damoh-news:-दमोह-के-जंगल-में-है-80-फीट-गहरी-400-साल-पुरानी-बावड़ी,-20-कमरे-भी-बने-हैं
विस्तार Follow Us गुजरात के पाटन में रानी की वाव है, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। उसे दुनिया का इकलौता उल्टा मंदिर या 30 किलोमीटर की सुरंगों की वजह से भी जाना जाता है। इसी तर्ज पर 400 साल पुरानी एक बावड़ी दमोह जिले के हटा ब्लॉक के जंगल में भी बनी है। लेकिन, यह अनदेखी का शिकार हो गई है और इस वजह से अपनी पहचान खो रही है।  दमोह जिले के हटा ब्लॉक के भिलौनी गांव के पास जंगल में बनी प्राचीन बावड़ी को 400 साल पुराना बताया जाता है। देखते ही राजसी वैभव की झलक मिल जाती है। 80 फीट गहरी यह बावड़ी चार मंजिला इमारत की तरह है, जिसकी खिड़कियां बावड़ी में खुलती हैं। करीब 20 कमरों के महलनुमा आकृति का रखरखाव न के बराबर है। इसके बाद भी उसकी भव्यता देखते ही बनती है।  रानी दमयंती संग्रहालय पुरातत्व विभाग के परिचायक डॉ. सुरेंद्र चौरसिया ने बताया कि पहले राजा-महाराजाओं के समय इस तरह की विशेष आकृति की बावड़ी उनके किले व महल के आसपास बनाई जाती थीं। उनमें काफी पानी रहता था। उस पानी का उपयोग केवल राजपरिवार के लोग, राजकुमारी व रानियां ही किया करती थीं। यह बावड़ी उस समय की शैली का अद्भुत नमूना है जो देखते ही बनता है। यदि इस तरह की धरोहरों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए तो ऐतिहासिक महत्व की कई चीजें लोगों को पता चल सकती हैं।

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गुजरात के पाटन में रानी की वाव है, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। उसे दुनिया का इकलौता उल्टा मंदिर या 30 किलोमीटर की सुरंगों की वजह से भी जाना जाता है। इसी तर्ज पर 400 साल पुरानी एक बावड़ी दमोह जिले के हटा ब्लॉक के जंगल में भी बनी है। लेकिन, यह अनदेखी का शिकार हो गई है और इस वजह से अपनी पहचान खो रही है। 

दमोह जिले के हटा ब्लॉक के भिलौनी गांव के पास जंगल में बनी प्राचीन बावड़ी को 400 साल पुराना बताया जाता है। देखते ही राजसी वैभव की झलक मिल जाती है। 80 फीट गहरी यह बावड़ी चार मंजिला इमारत की तरह है, जिसकी खिड़कियां बावड़ी में खुलती हैं। करीब 20 कमरों के महलनुमा आकृति का रखरखाव न के बराबर है। इसके बाद भी उसकी भव्यता देखते ही बनती है। 

रानी दमयंती संग्रहालय पुरातत्व विभाग के परिचायक डॉ. सुरेंद्र चौरसिया ने बताया कि पहले राजा-महाराजाओं के समय इस तरह की विशेष आकृति की बावड़ी उनके किले व महल के आसपास बनाई जाती थीं। उनमें काफी पानी रहता था। उस पानी का उपयोग केवल राजपरिवार के लोग, राजकुमारी व रानियां ही किया करती थीं। यह बावड़ी उस समय की शैली का अद्भुत नमूना है जो देखते ही बनता है। यदि इस तरह की धरोहरों की जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए तो ऐतिहासिक महत्व की कई चीजें लोगों को पता चल सकती हैं।

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