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आरईएस कार्यालय में लगे पेड़ विस्तार Follow Us दमोह जिले के तेंदूखेड़ा विकासखंड के आरईएस विभाग में दो अनोखे किस्म के पेड़ लगे हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस पेड़ से लटाएं निकल रही हैं। चार साल पहले रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू ने बिना किसी जानकारी के यह पौधे लगाए थे जो आज पेड़ बन गए हैं। यह पेड़ फिस्टेल पाम कहलाता है, जो एक मछली है। इसी मछली के नाम से यह पेड़ पहचाना जाता है। तेंदूखेड़ा के अलावा पूरे बुंदेलखंड में यह पेड़ कहीं नहीं है। भोपाल में एक-दो पेड़ लगे होने की जानकारी जरूर मिली है। पौधों की भी कई किस्म होती है, जिनका आकार और जानकारी उनके बड़े होने पर समझ आती है। तेंदूखेड़ा आरईएस विभाग कार्यालय ऐसे ही दो पौधे चर्चाओं का विषय बने हैं। उन्हें चार वर्ष पूर्व रोपित किया गया था जो अब पेड़ बन गये है। इनके बड़े होने और इनका आकार फैलने के बाद इनकी खूबियां देख लोग अलग-अलग तरह की बात बता रहे हैं। कार्यालय में मौजूद अधिकारियों को भी इनकी खूबियों और पेड़ के नाम के बारे में ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। पेड़ों से निकली जटाओं को देखकर हर कोई इसके बारे में जानना चाहता है। रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू द्वारा ने पौधे रोपे थे। पेड़ बनने के बाद न तो इनमें डाली निकली है न फल लगे हैं बल्कि कुछ ऐसी लटे निकली है जिन्हें देख सभी हैरान है। एक पेड़ बड़ा हुआ है लेकिन उसमें हरियाली नहीं है। उसी के पास लगा पेड़ आकार में मजबूत और हरा-भरा है। उसमें डालियों की जगह लट निकली है। एक डाली से निकली लट पूरी तरह हरी-भरी है जबकि दूसरी डाली से निकली लटो का रंग भी पूरी तरह हरा नहीं है। तीसरी डाली से निकली लटों का रंग कत्थई है, जो अपने आप में सुंदरता बिखेर रही है। मजबूती है बेहिसाब  ये दोनों पेड़ आस-पास लगे हैं और इनकी देखभाल यहां के कर्मचारी कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह पेड़ इंसान और पशु की तरह जोड़े में है। दो पेड़ो में एक नर है जबकि दूसरा मादा क्योंकि एक पूरी तरह हरा-भरा है। अनेक तरह की लटें निकल रही हैं जिनकी मजबूती बेमिसाल है। कर्मचारियों ने इनकी मजबूती परखने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन पेड़ से निकली लट इतनी मजबूत है कि यदि कोई व्यक्ति इन इनको पकड़ कर झूलता भी है तो पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता। रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू को भी पौधे की प्रजाति की जानकारी नहीं है। यह पौधे उन्होंने ही रोपे थे।  दमोह डीएफओ ने क्या कहा दमोह डीएफओ एमएस उईके का कहना है की फिस्टेल मछली के नाम से यह पेड़ जाना जाता है। फिस्टेल मछली की पूंछ हरी होती है। इसकी पत्ती भी हरी है। इस वजह से इसे मछली के नाम से पहचाना जाता है। जंगलों में यह पेड़ नहीं मिलता। लोग अपने गार्डन में सौंदरीयकरण के लिए इस पेड़ को लगाते हैं।

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आरईएस कार्यालय में लगे पेड़

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दमोह जिले के तेंदूखेड़ा विकासखंड के आरईएस विभाग में दो अनोखे किस्म के पेड़ लगे हैं जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस पेड़ से लटाएं निकल रही हैं। चार साल पहले रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू ने बिना किसी जानकारी के यह पौधे लगाए थे जो आज पेड़ बन गए हैं। यह पेड़ फिस्टेल पाम कहलाता है, जो एक मछली है। इसी मछली के नाम से यह पेड़ पहचाना जाता है। तेंदूखेड़ा के अलावा पूरे बुंदेलखंड में यह पेड़ कहीं नहीं है। भोपाल में एक-दो पेड़ लगे होने की जानकारी जरूर मिली है।

पौधों की भी कई किस्म होती है, जिनका आकार और जानकारी उनके बड़े होने पर समझ आती है। तेंदूखेड़ा आरईएस विभाग कार्यालय ऐसे ही दो पौधे चर्चाओं का विषय बने हैं। उन्हें चार वर्ष पूर्व रोपित किया गया था जो अब पेड़ बन गये है। इनके बड़े होने और इनका आकार फैलने के बाद इनकी खूबियां देख लोग अलग-अलग तरह की बात बता रहे हैं। कार्यालय में मौजूद अधिकारियों को भी इनकी खूबियों और पेड़ के नाम के बारे में ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। पेड़ों से निकली जटाओं को देखकर हर कोई इसके बारे में जानना चाहता है।

रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू द्वारा ने पौधे रोपे थे। पेड़ बनने के बाद न तो इनमें डाली निकली है न फल लगे हैं बल्कि कुछ ऐसी लटे निकली है जिन्हें देख सभी हैरान है। एक पेड़ बड़ा हुआ है लेकिन उसमें हरियाली नहीं है। उसी के पास लगा पेड़ आकार में मजबूत और हरा-भरा है। उसमें डालियों की जगह लट निकली है। एक डाली से निकली लट पूरी तरह हरी-भरी है जबकि दूसरी डाली से निकली लटो का रंग भी पूरी तरह हरा नहीं है। तीसरी डाली से निकली लटों का रंग कत्थई है, जो अपने आप में सुंदरता बिखेर रही है।

मजबूती है बेहिसाब 
ये दोनों पेड़ आस-पास लगे हैं और इनकी देखभाल यहां के कर्मचारी कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि यह पेड़ इंसान और पशु की तरह जोड़े में है। दो पेड़ो में एक नर है जबकि दूसरा मादा क्योंकि एक पूरी तरह हरा-भरा है। अनेक तरह की लटें निकल रही हैं जिनकी मजबूती बेमिसाल है। कर्मचारियों ने इनकी मजबूती परखने के लिए अनेक प्रयास किए, लेकिन पेड़ से निकली लट इतनी मजबूत है कि यदि कोई व्यक्ति इन इनको पकड़ कर झूलता भी है तो पेड़ को कोई फर्क नहीं पड़ता। रिटायर्ड एसडीओ बीएल साहू को भी पौधे की प्रजाति की जानकारी नहीं है। यह पौधे उन्होंने ही रोपे थे। 

दमोह डीएफओ ने क्या कहा
दमोह डीएफओ एमएस उईके का कहना है की फिस्टेल मछली के नाम से यह पेड़ जाना जाता है। फिस्टेल मछली की पूंछ हरी होती है। इसकी पत्ती भी हरी है। इस वजह से इसे मछली के नाम से पहचाना जाता है। जंगलों में यह पेड़ नहीं मिलता। लोग अपने गार्डन में सौंदरीयकरण के लिए इस पेड़ को लगाते हैं।

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