damoh:-शिष्यों-ने-किया-बुंदेली-परंपरा-में-अखाड़े-का-प्रदर्शन,-हरदौल-अखाड़ा-उस्ताद-के-निधन-पर-अनोखी-विदाई
अखाड़े का प्रदर्शन - फोटो : अमर उजाला विस्तार Follow Us दमोह में अपने गुरु की अंतिम यात्रा में अखाड़े के शिष्यों ने मुक्तिधाम में बुंदेली परंपरा में उन्हें अंतिम विदाई देते हुए अखाड़े का प्रदर्शन किया। आपने शायद ही इस प्रकार की अंतिम यात्रा देखी हो, लेकिन बुदेलखंड में इस प्रकार की परंपरा है। शनिवार को इसका निर्वाहन अखाड़े के कलाकारों द्वारा किया गया। Trending Videos दरअसल, अखाड़े के उस्ताद रहे 84 वर्षीय रामचंद्र पाठक के निधन पर उनके शिष्यों ने मुक्तिधाम में उनकी अंतिम विदाई के पहले अखाड़े का प्रदर्शन किया। बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि जब भी अखाड़े के गुरु का निधन होता है तो उनके शिष्य मुक्तिधाम में जाकर अखाड़े का प्रदर्शन करते हैं। महंत पंडित रामचन्द्र पाठक लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शनिवार दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर सुनते ही पूरे जिले से लोग उनके घर पहुंचे और उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। वर्षों पहले हरदौल अखाड़े में रामचंद्र पाठक उस्ताद के रूप में युवाओं को हथियार चलाने के तरीके सिखाते थे। दशहरा पर्व के मौके पर देवी प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान निकलने वाले अखाड़े में ये युवा अपनी उन प्रतिभाओं का प्रदर्शन करते थे। शनिवार शाम चार बजे पाठक के निवास से अंतिम यात्रा निकाली गई, जो शहर के धरमपुरा स्थित सीताबाबड़ी मुक्तिधाम पहुंची। यहां पर उनके शिष्यों ने अखाड़े के हथियार ले जाकर वहां प्रदर्शन किया। किसी ने लाठी घुमाई, किसी ने तलवार तो किसी वनेटी और फरसा चक्र का प्रदर्शन किया। अखाड़े के उस्ताद होने के अलावा रामचंद्र पाठक एक धर्माचार्य भी थे। उन्हें सभी वेदों का बेहतर ज्ञान था। शहर के लोग उनके प्रति अटूट आस्था रखते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन यज्ञ, अनुष्ठान और कर्मकांड करते व्यतित किया। अंतिम यात्रा में शामिल दमोह नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मनु मिश्रा ने कहा कि महंत रामचन्द्र पाठक के निधन से बुंदेलखंड के लिए उस्ताद और विद्वान पंडित के रूप में क्षति हुई है। आज बुंदेली परम्परा के अनुसार हरदौल अखाड़े के उस्ताद के लिए अखाड़े के कलाकारों ने प्रदर्शन कर नम आंखों से विदाई दी है। भाजपा नेता मोंटी रायकवार ने बताया कि बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि अखाड़े के गुरु को शिष्य अंतिम यात्रा के दौरान इसी तरह विदाई देते हैं। आज अखाड़े के उस्ताद के निधन पर बुंदेली परंपरा के तहत ही अखाड़ों का प्रदर्शन किया गया है।

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दमोह में अपने गुरु की अंतिम यात्रा में अखाड़े के शिष्यों ने मुक्तिधाम में बुंदेली परंपरा में उन्हें अंतिम विदाई देते हुए अखाड़े का प्रदर्शन किया। आपने शायद ही इस प्रकार की अंतिम यात्रा देखी हो, लेकिन बुदेलखंड में इस प्रकार की परंपरा है। शनिवार को इसका निर्वाहन अखाड़े के कलाकारों द्वारा किया गया।

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दरअसल, अखाड़े के उस्ताद रहे 84 वर्षीय रामचंद्र पाठक के निधन पर उनके शिष्यों ने मुक्तिधाम में उनकी अंतिम विदाई के पहले अखाड़े का प्रदर्शन किया। बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि जब भी अखाड़े के गुरु का निधन होता है तो उनके शिष्य मुक्तिधाम में जाकर अखाड़े का प्रदर्शन करते हैं।

महंत पंडित रामचन्द्र पाठक लंबे समय से बीमार चल रहे थे। शनिवार दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर सुनते ही पूरे जिले से लोग उनके घर पहुंचे और उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। वर्षों पहले हरदौल अखाड़े में रामचंद्र पाठक उस्ताद के रूप में युवाओं को हथियार चलाने के तरीके सिखाते थे। दशहरा पर्व के मौके पर देवी प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान निकलने वाले अखाड़े में ये युवा अपनी उन प्रतिभाओं का प्रदर्शन करते थे।

शनिवार शाम चार बजे पाठक के निवास से अंतिम यात्रा निकाली गई, जो शहर के धरमपुरा स्थित सीताबाबड़ी मुक्तिधाम पहुंची। यहां पर उनके शिष्यों ने अखाड़े के हथियार ले जाकर वहां प्रदर्शन किया। किसी ने लाठी घुमाई, किसी ने तलवार तो किसी वनेटी और फरसा चक्र का प्रदर्शन किया। अखाड़े के उस्ताद होने के अलावा रामचंद्र पाठक एक धर्माचार्य भी थे। उन्हें सभी वेदों का बेहतर ज्ञान था। शहर के लोग उनके प्रति अटूट आस्था रखते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन यज्ञ, अनुष्ठान और कर्मकांड करते व्यतित किया।

अंतिम यात्रा में शामिल दमोह नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष मनु मिश्रा ने कहा कि महंत रामचन्द्र पाठक के निधन से बुंदेलखंड के लिए उस्ताद और विद्वान पंडित के रूप में क्षति हुई है। आज बुंदेली परम्परा के अनुसार हरदौल अखाड़े के उस्ताद के लिए अखाड़े के कलाकारों ने प्रदर्शन कर नम आंखों से विदाई दी है। भाजपा नेता मोंटी रायकवार ने बताया कि बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि अखाड़े के गुरु को शिष्य अंतिम यात्रा के दौरान इसी तरह विदाई देते हैं। आज अखाड़े के उस्ताद के निधन पर बुंदेली परंपरा के तहत ही अखाड़ों का प्रदर्शन किया गया है।

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