जबलपुर के मेडिकल कॉलेज से पोस्ट ग्रेजुएट की पढ़ाई कर रही एक छात्रा को हाईकोर्ट ने राहत प्रदान की है। वह 30 लाख रुपये का भुगतान किए बिना अपने मूल दस्तावेज हासिल कर सकती है। high court
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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने जबलपुर मेडिकल कॉलेज की पीजी छात्रा डॉ. अनन्या नंदा को बड़ी राहत दी है। एक्टिंग चीफ जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने मेडिकल एजुकेशन विभाग (डीएमई) और जबलपुर मेडिकल कॉलेज को आदेश दिया है कि वे बिना 30 लाख रुपये की मांग किए याचिकाकर्ता के सभी मूल शैक्षणिक दस्तावेज लौटाएं। साथ ही, युगलपीठ ने चिकित्सा शिक्षा डायरेक्टर, प्रमुख सचिव और मेडिकल कॉलेज के डीन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
यह मामला डॉ. अनन्या नंदा की याचिका से जुड़ा है, जो मूल रूप से ओडिशा की रहने वाली हैं। उन्हें 2022 में जबलपुर मेडिकल कॉलेज में पीजी पाठ्यक्रम में प्रवेश मिला था। वे आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) से हैं, और उनके पिता एक गरीब किसान हैं। याचिका में कहा गया कि 2020 में डीएमई काउंसलिंग के दौरान उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर जबलपुर मेडिकल कॉलेज में सीट आवंटित की गई थी। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि कॉलेज में उन्हें रैगिंग का शिकार होना पड़ा। उन्हें बिना विश्राम के 36 से 48 घंटे तक काम करने को मजबूर किया गया। इससे वे गंभीर मानसिक तनाव में आ गईं और स्पाइनल इंजरी की शिकार हो गईं। उनके किसान पिता, जब बेटी से मिले, तो उसकी आत्महत्या की प्रवृत्ति देखकर चिंतित हो गए। उन्होंने कॉलेज डीन से मूल दस्तावेज लौटाने का अनुरोध किया ताकि वे बेटी को वापस ओडिशा ले जा सकें, लेकिन डीन ने 30 लाख रुपये जमा करने की शर्त रखी। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में इस मुद्दे को उठाया, जिसके बाद अदालत ने अंतरिम आदेश देते हुए दस्तावेज लौटाने का निर्देश दिया और संबंधित अधिकारियों से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पैरवी की।
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