कमलेश सेन Published by: उदित दीक्षित Updated Sat, 31 Aug 2024 04: 29 PM IST
देवी अहिल्या बाई होल्कर की 229वीं पुण्यतिथि रविवार को मनाई जाएगी। किसी राजा या रानी के इतने लंबे समय के बाद याद करने के विरले ही उदाहरण होंगे। ब्रिटिश प्रशासक और अंग्रेज अधिकारी सर जॉन मालकम ने मालवा के इतिहास पर कार्य किया था, उन्होंने देवी अहिल्या बाई को होल्कर राजवंश की श्रेष्टतम शासिका के रूप में उल्लेखित किया है।
देवी अहिल्या बाई द्वारा अपने कार्यकाल में देशभर में 8527 धार्मिक स्थल, 920 मस्जिदों और दरगाह, 39 राजकीय अनाथालय का निर्माण कराया। साथ ही उनके कार्यकाल में धर्मशालाओं, नर्मदा किनारे, देश में प्रमुख धर्मस्थलों पर नदियों किनारे के घाटों, कुंए, तालाब, बाबड़ियों और गोशालाओं ( उस समय इसे पिंजरापोल कहा जाता था) के निर्माण में आर्थिक मदद दी गई थी। अहिल्या बाई के कार्यकाल में होल्कर राजवंश में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में उनके द्वारा कार्य किए गए, जिनकी फेहरिस्त लंबी है।
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अहिल्या बाई के कार्यकाल में आरंभ में यह कार्य खासगी के तहत होता था। होल्कर वंश के प्रथम शासक मल्हारराव ने प्रथम पेशवा बाजीराव से आग्रह किया था की मेरी पत्नी को कुछ जागीर प्रदान की जाए, उन्होंने उनकी पत्नी गौतमा बाई को खासगी (राज्य के कुछ गांवों से कर वसूली और रानियों को दी जाने वाली राशि, व्यक्तिगत संपत्ति) प्रदान की जिससे उन्हें आय होने लगी थी। 20 जनवरी 1734 के एक पत्र अनुसार गौतमाबाई को खासगी से आरम्भ में आमदनी 2 लाख 99 हजार 10 रुपए हुई थी। गौतमाबाई के निधन के बाद खासगी की आय का काम अहिल्या बाई देखती थीं। खासगी की अधिकांश आय का व्यय धार्मिक कार्यों पर होता था। यह खासगी ट्रस्ट आज की कायम है जो धार्मिक स्थलों की व्यवस्था देखता है।
अहिल्या बाई ने राजधानी महेश्वर को बनाया और उनके शिव के प्रति स्नेह और आदर भाव का पूर्ण ध्यान रखा गया। नर्मदा किनारे उन्होंने घाटों का निर्माण करवाया, उन्होंने देश भर के विद्वानों को महेश्वर में स्थाई रूप से बसाया और उन्हें वंशानुगत जागीरें भी प्रदान की थी। अहिल्या बाई ने संपूर्ण देश के विद्वानों को महेश्वर में नर्मदा तट पर संरक्षण दिया जिनमें मल्हार भट्ट मुल्ये, जानोबा पुराणिक, रामचंद्र रानाडे, काशीनाथ शास्त्री, दामोदर शास्त्री, निहिल भट्ट, भैया शास्त्री, मनोहर बर्वे, गणेश भट्ट, त्रियम्बक भट्ट, महंत सुजान गिरी गोसाबी, हरिदास आनंद राम प्रमुख थे।
अहिल्या बाई ने पति के निधन के बाद जब राज्य का कार्यभार संभाला तो उस समय राज्य की स्थिति काफी नाजुक थी। चोर और डाकुओ का आतंक था, राज्य की कानून व्यवस्था संभालना उनके लिए प्रथम कार्य था, साथ ही राज्य की आय को भी बढ़ाना था। अहिल्या बाई ने महेश्वर को अपना मुख्यालय बनाया पर वे इंदौर को नहीं भूली थी। इंदौर का इस्तेमाल सैनिक छावनी के रूप में होता था। होल्कर इतिहास की जानकारी के प्रमुख ग्रंथ ‘महेश्वर दरवारंची बातमीपत्रे – (भाग -1 और 2 )’ में इंदौर से जुडी कई जानकारियों का उल्लेख है। 1779 से 1994 तक विट्ठल शामराव और भीकाजी दातार ने वकील के रूप में कार्य किया था, उनके कुछ पत्रों में इंदौर की जानकारियां हैं।
अहिल्या बाई की पहली इंदौर यात्रा
अहिल्याबाई होल्कर 26 मई 1784 को महेश्वर से इंदौर आईं थी, वे नगर के छत्रीबाग में ही तंबुओं में रुकी थी। इस दौरान वे देवगुराड़िया शिव मंदिर गई और नगर के सेठ, साहूकारों और नंदलाल पूरा में जमींदार से मिलीं थी। अहिल्या बाई के नगर में रहने के दौरान सराफा में डकैती हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने घटना की जांच करने और सख्ती बरतने के आदेश दिए थे। 1785 में नगर के तत्कालीन कामविस्डर खंडो बाबूराव ने अहिल्या बाई को लिखा था कि नगर का विकास तेजी से हो रहा है, आसपास के लोग इंदौर में आकर बस रहे हैं।
देवी अहिल्या बाई ने अपना संपूर्ण राज्य शिव को समर्पित कर उनकी संरक्षिता बन कर राज किया था। देवी अहिल्या बाई का जीवन बहुत संकटपूर्ण और संघर्ष का रहा, लेकिन उन्होंने इन सब परेशानियों को अपने राज्य सञ्चालन से दूर कर एक कुशल नेतृत्व के साथ राज्य को संभाला। देवी अहिल्या बाई इंदौर या होल्कर वंश में नहीं बल्कि पूरे भारत में एक न्यायप्रिय, दानशील और कुशल प्रसाशिका के रूप में जानी जाती हैं।
प्रमुख तिथियों पर एक झलक
जन्म – 1725 विवाह -1733 पति का निधन -1767 राज्य की बागडौर संभाली-13 मार्च 1767 महेश्वर को राजधानी बनाया- अक्टूबर 1767 निधन – 30 अगस्त 1795 राज्य का कार्यभार संभाला- 28 वर्ष 5 माह 17 दिन
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