नेत्रदान पर उमा झंवर से चर्चा। – फोटो : अमर उजाला, डिजिटल, इंदौर
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देश में लाखों लोग आंखों की रोशनी के लिए इंतजार कर रहे हैं और उनकी मदद करने के लिए एक फरिश्ता दिनरात मेहनत कर रहा है। हम बात कर रहे हैं इंदौर की उमा झंवर की जिन्होंने अपने जीवन में 12 हजार 260 आंखे देशभर में दान करवाई हैं। इससे हजारों लोगों का जीवन फिर से रोशन हुआ है। उमा झंवर पिछले 15 साल से यह कार्य कर रही हैं। वे एमके इंटरनेशनल आई बैंक की डायरेक्टर हैं। इस बैंक को समाजसेवा के उद्देश्य से बनाया गया था जिसके माध्यम से उमा झंवर ने लोगों को नेत्रदान के लिए प्रेरित किया।
छोटी छोटी गलतियों से आधी आंखें खराब हो जाती हैं
उमा झंवर ने बताया कि नेत्रदान के बाद भी आधी आंखें प्रत्यारोपित नहीं हो पाती। यदि एक लाख आंखें दान होती हैं तो सिर्फ 50 हजार ही प्रत्यारोपित हो पाती हैं। इसका सबसे बड़ा कारण होता है छोटी छोटी गलतियां होना। उमा झंवर ने बताया कि मृत्यु के बाद कई बार आंखें खुली ही रह जाती हैं। एेसी स्थिति में आंखों का कार्निया सूख जाता या उसमें स्क्रैच आ जाते हैं। इसके साथ कई बार मृतक को बीमारी होने से आंखें प्रत्यारोपित नहीं हो पाती। उसके ब्लड टेस्ट में यदि पता चलता है कि उसे कोई गंभीर बीमारी थी तो फिर वह आंखे किसी को नहीं लगती। वह आंखें फिर रिसर्च के काम आती हैं और मेडिकल कालेजों में जाती हैं।
नेत्रदान में आंखें नहीं निकालते, सिर्फ कार्निया निकाला जाता है
उमा झंवर ने बताया कि आंखें दान करने से कभी चेहरा नहीं बिगड़ता है। नेत्रदान में आंखें नहीं निकालते सिर्फ कार्निया निकाला जाता है। यह प्रक्रिया सिर्फ 15 मिनट की होती है। इसमें कोई चीरफाड़ भी नहीं होती न ही जरा भी रक्त निकलता है। मशीन की मदद से 15 मिनट में कार्निया निकाल लिया जाता है। अंतिम संस्कार में भी देर नहीं होती।
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