अमर उजाला, न्यूज डेस्क, भोपाल Published by: दिनेश शर्मा Updated Sun, 23 Jun 2024 10: 56 PM IST
भोपाल स्थित एम्स में आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू करने की तैयारी की जा रही है। जिससे निःसंतान दंपतियों को संतान का सुख मिल सकेगा। भोपाल एम्स में जल्द ही आईवीएफ की सुविधा शुरू होने वाली है। – फोटो : सोशल मीडिया
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राजधानी भोपाल स्थित एम्स लगातार मरीज की सुविधाओं को बढ़ाया जा रहा है। अब एम्स अस्पताल में जल्द ही आईवीएफ की सुविधा शुरू करने की तैयारी की जा रही है। जानकारी के लिए बता दें कि एम्स भोपाल प्रदेश का ऐसा पहला अस्पताल होगा, जहां किसी सरकारी अस्पताल में आईवीएफ ट्रीटमेंट शुरू किया जाएगा।
आधुनिक डिजिटल और एआई तकनीक पर है आधारित
एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने बताया कि एम्स में आईवीएफ उपचार सुविधा बहुत जल्द शुरू होने की उम्मीद है। यह राज्य में आईवीएफ उपचार प्रदान करने वाली पहली सरकारी सुविधा बन जाएगी। आईवीएफ स्किल लैब कई उच्च-निष्ठा डिजिटल सिमुलेटर के साथ एक प्रशिक्षण सुविधा है, जो डॉक्टरों को आईवीएफ प्रशिक्षण के हिस्से के रूप में बांझपन उपचार और आईवीएफ के लिए आवश्यक विभिन्न प्रक्रियाओं, जैसे हिस्टेरोस्कोपी, डिंब पिक-अप और भ्रूण स्थानांतरण का अभ्यास करने में सक्षम बनाती है। ये सिमुलेटर आधुनिक डिजिटल और एआई तकनीक पर आधारित हैं और प्रशिक्षुओं के लिए अलग-अलग कठिनाई स्तरों के साथ कई तरह की प्रक्रियाओं और मामलों को शामिल करते हैं।
जानें क्या होता है आईवीएफ ट्रीटमेंट
आज के समय में, खान-पान से लेकर रहन-सहन तक, सभी चीजें बदल गई हैं। लोगों के जीवन जीने का तरीका पूरी तरह से बदल गया है। इसका असर महिलाओं के प्रेग्नेंसी पर भी पड़ता है। इन सब के कारण महिलाओं को कंसीव करने में भी दिक्कतें आती हैं। यदि कंसीव हो भी जाए तो मिसकैरेज जैसी समस्याएं हो जाती हैं या प्रेग्नेंसी सफलता पूर्वक नहीं हो पाती है। ऐसे समस्याओं से ही निजात पाने के लिए आईवीएफ ट्रीटमेंट किया जाता है। आईवीएफ को इन विट्रो फर्टीलाइजेशन के नाम से भी जाना जाता है। जब महिला का शरीर ऐग को फर्टिलाइज करने में सक्षम नहीं होता है, तो उसे लैब में फर्टिलाइज कराया जाता है। इसमें महिला के अंडे और पुरुष के स्पर्म को मिलाया जाता है। एक बार जब इसके संयोजन से भ्रूण का निर्माण हो जाता है, तो उसे वापस महिला के गर्भाशय में डाल दिया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो, आईवीएफ ट्रीटमेंट स्त्री के ऐग और पुरुष के स्पर्म को लैब में फर्टिलाइज करके भ्रूण का निमार्ण किया जाता है। उसके बाद उस भ्रूण को वापस महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है। इसे आईवीएफ कहते हैं। आईवीएफ को हिंदी में भ्रूण प्रत्यारोपण भी कहा जाता है और आईवीएफ के द्वारा जन्में शिशु को टेस्ट ट्यूब बेबी कहा जाता है।
ऐसे किया जाता है आईवीएफ ट्रीटमेंट
आईवीएफ प्रक्रिया करने से पहले महिला और पुरुष दोनों की जांच की जाती है। उसके बाद जांच की रिपोर्ट के आधार पर प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। सबसे पहले पुरुष के सीमेन (स्पर्म) को लैब में दिया जाता है, जहां उसके अच्छे और खराब शुक्राणुओं को अलग-अलग किया जाता है। उसके बाद महिला के शरीर से इंजेक्शन द्वारा उसके अंडे को बाहर निकालकर फ्रीज किया जाता है। फिर लैब में अंडे के उपर अच्छे शुक्राणु जो सक्रिय है, उनको रखा जाता है और प्राकृतिक रूप से फर्टिलाइज होने के लिए छोड़ दिया जाता है। उसके बाद फर्टिलाइजेशन के तीसरे दिन तक भ्रूण तैयार हो जाता है, जहां कैथिटर उपकरण की सहायता से उसे महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है। भ्रूण स्थानांतरित करने के कुछ घंटे बाद महिला अपने घर जा सकती है। फिर दो सप्ताह बाद महिला को गर्भाशय की जांच के लिए बुलाया जाता है और प्रेग्नेंसी टिप्स दिए जाते हैं।
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