hajj-2023:-हज-में-दिखी-भारतीय-संस्कृति,-मीना-की-टेंट-सिटी-में-कावेरी-और-गोदावरी-के-नाम-पर-खेमे
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: अरविंद कुमार Updated Mon, 26 Jun 2023 03: 55 PM IST लेटेस्ट अपडेट्स के लिए फॉलो करें Hajj 2023: हाजियों का सोमवार सुबह से ही मीना की टेंट सिटी में पहुंचना शुरू हो गया है। यहां भारत की दो नदियों गोदावरी और कावेरी का नाम भी खेमों को दिया गया है। यह हज में भारतीय संस्कृति के दर्शन कराता है। हज में दिखी भारतीय संस्कृति - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us भोपाल (खान आशु)। अकीदत के सफर पर कोसों दूर पहुंचे भारतीय हाजियों को अपने देश की संस्कृति और पहचान के दीदार मीना की टेंट सिटी में हो रहे हैं। यहां जिन खेमों को बनाया गया है, उनमें भारत की प्रसिद्ध और धार्मिक महत्व रखने वाली नदियों गोदावरी और कावेरी का नाम भी दिया गया है। हज के पांच मुख्य दिन के अरकान पूरे करने के लिए हाजियों का सोमवार सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गया है। वे यहां रात ठहरकर मंगलवार को बाकी के अरकान पूरे करेंगे और फिर मक्का लौटेंगे।  सउदी अरब में भारतीय हाजियों की व्यवस्था का जिम्मा काउंसलेट जनरल शाहिद आलम संभाल रहे हैं। उन्होंने ही व्यवस्था संभालने के लिए एक टीम बनाई है। इसमें खुर्शीद अहमद शाह, मिर्जा रियाज बेग, अबू सूफियान चैहान, इकबाल खान, खाजी मोहम्मद इरफान और सैयद शाकिर अली जाफरी शामिल हैं। इस टीम ने ही टेंट सिटी में खेमों को भारतीय पहचान दी है। पहली बार यह प्रयोग... हज के अहम अरकानों में शामिल मीना और अराफात में जरूरी क्रिया करने का खास महत्व है। इस्लामी नजरिये से इनके बिना हज अरकान पूरे नहीं माने जाते हैं। इस्लाम के इस अहम सफर में भारतीय आस्थाओं का प्रतीक मानी जाने वाली नदियों के नाम शामिल करने का प्रयोग पहली बार किया गया है। यह है गोदावरी और कावेरी का महत्व... गंगा सिंधु सरस्वती यमुना गोदावरी नर्मदा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया चर्मण्यवती वेदिका। क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी, पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः कुर्वन्तु में मंगलम्।। इस श्लोक का अर्थ भी यही है कि उपर्युक्त सभी जल से परिपूर्ण नदियां, समुद्र सहित मेरा कल्याण करें। हज के दौरान की जाने वाली क्रियाएं और उपक्रम भी शुद्धिकरण और कल्याण की मंशा से किए जाते हैं। इस पवित्र सफर में अपने देश की परंपराओं को साथ जोड़कर कोई काम किया जाए तो इससे संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का समागम भी बना रहेगा। क्या होता है पांच दिन... हज यात्री पहले दिन सुबह (फज्र) की नमाज पढ़कर मक्का से पांच किमी दूर मीना पहुंचते हैं। वहां पूरा दिन बिताते हैं, बाकी चार नमाजें अदा करते हैं। दूसरे दिन लगभग 10 किलोमीटर दूर अराफात की पहाड़ी पर नमाज अदा करते हैं। इसे जबाल अल-रहम भी कहा जाता है। कहते हैं कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने आखिरी प्रवचन इसी पहाड़ी पर दिया था। सूर्य अस्त होने के बाद हाजी अराफात की पहाड़ी और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं। यहां हाजी आधी रात तक रहते हैं। जायरीन यहां से शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते चलते हैं। मुख्य हज बकरीद वाले दिन मनाई जाती है। वैसे तो इस दिन कुर्बानी होती है, लेकिन इससे पहले यात्री मीना जाकर शैतान को तीन बार पत्थर मरते हैं। ये पत्थर जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने तीन अलग-अलग स्तंभों पर मारे जाते हैं। इन्हीं जगहों पर हजरत इब्राहीम ने शैतान को तब कंकड़ मारे थे, जब उसने उन्हें बेटे की कुर्बानी देने जाते समय रोकने की कोशिश की थी। तीनों जगहों पर स्तंभ बनाए गए हैं। हाजी इन खंभों को शैतान का प्रतीक मानकर पत्थर बरसाते हैं। इस दिन हाजी केवल सबसे बड़े स्तंभ को ही पत्थर मारते हैं। पत्थर मारने की रस्म अगले दिनों में दो बार और करनी होती है। कुर्बानी के बाद हज यात्री बाल कटवाते हैं। महिलाएं भी बाल बिलकुल छोटे करा लेती हैं। इन रस्मों के बाद मक्का जाकर हजयात्री काबा के सात बार चक्कर लगाते हैं। चौथे पड़ाव पर दोबारा पत्थर मारने की रस्म होती है। यह रस्म पूरे दिन चलती है और हाजी दोबारा मीना पहुंच जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने स्तंभों को पत्थर मारते हैं। ये स्तंभ शैतान का प्रतीक माने जाते हैं। पत्थर सात-सात बार मारे जाते हैं। पांचवे दिन भी यही रस्म चलती है और दिन ढलने से पहले जायरीन मक्का के लिए रवाना हो जाते हैं। आखिरी दिन हाजी फिर से तवाफ़ की रस्म निभाते हैं और इसी के साथ हज यात्रा पूरी हो जाती है। तवाफ़ यानी काबे की सात परिक्रमा लगाई जाती है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: अरविंद कुमार Updated Mon, 26 Jun 2023 03: 55 PM IST

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Hajj 2023: हाजियों का सोमवार सुबह से ही मीना की टेंट सिटी में पहुंचना शुरू हो गया है। यहां भारत की दो नदियों गोदावरी और कावेरी का नाम भी खेमों को दिया गया है। यह हज में भारतीय संस्कृति के दर्शन कराता है। हज में दिखी भारतीय संस्कृति – फोटो : अमर उजाला

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भोपाल (खान आशु)। अकीदत के सफर पर कोसों दूर पहुंचे भारतीय हाजियों को अपने देश की संस्कृति और पहचान के दीदार मीना की टेंट सिटी में हो रहे हैं। यहां जिन खेमों को बनाया गया है, उनमें भारत की प्रसिद्ध और धार्मिक महत्व रखने वाली नदियों गोदावरी और कावेरी का नाम भी दिया गया है। हज के पांच मुख्य दिन के अरकान पूरे करने के लिए हाजियों का सोमवार सुबह से ही पहुंचना शुरू हो गया है। वे यहां रात ठहरकर मंगलवार को बाकी के अरकान पूरे करेंगे और फिर मक्का लौटेंगे। 

सउदी अरब में भारतीय हाजियों की व्यवस्था का जिम्मा काउंसलेट जनरल शाहिद आलम संभाल रहे हैं। उन्होंने ही व्यवस्था संभालने के लिए एक टीम बनाई है। इसमें खुर्शीद अहमद शाह, मिर्जा रियाज बेग, अबू सूफियान चैहान, इकबाल खान, खाजी मोहम्मद इरफान और सैयद शाकिर अली जाफरी शामिल हैं। इस टीम ने ही टेंट सिटी में खेमों को भारतीय पहचान दी है।

पहली बार यह प्रयोग…
हज के अहम अरकानों में शामिल मीना और अराफात में जरूरी क्रिया करने का खास महत्व है। इस्लामी नजरिये से इनके बिना हज अरकान पूरे नहीं माने जाते हैं। इस्लाम के इस अहम सफर में भारतीय आस्थाओं का प्रतीक मानी जाने वाली नदियों के नाम शामिल करने का प्रयोग पहली बार किया गया है।

यह है गोदावरी और कावेरी का महत्व…
गंगा सिंधु सरस्वती यमुना गोदावरी नर्मदा, कावेरी सरयू महेन्द्रतनया चर्मण्यवती वेदिका। क्षिप्रा वेत्रवती महासुरनदी ख्याता जया गण्डकी, पूर्णाः पूर्णजलैः समुद्रसहिताः कुर्वन्तु में मंगलम्।। इस श्लोक का अर्थ भी यही है कि उपर्युक्त सभी जल से परिपूर्ण नदियां, समुद्र सहित मेरा कल्याण करें। हज के दौरान की जाने वाली क्रियाएं और उपक्रम भी शुद्धिकरण और कल्याण की मंशा से किए जाते हैं। इस पवित्र सफर में अपने देश की परंपराओं को साथ जोड़कर कोई काम किया जाए तो इससे संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का समागम भी बना रहेगा।

क्या होता है पांच दिन…

हज यात्री पहले दिन सुबह (फज्र) की नमाज पढ़कर मक्का से पांच किमी दूर मीना पहुंचते हैं। वहां पूरा दिन बिताते हैं, बाकी चार नमाजें अदा करते हैं। दूसरे दिन लगभग 10 किलोमीटर दूर अराफात की पहाड़ी पर नमाज अदा करते हैं। इसे जबाल अल-रहम भी कहा जाता है। कहते हैं कि पैगंबर हजरत मुहम्मद ने आखिरी प्रवचन इसी पहाड़ी पर दिया था। सूर्य अस्त होने के बाद हाजी अराफात की पहाड़ी और मीना के बीच स्थित मुजदलफा जाते हैं। यहां हाजी आधी रात तक रहते हैं। जायरीन यहां से शैतान को मारने के लिए पत्थर जमा करते चलते हैं। मुख्य हज बकरीद वाले दिन मनाई जाती है। वैसे तो इस दिन कुर्बानी होती है, लेकिन इससे पहले यात्री मीना जाकर शैतान को तीन बार पत्थर मरते हैं। ये पत्थर जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने तीन अलग-अलग स्तंभों पर मारे जाते हैं। इन्हीं जगहों पर हजरत इब्राहीम ने शैतान को तब कंकड़ मारे थे, जब उसने उन्हें बेटे की कुर्बानी देने जाते समय रोकने की कोशिश की थी। तीनों जगहों पर स्तंभ बनाए गए हैं। हाजी इन खंभों को शैतान का प्रतीक मानकर पत्थर बरसाते हैं। इस दिन हाजी केवल सबसे बड़े स्तंभ को ही पत्थर मारते हैं। पत्थर मारने की रस्म अगले दिनों में दो बार और करनी होती है। कुर्बानी के बाद हज यात्री बाल कटवाते हैं। महिलाएं भी बाल बिलकुल छोटे करा लेती हैं। इन रस्मों के बाद मक्का जाकर हजयात्री काबा के सात बार चक्कर लगाते हैं। चौथे पड़ाव पर दोबारा पत्थर मारने की रस्म होती है। यह रस्म पूरे दिन चलती है और हाजी दोबारा मीना पहुंच जमराहे उकवा, जमराहे वुस्ता व जमराहे उला जगहों पर बने स्तंभों को पत्थर मारते हैं। ये स्तंभ शैतान का प्रतीक माने जाते हैं। पत्थर सात-सात बार मारे जाते हैं। पांचवे दिन भी यही रस्म चलती है और दिन ढलने से पहले जायरीन मक्का के लिए रवाना हो जाते हैं। आखिरी दिन हाजी फिर से तवाफ़ की रस्म निभाते हैं और इसी के साथ हज यात्रा पूरी हो जाती है। तवाफ़ यानी काबे की सात परिक्रमा लगाई जाती है। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे|
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