अकादमी पुरस्कार – फोटो : अमर उजाला
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मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग और उर्दू अकादमी बरसों से चली आ रही व्यवस्था को बरकरार रखते हुए राष्ट्रीय और प्रादेशिक सम्मान की श्रृंखला बढ़ा रही है। मंगलवार को आयोजित समारोह में प्रदेश के विभिन्न शायरों और अदीबो को सम्मानित करने वाली है। लेकिन इस आयोजन में बरसों की व्यवस्था को मुंह चिढ़ाते हुए कुछ नामवर शायरों के नाम पर स्थापित अवॉर्ड्स को हटा दिया गया है। पुरस्कार से हटाए गए इन नामों में दुनिया के मशहूर शायर मीर तकी मीर शामिल हैं तो प्रदेश में अपनी खास सेवाओं के लिए जाने जाने वाले ताज भोपाली भी। साथ ही इस नाम हटाई सूची में राजधानी भोपाल के इब्राहिम यूसुफ को भी रखा गया है।
मप्र मुस्लिम विकास परिषद के अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद माहिर ने अकादमी जिम्मेदारों से सवाल किया है कि अवार्ड 2023 की सूची से इन बड़े नामों को हटाए जाने की स्थिति स्पष्ट की जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि बरसों से जारी व्यवस्था को अचानक बदल दिया जाना, किसी साजिश का हिस्सा है या इस कार्यक्रम को समेटा जाना किसी मजबूरी की दलील। एडवोकेट मोहम्मद माहिर ने राष्ट्रीय और प्रदेश स्तरीय सम्मान से मीर तकी मीर, ताज भोपाली और इब्राहिम यूसुफ के नाम हटाए जाने की स्थिति को अकादमी की चयन समिति को सार्वजनिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए।
सीएम का शहर भी वंचित
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का संबंध उज्जैन से है। इसी शहर से जुड़े एक शायर सागर चिश्ती उज्जैनी भी रहे हैं। शायर अखिल राज का कहना है कि सागर चिश्ती के नाम पर बड़ी उपलब्धियां मौजूद हैं। उनके नाम पर एक राष्ट्रीय अवार्ड स्थापित किए जाने को लंबे समय से मांग की जा रही है। लेकिन इस मांग को दरकिनार करते हुए अकादमी ने एक पाकिस्तानी शायर सहबा कुरैशी के नाम पर अवार्ड देने की तैयारी कर ली थी। लेकिन आपत्तियों के बाद इस नाम को रोक तो लिया गया, लेकिन उज्जैन के नाम को अवार्ड में शामिल नहीं किया गया।
नाराजगी हर तरफ
मप्र उर्दू अकादमी द्वारा पुरस्कार सूची से बड़े नाम हटाने को लेकर नाराजगी पसरती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय शायर मंजर भोपाली ने इस अव्यवस्था की वजह कम ज्ञान वाले और अपनी नीतियां चलाने वाले लोगों के हाथ व्यवस्था होना करार दिया है। उन्होंने कहा कि यह हालात बरकरार रहे तो वे अकादमी के खिलाफ काले कपड़े पहनकर अपना विरोध दर्ज कराएंगे। उन्होंने कहा कि व्यवस्था दुरुस्त होने तक वे काले कपड़े ही धारण करेंगे। अकादमी की व्यवस्थाओं से नाराज मशहूर शायर डॉ अंजुम बाराबंकवी ने कहा कि अब गूंगे बाहर चीख रहे और बहरे अंदर बैठे हैं, जैसी हो गई है। यहां सर्वथा मनमानियों का दौर चल पड़ा है। इन हालात पर शायर डॉ महताब आलम ने कहा कि प्रदेश और शहर के जिन लोगों के नाम से देश दुनिया की अदब महफिलें आबाद हैं, उनको इस तरह किनारे कर दिया जाना न मुनासिब कहा जा सकता है और न ही न्याय संगत।
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