damoh:-देवशयनी-एकादशी-से-दमोह-के-इमलावाले-हनुमान-मंदिर-में-बंद-हो-जाएगी-कपूर-आरती,-110-वर्षों-की-है-परंपरा
मंदिर में विराजमान हनुमान प्रतिमा विस्तार Follow Us दमोह जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर दमोह-छतरपुर मार्ग पर बकायन गांव में इमलावाले हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि पांच मंगलवार हाजरी लगाने से मनोकामना पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने के लिए कपूर आरती की भी परंपरा है। प्रत्येक मंगलवार यहां कई किलो कपूर से आरती होती है। देवशयनी एकादशी से यह कपूर आरती बंद हो जाएगी। देवउठनी एकदशी के बाद आरती का क्रम फिर शुरू होगा। आने वाले अगले मंगलवार 16 जुलाई को यहां आखरी कपूर आरती होगी। इमलावाले हनुमान मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां सालभर भक्तों का आना लगा रहता है। मंगलवार और शनिवार को भगवान को झंडा व चोला चढ़ाने की परंपरा है। इस स्थान की ऐसी मान्यता है कि पांच मंगलवार यहां हाजरी लगाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बटियागढ़ ब्लॉक के बकायन गांव के इमला वाले हनुमान का मंदिर जहां प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को जिले व प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यहां विराजमान हनुमानजी की प्रतिमा इमली के पेड़ के नीचे मिली थी इसलिए कहा जाने लगा इमलावाले हनुमान। यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होने पर कपूर आरती कराई जाती है। इमली के पेड़ के नीचे निकली थी हनुमान प्रतिमा यह प्रतिमा 250 साल पुरानी है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पहले श्मशानघाट था। बड़ी संख्या में खजूर और इमली के पेड़ लगे थे। यहां एक संत महाजन दास आए थे। रात में उन्होंने यहां विश्राम किया। उन्हें सपना आया कि यहां एक हनुमान जी की मूर्ति है। सुबह होते ही संत ने यह बात ग्रामीणों को बताई। इमली के पेड़ के नीचे खुदाई करने पर हनुमान जी की प्रतिमा निकली जिसे यहां विराजमान किया गया। तभी से यह स्थान इमलावाले हनुमान मंदिर के रूप में पहचाना जाने लगा। इस स्थान के बारे में एक और किंवदंती है कि यहां माफीदार के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। उसके पैर पीछे थे। उसने हनुमान जी से विनंती की कि उसके बेटे के पैरे सीधे हो जाएं। जैसे ही माफीदार घर पहुंचा उसके बेटे के पैर सीधे मिले। तभी से यह स्थान चमत्कारी माना जाने लगा। इसके बाद यहां सुंदरकांड, भजन, कीर्तन शुरू हो गया। कपूर आरती भी तभी से प्रारंभ हुई। कहा जाता है कि करीब 60 साल पहले यहां डाकुओं ने दावत दी तो उन्हें बंदर ही बंदर नजर आए। डाकू धीरे-धीरे पीछे पिछड़ते गए और भाग निकले। देवशयनी एकादशी से बंद हो जाएगी कपूर आरती मंदिर के पुजारी सत्यम गौतम ने बताया कि देवउठनी एकादशी से लेकर देवशयनी एकादशी तक यहां हनुमानजी की विशेष कपूर आरती होती है। यह क्रम पिछले 110 वर्षों से चल रहा है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहां सैकड़ों किलो कपूर से आरती हो जाती है। अभी तक इस मंदिर में एक दिन में ढाई क्विंटल कपूर से हनुमान जी की आरती करने का रिकॉर्ड दर्ज है। देवउठनी एकादशी से देवशयनी एकादशी तक जो पहला और अंतिम मंगलवार पड़ता है, उस दिन यहां मन्नत की आरती होती है। उसके बाद इस आरती का आयोजन बंद हो जाता है। 

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मंदिर में विराजमान हनुमान प्रतिमा

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दमोह जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर दूर दमोह-छतरपुर मार्ग पर बकायन गांव में इमलावाले हनुमान जी का प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि पांच मंगलवार हाजरी लगाने से मनोकामना पूरी होती है। मनोकामना पूरी होने के लिए कपूर आरती की भी परंपरा है। प्रत्येक मंगलवार यहां कई किलो कपूर से आरती होती है। देवशयनी एकादशी से यह कपूर आरती बंद हो जाएगी। देवउठनी एकदशी के बाद आरती का क्रम फिर शुरू होगा। आने वाले अगले मंगलवार 16 जुलाई को यहां आखरी कपूर आरती होगी।

इमलावाले हनुमान मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां सालभर भक्तों का आना लगा रहता है। मंगलवार और शनिवार को भगवान को झंडा व चोला चढ़ाने की परंपरा है। इस स्थान की ऐसी मान्यता है कि पांच मंगलवार यहां हाजरी लगाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। बटियागढ़ ब्लॉक के बकायन गांव के इमला वाले हनुमान का मंदिर जहां प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को जिले व प्रदेश के कई जिलों से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। यहां विराजमान हनुमानजी की प्रतिमा इमली के पेड़ के नीचे मिली थी इसलिए कहा जाने लगा इमलावाले हनुमान। यहां मांगी गई मनोकामना पूरी होने पर कपूर आरती कराई जाती है।

इमली के पेड़ के नीचे निकली थी हनुमान प्रतिमा
यह प्रतिमा 250 साल पुरानी है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि यहां पहले श्मशानघाट था। बड़ी संख्या में खजूर और इमली के पेड़ लगे थे। यहां एक संत महाजन दास आए थे। रात में उन्होंने यहां विश्राम किया। उन्हें सपना आया कि यहां एक हनुमान जी की मूर्ति है। सुबह होते ही संत ने यह बात ग्रामीणों को बताई। इमली के पेड़ के नीचे खुदाई करने पर हनुमान जी की प्रतिमा निकली जिसे यहां विराजमान किया गया। तभी से यह स्थान इमलावाले हनुमान मंदिर के रूप में पहचाना जाने लगा। इस स्थान के बारे में एक और किंवदंती है कि यहां माफीदार के यहां एक पुत्र ने जन्म लिया। उसके पैर पीछे थे। उसने हनुमान जी से विनंती की कि उसके बेटे के पैरे सीधे हो जाएं। जैसे ही माफीदार घर पहुंचा उसके बेटे के पैर सीधे मिले। तभी से यह स्थान चमत्कारी माना जाने लगा। इसके बाद यहां सुंदरकांड, भजन, कीर्तन शुरू हो गया। कपूर आरती भी तभी से प्रारंभ हुई। कहा जाता है कि करीब 60 साल पहले यहां डाकुओं ने दावत दी तो उन्हें बंदर ही बंदर नजर आए। डाकू धीरे-धीरे पीछे पिछड़ते गए और भाग निकले।

देवशयनी एकादशी से बंद हो जाएगी कपूर आरती
मंदिर के पुजारी सत्यम गौतम ने बताया कि देवउठनी एकादशी से लेकर देवशयनी एकादशी तक यहां हनुमानजी की विशेष कपूर आरती होती है। यह क्रम पिछले 110 वर्षों से चल रहा है। प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को यहां सैकड़ों किलो कपूर से आरती हो जाती है। अभी तक इस मंदिर में एक दिन में ढाई क्विंटल कपूर से हनुमान जी की आरती करने का रिकॉर्ड दर्ज है। देवउठनी एकादशी से देवशयनी एकादशी तक जो पहला और अंतिम मंगलवार पड़ता है, उस दिन यहां मन्नत की आरती होती है। उसके बाद इस आरती का आयोजन बंद हो जाता है। 

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