holi-2023:-मध्यप्रदेश-के-इस-जिले-में-बंदूक-की-गोली-से-होता-है-होलिका-दहन,-जानिए-क्या-है-इस-परंपरा-का-राज
सिरोंज में सोमवार को होलिका दहन किया गया। - फोटो : सोशल मीडिया विस्तार मध्यप्रदेश में हर तीज त्यौहार से जुड़ी अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं। होली का पर्व पूरे प्रदेश में काफी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रदेश के कई जिलों में होली मनाने की अलग-अलग परंपराएं आज भी जारी हैं। ऐसी ही एक परंपरा विदिशा जिले के सिरोंज में होलकर शासन के समय से चली आ रही है। प्रदेश के अन्य स्थानों पर भले ही होलिका दहन माचिस या मशाल से किया जाता हो लेकिन सिरोंज में होलिका दहन बंदूक की गोली से किया जाता है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन इस बार भी किया गया। सोमवार रात एक बजे मुहूर्त अनुसार इस बार होलिका दहन किया गया। सिरोंज में सबसे पुरानी और बड़ी होली पचकुंइया हनुमान मंदिर के पास जलाई जाती है। इस होली का दहन माचिस से नहीं बंदूक से होता है। होलिका दहन के पहले होली की पूजा पं. नलिनीकांत शर्मा द्वारा करवाई जाती है। होली सजाकर उसके पास घास का ढेर रखा जाता है, फिर उसी घास के ढेर को निशाना बनाकर बंदूक से गोली दागी जाती है। घास में चिंगारी लगते ही, तत्काल वह आग सामने सजी होली में डाली जाती है। होली के जलते ही उल्लास उमड़ पड़ता है। इसी होली की आग से शहर की अन्य होली और घर-घर में जलाई जाने वाली होली की आग भी सुलगती है। ये है बंदूक से होलिका दहन करने का कारण जानकारों के अनुसार करीब 150 साल पहले सिरोंज में रावजी की हवेली के पीछे मुन्नू भैया की हवेली थी। इसे 52 चौक की हवेली कहा जाता था। यहां कानूनगो रहा करते थे, जिनका ओहदा तहसीलदार के बराबर माना जाता था। ये कानूनगो मुन्नू भैया के नाम से जाने जाते थे। टोंक रियासत का दौर था। कानूनगो मुन्नू भैया के समय ही एक बार यहां टोंक रियासत के नवाब ने होलिका दहन पर बंदिश लगा दी थी। इससे हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई थीं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था। अंदर ही अंदर सब कसमसा रहे थे कि सांकेतिक ही सही होली तो जलना चाहिए, इसलिए कुछ सनातनी लोगों ने योजना बनाई। चुपके से लकड़ी-कंडों का ढेर लगाकर उसे सूखी घास के गट्ठों से ढंक दिया गया। ऊपर से यह ढेर घास का था। योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करने होलिका दहन की रात माथुर परिवार के सदस्यों ने इसी ढेर पर बंदूक चला दी, जिससे होली जल उठी। इसके बाद त्योहार की रस्म पूरी हुई, तभी से यहां होलिका दहन बंदूक से करने की परंपरा चल पड़ी। वर्तमान में भी कानूनगो माथुर परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। इस परिवार के वंशज महेश माथुर ने एक कथा भी इस संदर्भ में बताई। उन्होंने कहा कि जब सिरोंज में नवाबी शासन आया, तो इस परंपरा पर रोक लगाने का प्रयास किया। तब होली के चबूतरे पर घास का एक ढेर (गंज) लगा दिया। जिस पर उनके पूर्वजों ने बंदूक से फायर कर होली जला दी थी। उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है।  

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सिरोंज में सोमवार को होलिका दहन किया गया। – फोटो : सोशल मीडिया

विस्तार मध्यप्रदेश में हर तीज त्यौहार से जुड़ी अलग-अलग परंपराएं देखने को मिलती हैं। होली का पर्व पूरे प्रदेश में काफी धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। प्रदेश के कई जिलों में होली मनाने की अलग-अलग परंपराएं आज भी जारी हैं। ऐसी ही एक परंपरा विदिशा जिले के सिरोंज में होलकर शासन के समय से चली आ रही है। प्रदेश के अन्य स्थानों पर भले ही होलिका दहन माचिस या मशाल से किया जाता हो लेकिन सिरोंज में होलिका दहन बंदूक की गोली से किया जाता है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन इस बार भी किया गया। सोमवार रात एक बजे मुहूर्त अनुसार इस बार होलिका दहन किया गया।

सिरोंज में सबसे पुरानी और बड़ी होली पचकुंइया हनुमान मंदिर के पास जलाई जाती है। इस होली का दहन माचिस से नहीं बंदूक से होता है। होलिका दहन के पहले होली की पूजा पं. नलिनीकांत शर्मा द्वारा करवाई जाती है। होली सजाकर उसके पास घास का ढेर रखा जाता है, फिर उसी घास के ढेर को निशाना बनाकर बंदूक से गोली दागी जाती है। घास में चिंगारी लगते ही, तत्काल वह आग सामने सजी होली में डाली जाती है। होली के जलते ही उल्लास उमड़ पड़ता है। इसी होली की आग से शहर की अन्य होली और घर-घर में जलाई जाने वाली होली की आग भी सुलगती है।

ये है बंदूक से होलिका दहन करने का कारण
जानकारों के अनुसार करीब 150 साल पहले सिरोंज में रावजी की हवेली के पीछे मुन्नू भैया की हवेली थी। इसे 52 चौक की हवेली कहा जाता था। यहां कानूनगो रहा करते थे, जिनका ओहदा तहसीलदार के बराबर माना जाता था। ये कानूनगो मुन्नू भैया के नाम से जाने जाते थे। टोंक रियासत का दौर था। कानूनगो मुन्नू भैया के समय ही एक बार यहां टोंक रियासत के नवाब ने होलिका दहन पर बंदिश लगा दी थी। इससे हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई थीं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था।

अंदर ही अंदर सब कसमसा रहे थे कि सांकेतिक ही सही होली तो जलना चाहिए, इसलिए कुछ सनातनी लोगों ने योजना बनाई। चुपके से लकड़ी-कंडों का ढेर लगाकर उसे सूखी घास के गट्ठों से ढंक दिया गया। ऊपर से यह ढेर घास का था। योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करने होलिका दहन की रात माथुर परिवार के सदस्यों ने इसी ढेर पर बंदूक चला दी, जिससे होली जल उठी। इसके बाद त्योहार की रस्म पूरी हुई, तभी से यहां होलिका दहन बंदूक से करने की परंपरा चल पड़ी।

वर्तमान में भी कानूनगो माथुर परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। इस परिवार के वंशज महेश माथुर ने एक कथा भी इस संदर्भ में बताई। उन्होंने कहा कि जब सिरोंज में नवाबी शासन आया, तो इस परंपरा पर रोक लगाने का प्रयास किया। तब होली के चबूतरे पर घास का एक ढेर (गंज) लगा दिया। जिस पर उनके पूर्वजों ने बंदूक से फायर कर होली जला दी थी। उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है।
 

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