bhind:-चंबल-कबड्डी-लीग-का-पोस्टर-जारी,-11-मार्च-से-प्रतियोगिता-का-आयोजन,-भिंड-मुरैना-के-खिलाड़ियों-में-उत्साह
चंबल कबड्डी लीग का पोस्टर जारी - फोटो : अमर उजाला विस्तार दो दिवसीय 'चंबल कबड्डी लीग' इतिहास कालखंड से भुला दिए गए गुमनाम क्रांतिवीर शहीद मारून सिंह लोधी की स्मृति में हो रही है। इसमें चंबल अंचल के अलावा अन्य जनपदों-प्रदेशों की टीमें हिस्सा लेंगी। चंबल परिवार द्वारा चंबल कबड्डी लीग-2023 का पोस्टर चंबल नदी के किनारे स्थित आजादी योद्धा मारून सिंह लोधी के गांव पाली धार में जारी कर दिया गया। चंबल कबड्डी लीग पोस्टर जारी करने के बाद आयोजन समिति से जुड़े क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाहआलम राना ने कहा कि चंबल की धरती वीर प्रसूता है। इस धरती में विद्रोह के बीज हैं, क्रांति की चिंगारी है, अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने का अदम्य साहस है। अपराध को सहन न करने की शक्ति है। इस धरती ने हर जुल्म को सीधा जवाब दिया है। निरंकुश राजसत्ता को रोका है तो देश के लिए लहू भी बहाया है। हर विद्रोही की पनाहगार रही इस धरती ने दमन की सत्ता को सदा निराश किया। इस गर्वीली माटी ने जाति-धर्म के सवालों को सतही तवज्जो दी तो इज्जत और जमीर को सबसे ऊपर रखा। राना ने बताया, मारून सिंह लोधी इसी धरती के ऐसे सूरमा थे जिन्होंने फिरंगी शासन के दमन को सीधी चुनौती दी। इतिहास के पन्नों के साथ भले ही जनमानस ने मारून को भुला दिया, लेकिन ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में आज भी उनकी वीरता और साहस का जिक्र दर्ज है। पुरखों के सुकर्मों को याद किए बिना कोई भी पीढ़ी आगे नहीं बढ़ सकती। चंबल परिवार न केवल ऐसे पुरखों की यादों को सहेज रहा है, बल्कि स्मृति पटल से मिट गईं उनके कामों की भी याद दिलाने की कोशिश में लगा है। 'इतिहास का ईमानदारी से उत्खनन नहीं किया' शाहआलम राना ने जोर देते हुए कहा कि आजाद भारत में इतिहास का ईमानदारी से उत्खनन नहीं किया गया। कम से कम यह काम करते हुए अधिकांश क्रांतिकारियों को तो भुला ही दिया गया है। चंबल के प्रति अभागा नजरिया रखने वाले इतिहासकारों ने इस काम को अधिक दुरूह कर दिया। चंबल की माटी में जन्में क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्नों पर वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वह हकदार थे। चंबल अंचल के इस महान योद्धा को गांव से लेकर समाज और सरकारों ने भुला दिया। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर हम इसी तरह अपने लड़ाका पुरखों को भुलाने पर अमादा हो जाएंगे तो उन्हें भला फिर कौन याद रखेगा। इस अवसर पर चंबल परिवार संयोजक चंद्रोदय सिंह चौहान, राजाराम राजपूत, देवेंद्र सिंह, अभिनंदन, हरवंश सिंह, उदय सिंह चौहान आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। कौन हैं क्रांतिवीर मारून सिंह लोधी... मारून सिंह लोधी इटावा जिले के यमुना-चंबल नदियों के दोआब क्षेत्र में पाली धार गांव के निवासी थे। देश पर तब अंग्रेजों का शासन था और यह इलाका ग्वालियर के सिंधिया की राज्य की सीमा में था। मारून सिंह और उनके साथियों के डर से ये दोनों ही सत्ता थर्राती थीं। मारून का खौफ किस कदर था इसे इटावा के तत्कालीन कमिश्नर एओ ह्यूम की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है। मारून सिंह के संबंध में उसने लिखा है- 'वह नार्थ वेस्टर्न प्राविन्स के सबसे खतरनाक डकैतों में से एक है।'  दरअसल, मारून सिंह और उनके भाई लाल सिंह को साल 1857 की क्रांति के प्रारंभ में चार पुलिस वालों की हत्या के आरोप में 14 साल की कालेपानी की सजा दी गई थी। कालापानी भेजे जाने से पहले ही दोनों ने बाहर के विद्रोहियों ने मिलकर जेल को तोड़ दिया और बीहड़ों में फरार हो गए। फरार होने के बाद मारून ने ऐसा सुदृढ़ सशस्त्र संगठन बनाया जो इटावा से ग्वालियर की सीमा क्षेत्र तक सक्रिय था। हालांकि, ह्यूम के प्रयासों से अप्रैल 1860 में अंग्रेजी सेना और क्रांतिकारियों के साथ चंबल क्षेत्र में हुए एक जबरदस्त संघर्ष में मारून सिंह को पुनः पकड़ा गया। ह्यूम ने ब्रिटिश सरकार से उनके खिलाफ इटावा में मुकदमा चलाने की अनुमति ली और मुकदमा चलाकर उन्हें मृत्यु दण्ड दे दिया। ग्वालियर में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया। सिंधिया और अंग्रेजों से स्वतंत्र बनाए रखा... मारून सिंह, प्रीतम सिंह उर्फ बरजोर सिंह, दौलत सिंह, बंकट सिंह सभी ने मिलकर 1860 तक काली सिंध क्षेत्र को सिंधिया और अंग्रेजों से स्वतंत्र बनाए रखा था। 28 अप्रैल 1860 को इटावा से एओ ह्यूम ने आगरा के कमिश्नर मि. रूज को अपनी वार्षिक रिपोर्ट क्र. 97 प्रेषित की थी। उसमें फरार सजायाप्ता विद्रोही नेता मारून सिंह को बंदी बनाने और उन पर मुकदमा चलाकर फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख किया है। रिपोर्ट के आठ पदों में मारून सिंह के बारे में एओ ह्यूम ने विस्तार से लिखा है। एओ ह्यूम ने अपनी इस रिपोर्ट को आगरा कमिश्नर के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को भेजा था। इस रिपोर्ट में एओ ह्यूम ने बताया था कि 'इस व्यक्ति ने अपने भाई लाल सिंह के साथ मिलकर अधिकारियों को घायल कर खजाने पर अधिकार किया था। खजाने की लूट की घटना में मारून सिंह और उनके भाई की लिप्तता की अंग्रेज सरकार को जानकारी होने पर जब मारून सिंह और उनके भाई को बंदी बनाने के लिए पुलिस दल भेजा गया तब मारून सिंह और उसके भाई ने पुलिस दल से हथियारबंद होकर मुकाबला करके चार पुलिसकर्मियों का उनके टुकड़े-टुकड़े करके वध कर दिया और फरार हो गया। एक साल के अनवरत प्रयासों और खोज के बाद मुझे उनके नार्थ अवध में होने की जानकारी मिली। भेष बदलकर पुलिस दल को उसे बंदी बनाने के लिए भेजा गया। बंदी बनाने के बाद इटावा में उन पर मुकदमा चलाकर, तत्कालीन अंग्रेजी कानून के मुताबिक दोनों को अधिकतम सजा, कालापानी का दंड दिया गया।' निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी... एओ ह्यूम ने अपनी रिपोर्ट के पैरा तीन में लिखा कि पर उन दोनों को अंडमान जेल भेजा नहीं जा सका। अंडमान भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा था तभी जेल तोड़कर वे फरार हो गये और यमुना-चंबल दोआब के क्षेत्र में चले गए। इसके बाद इस क्षेत्र में सबसे खतरनाक हथियारबंद डकैतों का गिरोह गठित करके वे बड़े पैमाने पर लूटपाट तथा हत्याएं करने लगे। एक मुखबिर देवबक्श जिसने मुझे मारून सिंह के बारे में मुखबिरी देकर उन्हें अवध से बंदी बनवाया था, उसके पुत्र की इन्हों ने निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी। मैंने फिर अपने उसी मुखबिर की मदद से मारून सिंह के भाई लाल सिंह को बंदी बनाया और उसे फांसी पर लटका दिया। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए मारून सिंह जो ग्वालियर में फरार था, अपने अन्य विद्रोही साथियों के साथ चंबल को पार किया। दोआब क्षेत्र में आकर उसने मुखबिर देवबक्श को बंदी बना लिया तथा उसकी भी नृशंस हत्या कर दी।' पैरा 6 में लिखा...  अपनी रिपोर्ट के पैरा 6 में एओ ह्यूम ने लिखा कि 'मैंने तभी से इस विद्रोही को बंदी बनाने के लिए संकल्प ले लिया। उसके ऊपर 500 रुपये का इनाम भी घोषित किया और अंत में सफलता भी मिली। मारून सिंह को बंदी बनाने के लिए जिस सैन्य दल को भेजा गया था, उसके लगभग सभी सैनिक पूरी तरह से घायल हो गए थे और इस मुठभेड़ में मारून सिंह भी बुरी तरह से घायल हुआ। ह्यूम ने आगे लिखा कि मारून सिंह की गिरफ्तारी को मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूं। मारून सिंह के महान दुस्साहस, हिम्मत और शरीरिक बल ने उसे नार्थ वेस्टर्न प्रांत का सबसे खतरनाक रफियन बना दिया था। मारून सिंह ने गंगा सिंह, बरजोर सिंह, दौलत सिंह और जो कुछ विद्रोही और डकैत जो अभी तक पकड़े जाने से बचे थे उनके साथ मिलकर सिंध नदी के बीहड़ में रहकर लंबे समय से इटावा जिले की शांति को चुनौती दे रखी थी।' ह्यूम ने अपनी रिपोर्ट के पैरा 8 में लिखा कि 'मेरे लोगों ने मारून सिंह को ग्वालियर में बंदी बनाया हैं। ग्वालियर के सिंधिया की फौज इन लोगों को नहीं पकड़ सकी। इसलिए मेरी इस फौजी टुकड़ी को मारून सिंह को बंदी बनाने के लिए धन्यवाद देना चाहिये।' एओ ह्यूम की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते ब्रिटिश सरकार ने लिखा-'सरकार इस खतरनाक डकैत की गिरफ्तारी का महान श्रेय एओ ह्यूम के दृढ़ संकल्प, उनके महान ऊर्जा और उनके लंबे समय से जारी प्रयासों को देती है।' तब ब्रिटिश सरकार ने लेफ्टीनेंट गवर्नर आगरा कमिश्नर रूज से प्रार्थना की कि-'एओ ह्यूम को उनके लंबे समय से जारी प्रयासों की सफलता पर धन्यवाद दिया जाए।'

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चंबल कबड्डी लीग का पोस्टर जारी – फोटो : अमर उजाला

विस्तार दो दिवसीय ‘चंबल कबड्डी लीग’ इतिहास कालखंड से भुला दिए गए गुमनाम क्रांतिवीर शहीद मारून सिंह लोधी की स्मृति में हो रही है। इसमें चंबल अंचल के अलावा अन्य जनपदों-प्रदेशों की टीमें हिस्सा लेंगी। चंबल परिवार द्वारा चंबल कबड्डी लीग-2023 का पोस्टर चंबल नदी के किनारे स्थित आजादी योद्धा मारून सिंह लोधी के गांव पाली धार में जारी कर दिया गया।

चंबल कबड्डी लीग पोस्टर जारी करने के बाद आयोजन समिति से जुड़े क्रांतिकारी लेखक डॉ. शाहआलम राना ने कहा कि चंबल की धरती वीर प्रसूता है। इस धरती में विद्रोह के बीज हैं, क्रांति की चिंगारी है, अन्याय के खिलाफ उठ खड़े होने का अदम्य साहस है। अपराध को सहन न करने की शक्ति है। इस धरती ने हर जुल्म को सीधा जवाब दिया है। निरंकुश राजसत्ता को रोका है तो देश के लिए लहू भी बहाया है। हर विद्रोही की पनाहगार रही इस धरती ने दमन की सत्ता को सदा निराश किया। इस गर्वीली माटी ने जाति-धर्म के सवालों को सतही तवज्जो दी तो इज्जत और जमीर को सबसे ऊपर रखा।

राना ने बताया, मारून सिंह लोधी इसी धरती के ऐसे सूरमा थे जिन्होंने फिरंगी शासन के दमन को सीधी चुनौती दी। इतिहास के पन्नों के साथ भले ही जनमानस ने मारून को भुला दिया, लेकिन ब्रिटिश काल के दस्तावेजों में आज भी उनकी वीरता और साहस का जिक्र दर्ज है। पुरखों के सुकर्मों को याद किए बिना कोई भी पीढ़ी आगे नहीं बढ़ सकती। चंबल परिवार न केवल ऐसे पुरखों की यादों को सहेज रहा है, बल्कि स्मृति पटल से मिट गईं उनके कामों की भी याद दिलाने की कोशिश में लगा है।

‘इतिहास का ईमानदारी से उत्खनन नहीं किया’
शाहआलम राना ने जोर देते हुए कहा कि आजाद भारत में इतिहास का ईमानदारी से उत्खनन नहीं किया गया। कम से कम यह काम करते हुए अधिकांश क्रांतिकारियों को तो भुला ही दिया गया है। चंबल के प्रति अभागा नजरिया रखने वाले इतिहासकारों ने इस काम को अधिक दुरूह कर दिया। चंबल की माटी में जन्में क्रांतिकारियों को इतिहास के पन्नों पर वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वह हकदार थे। चंबल अंचल के इस महान योद्धा को गांव से लेकर समाज और सरकारों ने भुला दिया। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर हम इसी तरह अपने लड़ाका पुरखों को भुलाने पर अमादा हो जाएंगे तो उन्हें भला फिर कौन याद रखेगा। इस अवसर पर चंबल परिवार संयोजक चंद्रोदय सिंह चौहान, राजाराम राजपूत, देवेंद्र सिंह, अभिनंदन, हरवंश सिंह, उदय सिंह चौहान आदि ने अपने विचार व्यक्त किए।

कौन हैं क्रांतिवीर मारून सिंह लोधी…
मारून सिंह लोधी इटावा जिले के यमुना-चंबल नदियों के दोआब क्षेत्र में पाली धार गांव के निवासी थे। देश पर तब अंग्रेजों का शासन था और यह इलाका ग्वालियर के सिंधिया की राज्य की सीमा में था। मारून सिंह और उनके साथियों के डर से ये दोनों ही सत्ता थर्राती थीं। मारून का खौफ किस कदर था इसे इटावा के तत्कालीन कमिश्नर एओ ह्यूम की इस टिप्पणी से समझा जा सकता है। मारून सिंह के संबंध में उसने लिखा है- ‘वह नार्थ वेस्टर्न प्राविन्स के सबसे खतरनाक डकैतों में से एक है।’ 

दरअसल, मारून सिंह और उनके भाई लाल सिंह को साल 1857 की क्रांति के प्रारंभ में चार पुलिस वालों की हत्या के आरोप में 14 साल की कालेपानी की सजा दी गई थी। कालापानी भेजे जाने से पहले ही दोनों ने बाहर के विद्रोहियों ने मिलकर जेल को तोड़ दिया और बीहड़ों में फरार हो गए। फरार होने के बाद मारून ने ऐसा सुदृढ़ सशस्त्र संगठन बनाया जो इटावा से ग्वालियर की सीमा क्षेत्र तक सक्रिय था। हालांकि, ह्यूम के प्रयासों से अप्रैल 1860 में अंग्रेजी सेना और क्रांतिकारियों के साथ चंबल क्षेत्र में हुए एक जबरदस्त संघर्ष में मारून सिंह को पुनः पकड़ा गया। ह्यूम ने ब्रिटिश सरकार से उनके खिलाफ इटावा में मुकदमा चलाने की अनुमति ली और मुकदमा चलाकर उन्हें मृत्यु दण्ड दे दिया। ग्वालियर में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

सिंधिया और अंग्रेजों से स्वतंत्र बनाए रखा…
मारून सिंह, प्रीतम सिंह उर्फ बरजोर सिंह, दौलत सिंह, बंकट सिंह सभी ने मिलकर 1860 तक काली सिंध क्षेत्र को सिंधिया और अंग्रेजों से स्वतंत्र बनाए रखा था। 28 अप्रैल 1860 को इटावा से एओ ह्यूम ने आगरा के कमिश्नर मि. रूज को अपनी वार्षिक रिपोर्ट क्र. 97 प्रेषित की थी। उसमें फरार सजायाप्ता विद्रोही नेता मारून सिंह को बंदी बनाने और उन पर मुकदमा चलाकर फांसी पर लटकाए जाने का उल्लेख किया है। रिपोर्ट के आठ पदों में मारून सिंह के बारे में एओ ह्यूम ने विस्तार से लिखा है।

एओ ह्यूम ने अपनी इस रिपोर्ट को आगरा कमिश्नर के माध्यम से ब्रिटिश सरकार को भेजा था। इस रिपोर्ट में एओ ह्यूम ने बताया था कि ‘इस व्यक्ति ने अपने भाई लाल सिंह के साथ मिलकर अधिकारियों को घायल कर खजाने पर अधिकार किया था। खजाने की लूट की घटना में मारून सिंह और उनके भाई की लिप्तता की अंग्रेज सरकार को जानकारी होने पर जब मारून सिंह और उनके भाई को बंदी बनाने के लिए पुलिस दल भेजा गया तब मारून सिंह और उसके भाई ने पुलिस दल से हथियारबंद होकर मुकाबला करके चार पुलिसकर्मियों का उनके टुकड़े-टुकड़े करके वध कर दिया और फरार हो गया। एक साल के अनवरत प्रयासों और खोज के बाद मुझे उनके नार्थ अवध में होने की जानकारी मिली। भेष बदलकर पुलिस दल को उसे बंदी बनाने के लिए भेजा गया। बंदी बनाने के बाद इटावा में उन पर मुकदमा चलाकर, तत्कालीन अंग्रेजी कानून के मुताबिक दोनों को अधिकतम सजा, कालापानी का दंड दिया गया।’

निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी…
एओ ह्यूम ने अपनी रिपोर्ट के पैरा तीन में लिखा कि पर उन दोनों को अंडमान जेल भेजा नहीं जा सका। अंडमान भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहा था तभी जेल तोड़कर वे फरार हो गये और यमुना-चंबल दोआब के क्षेत्र में चले गए। इसके बाद इस क्षेत्र में सबसे खतरनाक हथियारबंद डकैतों का गिरोह गठित करके वे बड़े पैमाने पर लूटपाट तथा हत्याएं करने लगे। एक मुखबिर देवबक्श जिसने मुझे मारून सिंह के बारे में मुखबिरी देकर उन्हें अवध से बंदी बनवाया था, उसके पुत्र की इन्हों ने निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी। मैंने फिर अपने उसी मुखबिर की मदद से मारून सिंह के भाई लाल सिंह को बंदी बनाया और उसे फांसी पर लटका दिया। अपने भाई की मौत का बदला लेने के लिए मारून सिंह जो ग्वालियर में फरार था, अपने अन्य विद्रोही साथियों के साथ चंबल को पार किया। दोआब क्षेत्र में आकर उसने मुखबिर देवबक्श को बंदी बना लिया तथा उसकी भी नृशंस हत्या कर दी।’

पैरा 6 में लिखा… 
अपनी रिपोर्ट के पैरा 6 में एओ ह्यूम ने लिखा कि ‘मैंने तभी से इस विद्रोही को बंदी बनाने के लिए संकल्प ले लिया। उसके ऊपर 500 रुपये का इनाम भी घोषित किया और अंत में सफलता भी मिली। मारून सिंह को बंदी बनाने के लिए जिस सैन्य दल को भेजा गया था, उसके लगभग सभी सैनिक पूरी तरह से घायल हो गए थे और इस मुठभेड़ में मारून सिंह भी बुरी तरह से घायल हुआ। ह्यूम ने आगे लिखा कि मारून सिंह की गिरफ्तारी को मैं बहुत महत्वपूर्ण मानता हूं। मारून सिंह के महान दुस्साहस, हिम्मत और शरीरिक बल ने उसे नार्थ वेस्टर्न प्रांत का सबसे खतरनाक रफियन बना दिया था। मारून सिंह ने गंगा सिंह, बरजोर सिंह, दौलत सिंह और जो कुछ विद्रोही और डकैत जो अभी तक पकड़े जाने से बचे थे उनके साथ मिलकर सिंध नदी के बीहड़ में रहकर लंबे समय से इटावा जिले की शांति को चुनौती दे रखी थी।’

ह्यूम ने अपनी रिपोर्ट के पैरा 8 में लिखा कि ‘मेरे लोगों ने मारून सिंह को ग्वालियर में बंदी बनाया हैं। ग्वालियर के सिंधिया की फौज इन लोगों को नहीं पकड़ सकी। इसलिए मेरी इस फौजी टुकड़ी को मारून सिंह को बंदी बनाने के लिए धन्यवाद देना चाहिये।’ एओ ह्यूम की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते ब्रिटिश सरकार ने लिखा-‘सरकार इस खतरनाक डकैत की गिरफ्तारी का महान श्रेय एओ ह्यूम के दृढ़ संकल्प, उनके महान ऊर्जा और उनके लंबे समय से जारी प्रयासों को देती है।’ तब ब्रिटिश सरकार ने लेफ्टीनेंट गवर्नर आगरा कमिश्नर रूज से प्रार्थना की कि-‘एओ ह्यूम को उनके लंबे समय से जारी प्रयासों की सफलता पर धन्यवाद दिया जाए।’

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