sagar:-शिक्षक-की-लगन-ने-बदली-गांव-में-शिक्षा-की-तस्वीर,-मढ़-पिपरिया-में-बुंदेलखंड-का-पूर्ण-डिजिटल-स्कूल
सागर जिले के मढपिपलिया में शिक्षक के समर्पण और लगन ने शिक्षा की तस्वीर ही बदल दी। शिक्षक की मेहनत की बदौलत मढ़ पिपरिया का स्कूल अब बुंदलेखंड का पहला फुली डिजिटल स्कूल बन चुका है।  शिक्षक दिवस विस्तार Follow Us एक शिक्षक अगर अपने शैक्षणिक दायित्वों को पूरी लगन और ईमानदारी से निभाए, तो वह विद्यालय को सही मायनों में शिक्षा का मंदिर बना सकता है। ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है सागर जिले की देवरी विधानसभा के ग्राम मढ़ पिपरिया के शासकीय विद्यालय के शिक्षक अशोक राजोरिया ने, जिन्होंने अपनी उन्नत सोच और समर्पण से विद्यालय की सूरत ही बदल दी है। शिक्षक अशोक राजोरिया की 2006 में संविदा शिक्षक के रूप में शासकीय माध्यमिक शाला मढ़ पिपरिया में नियुक्ति हुई थी। उस समय विद्यालय पेड़ के नीचे संचालित हो रहा था और केवल 12 विद्यार्थी ही पंजीकृत थे। राजोरिया ने समर्पण और मेहनत से विद्यालय का भवन स्वीकृत कराया और छात्रों की संख्या 85 तक पहुंचा दी। व्यक्तिगत प्रयासों से किए कई सुधार  शिक्षक अशोक राजोरिया ने विद्यालय में पीने के पानी की सुविधा के लिए अपने वेतन से ट्यूबवेल लगवाया, जिससे बगीचे की सिंचाई भी हो सकी। जनसहयोग से विद्यालय के हर कक्ष में एलईडी टीवी लगाकर डिजिटल पढ़ाई शुरू की गई, जिससे यह विद्यालय बुंदेलखंड अंचल का पहला पूर्ण डिजिटल माध्यमिक विद्यालय बन गया। संगीत शिक्षा के लिए ईको-साउंड सिस्टम, ढोलक, मंजीरा जैसे वाद्ययंत्र भी उपहार में मिले धन से उपलब्ध कराए गए। राजोरिया के प्रयास से 29 छात्र-छात्राओं का चयन राष्ट्रीय मेन्स कम मेरिट छात्रवृत्ति परीक्षा में हुआ है। अभिनव प्रयासों की मान्यता  शिक्षक अशोक राजोरिया के समर्पण और नवाचारी प्रयासों के कारण विद्यालय को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें जिला स्तरीय स्वच्छता पुरस्कार, राज्य स्तरीय वॉल ऑफ फेम पुरस्कार, जिला स्तरीय उत्कृष्ट शाला पुरस्कार, और पूर्ण डिजिटल शाला पुरस्कार शामिल हैं। गणित के बगीचे का विकास राजोरिया ने गणित शिक्षा के लिए शाला परिसर में गणित का बगीचा विकसित किया है, जिसमें सामान्य ज्ञान, विज्ञान के रोचक नवाचार, गणित के सूत्र और ज्यामिति की आकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।शिक्षक अशोक राजोरिया को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए जिला, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। उनका कहना है कि उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनके छात्रों की सफलता और शिक्षण कार्य है। वे शिक्षा को नवाचार और दैनिक जीवन की गतिविधियों से जोड़कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। गांव में शिक्षा की क्रांति    अशोक राजोरिया के प्रयासों से गांव में शिक्षा की तस्वीर बदल रही है। ग्रामीणों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, और आज गांव के शत-प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं। राजोरिया के नेतृत्व में शिक्षा के महत्व को समझाने का प्रयास सफल हुआ है, और उनके समर्पण ने मढ़ पिपरिया को बुंदेलखंड अंचल में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। राजौरिया कहते हैं कि उनके जीवन की अमूल्य पूंजी शिक्षण कार्य और विद्यालय के बच्चों को मिली सफलता ही है। वे नवाचार एवं दैनिक जीवन की गतिविधियों से जोड़कर शिक्षण कार्य कर राष्ट्र निर्माण का कार्य पूर्ण निष्ठा, लगन एवं ईमानदारी से कर रहे है। आज के युग में ऐसे शिक्षकों की महती आवश्यकता है।      शिक्षक राजौरिया को पूर्व में राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया है।  शिक्षक राजौरिया के प्रयासों से गांव के शत-प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं।  रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News App, iOS Hindi News App और Amarujala Hindi News APP अपने मोबाइल पे| Get all India News in Hindi related to live update of politics, sports, entertainment, technology and education etc. Stay updated with us for all breaking news from India News and more news in Hindi.

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सागर जिले के मढपिपलिया में शिक्षक के समर्पण और लगन ने शिक्षा की तस्वीर ही बदल दी। शिक्षक की मेहनत की बदौलत मढ़ पिपरिया का स्कूल अब बुंदलेखंड का पहला फुली डिजिटल स्कूल बन चुका है।  शिक्षक दिवस

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एक शिक्षक अगर अपने शैक्षणिक दायित्वों को पूरी लगन और ईमानदारी से निभाए, तो वह विद्यालय को सही मायनों में शिक्षा का मंदिर बना सकता है। ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत किया है सागर जिले की देवरी विधानसभा के ग्राम मढ़ पिपरिया के शासकीय विद्यालय के शिक्षक अशोक राजोरिया ने, जिन्होंने अपनी उन्नत सोच और समर्पण से विद्यालय की सूरत ही बदल दी है।

शिक्षक अशोक राजोरिया की 2006 में संविदा शिक्षक के रूप में शासकीय माध्यमिक शाला मढ़ पिपरिया में नियुक्ति हुई थी। उस समय विद्यालय पेड़ के नीचे संचालित हो रहा था और केवल 12 विद्यार्थी ही पंजीकृत थे। राजोरिया ने समर्पण और मेहनत से विद्यालय का भवन स्वीकृत कराया और छात्रों की संख्या 85 तक पहुंचा दी।

व्यक्तिगत प्रयासों से किए कई सुधार 
शिक्षक अशोक राजोरिया ने विद्यालय में पीने के पानी की सुविधा के लिए अपने वेतन से ट्यूबवेल लगवाया, जिससे बगीचे की सिंचाई भी हो सकी। जनसहयोग से विद्यालय के हर कक्ष में एलईडी टीवी लगाकर डिजिटल पढ़ाई शुरू की गई, जिससे यह विद्यालय बुंदेलखंड अंचल का पहला पूर्ण डिजिटल माध्यमिक विद्यालय बन गया। संगीत शिक्षा के लिए ईको-साउंड सिस्टम, ढोलक, मंजीरा जैसे वाद्ययंत्र भी उपहार में मिले धन से उपलब्ध कराए गए। राजोरिया के प्रयास से 29 छात्र-छात्राओं का चयन राष्ट्रीय मेन्स कम मेरिट छात्रवृत्ति परीक्षा में हुआ है।

अभिनव प्रयासों की मान्यता 
शिक्षक अशोक राजोरिया के समर्पण और नवाचारी प्रयासों के कारण विद्यालय को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं, जिनमें जिला स्तरीय स्वच्छता पुरस्कार, राज्य स्तरीय वॉल ऑफ फेम पुरस्कार, जिला स्तरीय उत्कृष्ट शाला पुरस्कार, और पूर्ण डिजिटल शाला पुरस्कार शामिल हैं।

गणित के बगीचे का विकास
राजोरिया ने गणित शिक्षा के लिए शाला परिसर में गणित का बगीचा विकसित किया है, जिसमें सामान्य ज्ञान, विज्ञान के रोचक नवाचार, गणित के सूत्र और ज्यामिति की आकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।शिक्षक अशोक राजोरिया को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए जिला, राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है। उनका कहना है कि उनके जीवन की सबसे बड़ी पूंजी उनके छात्रों की सफलता और शिक्षण कार्य है। वे शिक्षा को नवाचार और दैनिक जीवन की गतिविधियों से जोड़कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

गांव में शिक्षा की क्रांति   
अशोक राजोरिया के प्रयासों से गांव में शिक्षा की तस्वीर बदल रही है। ग्रामीणों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ी है, और आज गांव के शत-प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं। राजोरिया के नेतृत्व में शिक्षा के महत्व को समझाने का प्रयास सफल हुआ है, और उनके समर्पण ने मढ़ पिपरिया को बुंदेलखंड अंचल में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। राजौरिया कहते हैं कि उनके जीवन की अमूल्य पूंजी शिक्षण कार्य और विद्यालय के बच्चों को मिली सफलता ही है। वे नवाचार एवं दैनिक जीवन की गतिविधियों से जोड़कर शिक्षण कार्य कर राष्ट्र निर्माण का कार्य पूर्ण निष्ठा, लगन एवं ईमानदारी से कर रहे है। आज के युग में ऐसे शिक्षकों की महती आवश्यकता है।   
 

शिक्षक राजौरिया को पूर्व में राष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मानित किया गया है। 

शिक्षक राजौरिया के प्रयासों से गांव के शत-प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं। 

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