका उद्देश्य वनों और हरित क्षेत्र के अतिरिक्त वृक्षों को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाना, शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में जैव विविधता और पर्यावरणीय लाभ को बढ़ाना और शहरवासियों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है। इस कार्यक्रम में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राष्ट्रीय कैम्पा के सीईओ सुभाष चंद्रा और आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रोफेसर सुहास जोशी भी उपस्थित रहे।

इस दौरान, प्रोफेसर जोशी ने कहा, आईआईटी इंदौर काफी समय से इस परियोजना पर काम करना चाहता था और हमें खुशी है कि हमें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। प्रकृति के संरक्षण की स्थिति में आईआईटी इंदौर अद्वितीय रहा है और हम लगातार बांध तथा तालाब विकसित कर रहे हैं और प्राकृतिक वास को बढ़ा रहे हैं। इस वन वाटिका के बनने से हमारी एक अलग पहचान बनेगी, क्योंकि हम ऐसी परियोजना प्राप्त करने वाले पहले आईआईटी हैं। इस परियोजना के अनुदान से पहले भी आईआईटी इंदौर इस तरह की परियोजनाओं पर काम कर रहा है, लेकिन इस परियोजना के अनुदान से गतिविधियों को और गति मिलेगी।

वहीं, चंद्रा ने कहा, हम जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से अवगत हैं, जिससे सूखा, अचानक बाढ़, बादल फटने जैसी घटनाएं हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप जल और जैव विविधता के प्राकृतिक चक्र पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। वर्षा चक्र में परिवर्तन से भूमि की उत्पादकता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप हानिकारक कीटों का जन्म हो रहा है और खाद्य सुरक्षा को चुनौती मिल रही है। इन परियोजनाओं के माध्यम से, हमारा इरादा मिट्टी के क्षरण को रोकना और वर्षा आधारित नदियों में जल की मात्रा में सुधार करना है। उन्होंने आगे कहा, आईआईटी इंदौर को परिसर में एक स्वचालित मौसम केंद्र की व्यवहार्यता पर विचार करना चाहिए तथा वर्षा पैटर्न और जैव विविधता का अध्ययन करना चाहिए जो प्रकृति और जलवायु का अध्ययन करने के लिए महत्वपूर्ण है। संस्थान को इस क्षेत्र के पुराने पौधों की एक सूची तैयार करनी चाहिए और जैव विविधता के बेसलाइन डेटा में सुधार करना चाहिए और लगभग 170 प्रकार के पेड़ लगाने चाहिए जो मध्य भारत में विशिष्ट हैं। ऐसी जैव विविधता विकसित करके जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव देखने के लिए एक अध्ययन किया जाना चाहिए।

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