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गोटमार मेला - फोटो : अमर उजाला विस्तार वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला पांढुर्ना में खेला जा रहा है। सुबह से ही चंडी मां की पूजा के बाद यहां पर सावरगांव और पांढुर्णा पक्ष के द्वारा एक दूसरे पर पत्थर मारे जा रहे हैं। दोपहर तक पुलिस अधीक्षक सुंदर सिंह कनेश और कलेक्टर अजय देव शर्मा के मुताबिक, 35 लोग घायल हो चुके हैं, जिसमें से छह लोगों को अस्पताल में रेफर किया गया है। बाकी लोग मेडिकल कैंप में इलाज करा रहे हैं। बता दें कि जिला बनने के बाद पहली बार पांढुर्ना गोटमार खेला जा रहा है। एसपी सुंदर सिंह कणेश ने बताया कि सुरक्षा के लिए 600 पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की गई है। छह कंपनियां यहां पर तैनात हैं। इस बार 16 एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई है, ताकि घायलों को उपचार दिया जा सके। 300 साल पुरानी है परंपरा पांढुर्ना व सावरगांव के बीच जाम नदी पर गोटमार खेलने की परंपरा को निभाकर एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए जाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन होने वाले गोटमार मेले पर भले ही खून की धारा बहेगी, पर दर्द को भूलकर परंपरा निभाने का जोश कम नहीं होगा। मेले की आराध्य मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर हर कोई गोटमार मेले में शामिल होगा। गोटमार के अवसर पर आराध्य देवी मां चंडिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगेगा। गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी और मेले में शामिल होने वाला हर व्यक्ति मां चंडिका को नमन करके मेले में पहुंचेगा। गोटमार मेले के समापन पर झंडेरूपी पलाश के पेड़ को खिलाड़ी मां चंडिका के मंदिर में अर्पित करेंगे। प्रेमी जोड़े की याद में होता है गोटमार बुजुर्गों के अनुसार, सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का युवक एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन दोनों के गांव के लोग इस प्रेम कहानी से आक्रोशित थे। पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्रपक्ष अमावस्या की अलसुबह युवक-युवती भाग गए। लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए। दोनों नदी पार करने की कोशिश करते रहे। यहां पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जमा हो गए और प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई। तभी से प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है। सांबारे परिवार में हुईं थी तीन मौतें गोटमार मेले में सांबारे परिवार अपने तीन सदस्यों को खो चुका है। 22 अगस्त 1955 में सबसे पहले महादेव सांबारे की मौत हुई थी। 24 अगस्त 1987 में कोठिराम सांबारे और चार सितंबर 2005 में जनार्दन सांबारे की मौत हुई थी। मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, गोटमार मेले में मरने वालों संख्या की जानकारी हासिल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस मेले में पत्थरों के बौछार से साल 1995 से 2023 तक 13 लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जिसका रिकॉर्ड आज भी मौजूद है। साल 1978 और 1987 में चलीं गोलियां, दो की मौत इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन ने काफी सख्त कदम उठाकर पुलिस ने गोलियां भी बरसाई थीं। यह गोलीकांड 1978 और 1987 में हुआ था, जिसमें 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटवा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी। इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात बने थे। वहीं पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी हुआ था।

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गोटमार मेला – फोटो : अमर उजाला

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विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला पांढुर्ना में खेला जा रहा है। सुबह से ही चंडी मां की पूजा के बाद यहां पर सावरगांव और पांढुर्णा पक्ष के द्वारा एक दूसरे पर पत्थर मारे जा रहे हैं। दोपहर तक पुलिस अधीक्षक सुंदर सिंह कनेश और कलेक्टर अजय देव शर्मा के मुताबिक, 35 लोग घायल हो चुके हैं, जिसमें से छह लोगों को अस्पताल में रेफर किया गया है। बाकी लोग मेडिकल कैंप में इलाज करा रहे हैं।

बता दें कि जिला बनने के बाद पहली बार पांढुर्ना गोटमार खेला जा रहा है। एसपी सुंदर सिंह कणेश ने बताया कि सुरक्षा के लिए 600 पुलिस कर्मियों की नियुक्ति की गई है। छह कंपनियां यहां पर तैनात हैं। इस बार 16 एम्बुलेंस की व्यवस्था की गई है, ताकि घायलों को उपचार दिया जा सके।

300 साल पुरानी है परंपरा
पांढुर्ना व सावरगांव के बीच जाम नदी पर गोटमार खेलने की परंपरा को निभाकर एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाए जाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन होने वाले गोटमार मेले पर भले ही खून की धारा बहेगी, पर दर्द को भूलकर परंपरा निभाने का जोश कम नहीं होगा। मेले की आराध्य मां चंडिका के चरणों में माथा टेककर हर कोई गोटमार मेले में शामिल होगा। गोटमार के अवसर पर आराध्य देवी मां चंडिका के मंदिर में श्रद्धालुओं का मेला लगेगा। गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी और मेले में शामिल होने वाला हर व्यक्ति मां चंडिका को नमन करके मेले में पहुंचेगा। गोटमार मेले के

समापन पर झंडेरूपी पलाश के पेड़ को खिलाड़ी मां चंडिका के मंदिर में अर्पित करेंगे।

प्रेमी जोड़े की याद में होता है गोटमार
बुजुर्गों के अनुसार, सावरगांव की युवती और पांढुर्णा का युवक एक दूसरे से प्रेम करते थे। दोनों शादी करना चाहते थे। लेकिन दोनों के गांव के लोग इस प्रेम कहानी से आक्रोशित थे। पोला त्योहार के दूसरे दिन भद्रपक्ष अमावस्या की अलसुबह युवक-युवती भाग गए। लेकिन जाम नदी की बाढ़ में फंस गए। दोनों नदी पार करने की कोशिश करते रहे। यहां पांढुर्णा और सावरगांव के लोग जमा हो गए और प्रेमी जोड़े पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया, जिससे दोनों की मौत हो गई। तभी से प्रेमी युगल की याद में गोटमार का खेल खेला जाता है।

सांबारे परिवार में हुईं थी तीन मौतें
गोटमार मेले में सांबारे परिवार अपने तीन सदस्यों को खो चुका है। 22 अगस्त 1955 में सबसे पहले महादेव सांबारे की मौत हुई थी। 24 अगस्त 1987 में कोठिराम सांबारे और चार सितंबर 2005 में जनार्दन सांबारे की मौत हुई थी।

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, गोटमार मेले में मरने वालों संख्या की जानकारी हासिल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई है। इस मेले में पत्थरों के बौछार से साल 1995 से 2023 तक 13 लोगों ने अपनी जान गंवाई है, जिसका रिकॉर्ड आज भी मौजूद है।

साल 1978 और 1987 में चलीं गोलियां, दो की मौत
इस खूनी खेल को बंद कराने के लिए प्रशासन ने काफी सख्त कदम उठाकर पुलिस ने गोलियां भी बरसाई थीं। यह गोलीकांड 1978 और 1987 में हुआ था, जिसमें 3 सितंबर 1978 को ब्रह्माणी वार्ड के देवराव सकरडे और 1987 में जाटवा वार्ड के कोठीराम सांबारे की गोली लगने से मौत हुई थी। इस दौरान पांढुर्णा में कर्फ्यू जैसे हालात बने थे। वहीं पुलिस की ओर से लाठीचार्ज भी हुआ था।

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